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Haryana Elections Result 2024: पिता और दादा भी रहे बड़े लीडर... फिर भी रेवाड़ी में कैसे हारे Lalu Yadav के दामाद Chiranjeev Rao, जानिए

Haryana Assembly Elections Result 2024: चिरंजीव राव 2019 में पहली बार रेवाड़ी के विधायक बने थे. उन्होंने कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट से बीजेपी का विधायक हटाया था. लेकिन इस बार वह अपनी सीट नहीं बचा सके और बड़े अंतर से हार गए.

चिरंजीव राव 2019 में पहली बार विधायक बने थे. चिरंजीव राव 2019 में पहली बार विधायक बने थे.
हाइलाइट्स
  • 2019 में कांग्रेस विधायक बने थे चिरंजीव

  • इस बार 28,000 से ज्यादा वोटों से मिली हार

करीब दो महीने पहले हरियाणा के उप-मुख्यमंत्री के पद पर दावा ठोकने वाले कांग्रेस नेता चिरंजीव राव को विधानसभा चुनाव में रेवाड़ी सीट पर करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. चिरंजीव राव को 54,978 वोट मिले, जबकि भारतीय जनता पार्टी के विजयी उम्मीदवार लक्ष्मण सिंह यादव को उनसे 28,769 ज्यादा यानी 83,747 वोट मिले. 

साल 2019 में रेवाड़ी से विधायक बनने वाले चिरंजीव ने इस बार अपनी विधानसभा से वादा किया था कि अगर वह चुनाव जीतते हैं तो उप-मुख्यमंत्री की सीट रेवाड़ी लेकर आएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. आखिर कांग्रेस की 'लहर' के बावजूद चिरंजीव ग्रैंड ओल्ड पार्टी की मजबूत सीट कैसे हार गए?

लालू के दामाद हैं चिरंजीव,  भाजपा से छीना था कांग्रेस का गढ़
जब चिरंजीव 2019 में पहली बार राजनीतिक अखाड़े में उतरे तो उन्हें लालू प्रसाद यादव के दामाद और उनकी छठी बेटी अनुष्का यादव के पति के तौर पर पहचाना गया था. लेकिन रेवाड़ी में मजबूत जीत हासिल कर चिरंजीव ने अपने लिए एक पहचान बनाई थी. दरअसल दक्षिण हरियाणा में मौजूद रेवाड़ी को हमेशा से कांग्रेस की मजबूत सीट माना जाता रहा है. 

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साल 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में यहां चिरंजीव राव और राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती के बीच भिड़ंत होने वाली थी. लेकिन बीजेपी ने एक ही परिवार के दो लोगों को टिकट न देने का फैसला किया. अंततः राव इंद्रजीत के गुट के ही सुनील मूसेपुर को टिकट दिया गया. चिरंजीव के लिए मुकाबला तब मुश्किल हो गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने चुनाव प्रचार के आखिरी दिन रेवाड़ी में बीजेपी के लिए चुनाव प्रचार कर दिया.

मूसेपुर और चिरंजीव के बीच इस सीट पर कांटे की टक्कर देखने को मिली लेकिन आखिरकार कांग्रेस नेता 1300 वोटों से जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे. उन्होंने जीत के बाद कहा था, "मैं यह सीट अपने पार्टी कार्यकर्ताओं की वजह से जीता हूं, जिन्होंने मुझपर विश्वास किया." 

पिता-दादा भी रह चुके हैं बड़े लीडर
रेवाड़ी को दरअसल कांग्रेस का गढ़ इसलिए कहा जाता है क्योंकि राव परिवार लंबे समय से यहां जीतता चला आ रहा है. साल 1967 से अब तक कांग्रेस ने नौ बार यह सीट जीती है. और इनमें से सात बार राव परिवार का कोई सदस्य ही उम्मीदवार रहा है. यह सिलसिला सबसे पहले 1972 में शुरू हुआ जब चिरंजीव के दादा अभय सिंह ने कांग्रेस नेता सुमित्रा देवी की जगह लेते हुए रेवाड़ी में जीत हासिल की.  

अगले 15 साल तक यहां कांग्रेस सरकार नहीं आई लेकिन 1991 में चिरंजीव के पिता अजय सिंह यादव कांग्रेस के टिकट से बाजी मारने में कामयाब रहे. अजय अगले 25 सालों तक रेवाड़ी में विधायक बने रहे. इस दौरान उन्होंने हरियाणा के कैबिनेट में ऊर्जा मंत्रालय (2005-09) और सिंचाई मंत्रालय (2009-14) भी संभाला. लेकिन 2014 में बीजेपी के रणधीर सिंह ने उन्हें सत्ता से हटा दिया. 

पहली जीत के बाद कैसे हारे चिरंजीव?
साल 2019 के चुनाव तक 61 साल के हो चुके अजय सिंह यादव ने रेवाड़ी की सीट अपने बेटे को सौंप दी. पहली बार में चिरंजीव चुनाव जीतने में कामयाब भी रहे लेकिन दूसरे चुनाव में उन्हें करारी हार मिली है. राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि 2019 में चिरंजीव की जीत का सबसे बड़ा कारण बीजेपी में आई फूट रही.

बीजेपी ने 2014 में जीत हासिल करने वाले रणधीर सिंह को टिकट न देकर 2019 में मूसेपुर पर भरोसा जताया था. जब चुनावी नतीजे आए तो चिरंजीव को 27.82 प्रतिशत वोट मिले थे. मूसेपुर को 23.33 प्रतिशत वोट मिले थे. और बीजेपी से टिकट कटने के बाद मैदान में निर्दलीय उतरे रणधीर सिंह को 23.33 प्रतिशत वोट मिले थे. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना था कि अगर रणजीत और मूसेपुर के वोटरों को मिला दिया जाता तो चिरंजीव की हार सुनिश्चित थी. 

विशेषज्ञों की मानें तो इस बार जहां बीजेपी भी अपने वोटरों को जोड़ने में कामयाब रही, वहीं उप-मुख्यमंत्री पद की दावेदारी करना भी चिरंजीव के हित में नहीं गया. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा की राजनीति के एक्सपर्ट बताते हैं कि उप-मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी आकांक्षाएं जाहिर करने से न सिर्फ चिरंजीव के अभियान से फोकस हटा, बल्कि उनके कैंपेन की एकता भी भंग हुई.