हरियाणा (Harayana) का गठन हुए बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. यह राज्य क्षेत्रफल के लिहाज से भी छोटा है लेकिन यहां से एक से बढ़कर एक राजनेता हुए हैं, जिन्होंने प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी अपनी पहचान बनाई. इन नेताओं से जुड़े अनके किस्से भी हैं. चुनाव के समय इनके किस्से अक्सर लोग याद करते हैं. आज हम एक ऐसे ही किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं, जो इस राज्य के धाकड़ नेता राव बीरेंद्र सिंह (Rao Birendra Singh) से जुड़ा हुआ है. दरअसल, यह बात उनके मुख्यमंत्री (Chief Minister) बनने से लेकर जुड़ी है.
भगवत दयाल शर्मा बन गए थे सीएम
पंजाब राज्य से 1 नवंबर 1966 को अलग होकर हरियाणा एक नया राज्य बना था. अब बारी थी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री चुनने की. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) राव बीरेंद्र सिंह को हरियाणा का सीएम (CM) बनाना चाहती थीं. उधर, पंडित जवाहरलाल नेहरू के करीबी रहे भगवत दयाल शर्मा (Bhagwat Dayal Sharma) भी सीएम की कुर्सी पर विराजमान होना चाह रहे थे.
उन्होंने तुरंत इंदिरा गांधी से मिलने का मन बना लिया. इतना ही नहीं वह इंदिरा गांधी से मिलने पहुंच भी गए. उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा कि राज्य के अधिकतर विधायकों का समर्थन मुझे सीएम बनाने को लेकर है. राव बीरेंद्र सिंह इस समय विधायक नहीं हैं. यदि राव बीरेंद्र सिंह को सीधे सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया तो कांग्रेस पार्टी के खिलाफ जनता में गलत संदेश जाएगा. इस तरह से राव बीरेंद्र सिंह हरियाणा के पहले सीएम बनते-बनते रह गए. भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री चुने गए. इसके बाद से ही राव बीरेंद्र सिंह और भगवत दयाल शर्मा में मनमुटाव हो गया था.
पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला था पूर्ण बहुमत
राज्य के गठन के बाद हरियाणा में पहली बार विधानसभा चुनाव साल 1967 में (Haryana Assembly Election 1967) कराया गया. उस समय हरियाणा विधानसभा में कुल 81 विधानसभा सीटें थी. इस चुनाव में सबसे अधिक कांग्रेस को 48 सीटों पर जीत मिली. जनसंघ के उम्मीदवार 12 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रहे. स्वतंत्र पार्टी ने 3 और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने 2 सीटें जीती थी. 16 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीत दर्ज करने में सफल हुए थे. इस तरह से हरियाणा के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस (Congress) पूर्ण बहुमत प्राप्त करने में सफल रही थी.
जब राव बीरेंद्र सिंह ने अल्टीमेटम देकर गिरा दी थी कांग्रेस की सरकार
कांग्रेस की जीत के बाद भगवत दयाल शर्मा (BD Sharma) ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. राव बीरेंद्र सिंह भी इस बार कांग्रेस पार्टी से विधायक चुने गए थे. हालांकि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था. चुनाव के पहले अपनों को टिकट दिलवाने का जो झगड़ा था, वो अब मंत्री पद के बंटवारे तक आ पहुंच गया था. भगवत दयाल शर्मा के विरोधी लामबंध होने लगे थे. अंदर खाने राव बीरेंद्र सिंह के नेतृत्व में खेल चल रहा था. अब बारी थी स्पीकर पद पर किसी नेता को चुने जाने की. इसके लिए विधानसभा में 17 मार्च 1967 को सभी विधायक एकत्र हुए.
सीएम बीडी शर्मा ने स्पीकर पद के लिए जींद के विधायक लाला दयाकिशन के नाम का प्रस्ताव रखा. उसी समय कांग्रेस के ही एक विधायक ने राव बीरेंद्र सिंह का नाम आगे बढ़ा दिया. इस पर मुख्यमंत्री दंग रह गए. इसके बाद मतदान कराया गया. बीडी शर्मा को लगा कि उन्होंने जीत प्रत्याशी का नाम आगे बढ़ाया है, उसी की जीत होगी लेकिन हुआ इसके विपरित. नतीजे आए तो राव बीरेंद्र सिंह जीत चुके थे. उनको मुख्यमंत्री की ओर से घोषित प्रत्याशी लाला दयाकिशन से तीन वोट अधिक मिले थे. यह एक तरह से सीएम की हार थी. मुख्यमंत्री भगवत दयाल बहुमत खो चुके थे. गुस्से के मारे भगवत दयाल शर्मा सदन छोड़कर बाहर चले गए. उधर, राव बीरेंद्र सिंह ने ऐलान कर दिया कि वह भगवत दयाल शर्मा की सरकार 13 दिन भी नहीं चलने देंगे. अब बीडी शर्मा को सदन में अपनी सरकार बचाने के लिए परीक्षा देनी थी यानी बहुमत परीक्षण देना था.
कांग्रेस के 12 विधायकों ने कर दी बगावत
इसके बाद राव बीरेंद्र सिंह कांग्रेस सरकार गिराने में जुट गए. उनकी मेहनत रंग लाई और 23 मार्च 1967 को कांग्रेस के 12 विधायकों ने बगावत कर दी और हरियाणा कांग्रेस नाम से नया ग्रुप बना लिया. इस तरह से बीडी शर्मा की सरकार अल्पमत में आ गई. 16 निर्दलीय विधायकों ने मिलकर नवीन हरियाणा कांग्रेस नामक पार्टी बना ली. हरियाणा कांग्रेस और नवीन हरियाणा कांग्रेस दोनों ग्रुप साथ मिल गए. इसके बाद भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने भी इनका समर्थन कर दिया. उधर, अंत-अंत तक भगवत दयाल शर्मा सीएम की कुर्सी अपने पास से नहीं जाने को लेकर कवायद में जुटे रहे.
वह अपने नाराज विधायकों को किसी भी हाल में मनाना चाह रहे थे. इसी दौरान का एक किस्सा आया राम-गया राम का है. दरअसल, निर्दलीय उम्मीदवार गया लाल कांग्रेस की सरकार बनने पर इस पार्टी के जुड़ गए थे, जब कांग्रेस सरकार गिरी तो वह कांग्रेस छोड़ संयुक्त मोर्चे में शामिल हो गए. उस दिन गया लाल ने कुछ घंटों के भीतर कई बार पार्टी बदली. संयुक्त विधायक दल में जाने के कुछ घंटे बाद गया लाल फिर से वापस कांग्रेस में चले गए. इसके बाद गया फिर से संयुक्त विधायक मोर्चे में आ गए. राव बीरेंद्र सिंह ने पहली बार गया लाल को 'गया राम अब आया राम' कहा था.
जब एक विधायक को बंद कर दिया टॉयलेट में
बहुमत परीक्षण के दिन एक विधायक को टॉयलेट में बंद कर दिया गया था ताकि वह मतदान नहीं कर सकें. यह विधायक थे बंसीलाल, जो बाद में हरियाणा के सीएम चुने गए थे. दरअसल, कांग्रेस से बागी विधायकों का मानना था कि पहली बार विधायक चुने गए बंसीलाल उनके पक्ष में मत नहीं करेंगे. इसके बाद प्लान बनाया कि सदन में बहुमत परीक्षण के दिन बंसीलाल को आने ही नहीं दिया जाएगा.
पूर्व विधायक और लेखक भीम सिंह दहिया अपनी किताब पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा में इस बात का उल्लेख किया है. उन्होंने इसमें लिखा है कि एक अफसर को बंसीलाल को विधानसभा जाने से रोकने का काम सौंपा गया था. उस अधिकारी ने विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने से पहले बंसीलाल को अपने घर बुलाया. जब कुछ देर बाद बंसीलाल बाथरूम में गए, तो उस अधिकारी ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया. अंदर से बंसीलाल दरवाजा खोलने का आवाज लगाते रहे लेकिन जब तक बीडी शर्मा की सरकार नहीं गिर गई बंसीलाल को बाहर नहीं निकलने दिया गया.
और गिर गई थी बीडी शर्मा की सरकार
राव बीरेंद्र सिंह के नेतृत्व में बागी विधायकों ने एक पार्टी बना ली, नाम दिया गया संयुक्त मोर्चा. इसके बाद कई विधायकों का इस पार्टी से जुड़ने का सिलसिला जारी रहा. किसी तरह संयुक्त मोर्चा ने 48 विधायकों को अपनी तरफ कर लिया. इस तरह हरियाणा में नई सरकार का गठन 24 मार्च 1967 को हो गया. राव बीरेंद्र सिंह हरियाणा के नए मुख्यमंत्री चुने गए. हालांकि यह सरकार भी अधिक दिनों तक नहीं चली. सरकार गठन के नौ महीने बाद ही राज्यपाल ने यह कहते हुए विधानसभा भंग कर दी कि हर रोज विधायक पाला बदल रहे हैं और सरकार के पास बहुमत नहीं है.
भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिरने के बाद राव बीरेंद्र सिंह 24 मार्च 1967 से 2 नवंबर 67 तक 224 दिन संयुक्त विधायक दल के बल पर हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे थे. इसके बाद हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. उस समय हरियाणा में दल-बदल करने वालों में निर्दलीय विधायकों के अलावा विशाल हरियाणा पार्टी और कांग्रेस के विधायक भी शामिल थे. इनमें से एक विधायक ने 5 बार, 2 विधायकों ने 4 बार, 3 विधायकों ने 3 बार और 34 विधायकों ने एक बार पार्टी बदली. उस वक्त कुल 64 बार दल-बदल हुआ. करीब पांच महीने तक हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लागू रहा. इसके बाद दोबारा चुनाव हुए. कांग्रेस को 48 सीटें हासिल हुईं और 22 मई 1968 को बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने.