Haryana Election 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 (Haryana Assembly Election 2024) की तैयारी में सभी पार्टियां जुटी हुई हैं. कुल 90 सीटों पर 5 अक्टूबर को चुनाव होना है. मतों की गिनती 8 अक्टूबर 2024 की जाएगी और नतीजे भी उसी दिन आएंगे. बीजेपी (BJP) जहां जीत की हैट्रिक लगाना चाह रही है, तो वहीं कांग्रेस (Congress) किसी भी हाल में सत्ता पाना चाह रही है. इंडियन नेशनल लोकदल (INLD), जननायक जनता पार्टी (JJP) व अन्य दलों के उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं.
सभी पार्टियां चाह रही हैं कि हमारा सीएम हो लेकिन हम आपको हरियाणा के एक ऐसे मुख्यमंत्री (Chief Minister) का किस्सा बताने जा रहे हैं, जो कभी सीएम (CM बनना ही नहीं चाहते थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपना इस्तीफा जेब में रखकर चलते थे. जी हां, हम बात कर रहे हैं हुकम सिंह फोगाट (Hukam Singh Phogat) की. आइए जानते हैं कौन हैं हुकम सिंह और क्या है वह सीएम न बनने से लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने तक का किस्सा.
कौन थे हुकम सिंह
हुकम सिंह फोगाट का जन्म हरियाणा के चरखी दादरी के लाधानपाना मोहल्ले में 28 फरवरी 1926 को हिंदू जाट परिवार में हुआ था. उन्होंने चरखी दादरी के सरकारी स्कूल से पढ़ाई की और वहीं पर मास्टर बन गए. हुकम सिंह का जब इस स्कूल से ट्रांसफर संगरूर किया गया तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी. वह खेतीबाड़ी के काम में जुट गए. इसी दौरान उनकी मुलाकात सोशलिस्ट पार्टी के नेता मनीराम बागड़ी से हुई और उनके कहने पर हुकम सिंह सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गए.
यहीं से उनकी राजनीतिक पारी शुरू हुई. उन्हें 1975 में इमरजेंसी के दौरान 19 महीने तक जेल में रहना पड़ा. इसके बाद जनवरी 1977 में वह जेल से बाहर आए. इसके बाद उन्होंने पहली बार साल 1977 में दादरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. चुनाव जीतने के बाद हुकम सिंह की मुलाकात ताऊ देवीलाल से हुई और वे उनके खास बन गए. हुकम सिंह 1977, 1982 और 1987 में लगातार तीन बार विधायक रहे. हुकम सिंह को 1978 में देवीलाल सरकार में पंचायत मंत्री बनाया गया था.
बनारसी दास गुप्ता के साथ हुकम सिंह भी थे सीएम की रेस में
आपको मालूम हो कि जब नवंबर 1989 में लोकसभा चुनाव हुए तो केंद्र में जनता दल की सरकार बनी. वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने. उस समय देवीलाल महम से विधायक थे. उन्होंने लोकसभा चुनाव जीतने के बाद महम विधायक से इस्तीफा दे दिया और उपप्रधानमंत्री बन गए. उन्होंने हरियाणा के सीएम पद पर अपने बड़े बेटे ओम प्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) को बैठा दिया. ओपी चौटाला 2 दिसंबर 1989 को पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. हालांकि चौटाला उस समय हरियाणा विधानसभा के सदस्य नहीं थे. उन्हें हर हाल में 6 महीने के भीतर चुनाव जीतना था. ओपी चौटाला साल 1990 में उपचुनाव में अपने पिता देवीलाल की छोड़ी गई महम सीट से जनता दल के प्रत्याशी के रूप मैदान में उतरे. महम की खाप ने ओमप्रकाश चौटाला का विरोध किया.
देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला ने इस सीट से जीत दर्ज करने के लिए पूरी जोर लगा दी. ओमप्रकाश चौटाला ने महम उपचुनाव की पूरी जिम्मेदारी बेटे अभय चौटाला को दे दी. 27 फरवरी 1990 को महम में उपचुनाव हुए. चुनाव में कई जगहों पर बूथ कैप्चरिंग हुई. पॉलिटिक्स ऑफ चौधर में सतीश त्यागी ने बूथ कैप्टचरिंग की घटना का जिक्र किया है. इस चुनाव में कई जगहों पर झड़प और गोलीबारी की घटना हुई. इसमें दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गई. चुनाव आयोग ने दो बार उपचुनाव को रद्द किया. तीसरी बार चुनाव के बाद इस सीट पर फैसला आया. उधर, महम उपचुनाव में धांधली, गुंडागर्दी, हिंसा और कई लोगों की हत्या के बाद केंद्र की वीपी सिंह सरकार भी दबाव में आ गई. हरियाणा की ओपी चौटाला सरकार जनता दल के लिए किरकिरी बन गई. देवीलाल के विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री वीपी सिंह ओपी चौटाला के इस्तीफे पर अड़ गए.
ओमप्रकाश चौटाला इस्तीफा देने को राजी हो गए लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी. चौटाला अपनी पसंद के व्यक्ति को सीएम बनाना चाहते थे ताकि बाद में उनके लिए वो कुर्सी खाली कर सके. उनकी शर्त को मान लिया गया. 22 मई 1990 को ओमप्रकाश चौटाला ने हरियाणा के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के बाद हुकम सिंह पहले मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे. फिर, ताऊ देवीलाल ने बनारसी दास गुप्ता को चुना. देवीलाल और चौटाला यह सोच रहे थे कि गुप्ता कठपुतली बनकर सीएम पद पर काम करेंगे. लेकिन कुछ दिनों बाद बनारसी दास गुप्ता अपनी मर्जी से काम करने लगे. इस बात से चौटाला काफी नराज हो गए. ओम प्रकाश चौटाला दरबान कलां सीट से उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे तो उन्होंने बनारसी दास गुप्ता से इस्तीफा ले लिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए.
ऐसे बने हुकम सिंह हरियाणा के सीएम
12 जुलाई 1990 को बनारसी दास गुप्ता के इस्तीफा देने के बाद ओमप्रकाश चौटाला दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने. उस समय केंद्र और हरियाणा दोनों जगहों पर जनता दल की सरकार थी. वीपी सिंह प्रधानमंत्री और देवीलाल उपप्रधानमंत्री थे. ओमप्रकाश चौटाला हरियाणा के फिर मुख्यमंत्री तो बन गए थे लेकिन महम कांड की जांच की आंच उन पर थी. विश्वनाथ प्रताप सिंह चाहते थे कि ओपी चौटाला को जब तक इस कांड में क्लीन चीट न मिल जाए तब तक वह सीएम की कुर्सी पर नहीं रहे. दबाव इतना बढ़ा कि पांच दिनों में ही 17 जुलाई 1990 को चौटाला को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.
देवीलाल और चौटाला फिर अपने ऐसे करीबी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, जो उनकी हार बात माने.देवीलाल ने तुरंत हुकम सिंह को फोन लगाया और पूछा- क्या मैं आपको हरियाणा का मुख्यमंत्री बना दूं. हुकम सिंह इतना सुनते ही चौंक गए और बोले- मुख्यमंत्री का पद मैं संभाल नहीं पाऊंगा, आप किसी और को ये जिम्मेदारी दे दीजिए. इस पर ताऊ बोले-कोई और विकल्प नहीं है. मैं दिल्ली से हरियाणा आ रहा हूं, आप सीएम पद की शपथ लेने के लिए तैयार रहिए. इस तरह से हुकम सिंह न चाहते हुए भी 17 जुलाई 1990 को सीएम की कुर्सी पर बैठे.
ओमप्रकाश चौटाला को सौंप दी थी सत्ता
हुकम सिंह देवीलाल परिवार के ऋणी रहे. उन्होंने सपने में भी कभी मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद नहीं की थी. वह कहने को सीएम थे लेकिन हर फैसला ओपी चौटाला ही लेते थे. इसी कारण हुकम सिंह को कठपुतली मुख्यमंत्री कहा जाता था. इस बात को खुद हुकम सिंह ने भी मीडिया के सामने माना था कि वह डमी मुख्यमंत्री हैं. उस समय हरियाणा के राज्यपाल धनिकलाल मंडल थे. हुकम सिंह से उनकी अच्छी बनती थी.
धनिकलाल ने यूं ही बात-बात में एक बार हुकम सिंह से कहा कि यदि कोई आपके सीएम पद से इस्तीफा देना का दबाव बनाए, तो आप ऐसा मत कीजिएगा क्योंकि छह माह तक तो मैं आपको बहुमत नहीं होने पर भी मुख्यमंत्री के पद पर रख सकता हूं. इस पर हुकम सिंह ने कहा था कि मुझे सीएम की कुर्सी का लालच नहीं है. मैं इस्तीफा अपनी जेब में रखकर चलता हूं. मुझसे देवीलाल जब भी कहेंगे सीएम की कुर्सी छोड़ दूंगा. भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद केंद्र में जब वीपी सिंह की सरकार 7 नवंबर 1990 को गिर गई तो देवीलाल हरियाणा में एक बार फिर अपने बेटे ओपी चौटाला को सीएम बनाने के बारे में सोचने लगे. उन्होंने सिर्फ एक इशारा किया और हुकम सिंह ने हरियाणा की सत्ता ओमप्रकाश चौटाला को सौंप दिया था. हुकम सिंह 17 जुलाई 1990 से 22 मार्च 1991 तक मुख्यमंत्री रहे.