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HP Chunav Results 2022: हिमाचल प्रदेश में नहीं बदला रिवाज, क्या है कांग्रेस की जीत का सियासी संदेश

Himachal Election Results 2022: हिमाचल प्रदेश में पिछले 37 सालों का रिकॉर्ड कामय है. 5 साल के बाद जनता ने एक बार फिर सरकार बदल दी है. कांग्रेस की जीत में ओपीएस, अग्निवीर, महंगाई और बेरोजगारी मुद्दों ने अहम भूमिका निभाई. इसके अलावा वीरभद्र सिंह का नाम भी कांग्रेस के काम आया.

Congress workers distribute sweets as they celebrate the party's lead in the Himachal Pradesh Assembly elections, in Shimla Congress workers distribute sweets as they celebrate the party's lead in the Himachal Pradesh Assembly elections, in Shimla
हाइलाइट्स
  • हिमाचल प्रदेश में नहीं बदला रिवाज

  • बनने जा रही है कांग्रेस की सरकार

हिमाचल प्रदेश में रिवाज बरकरार है. जनता ने एक बार फिर 5 साल के बाद सरकार बदल दी है. बीजेपी सूबे में दोबारा सत्ता में आने में नाकाम रही. कांग्रेस ने 40 सीटें जीतकर बहुमत हासिल कर लिया है. 68 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी है, जबकि बीजेपी दूसरे नंबर पर खिसक गई है. आम आदमी पार्टी का खाता नहीं खुल पाया है. हिमाचल प्रदेश के चुनावी नतीजों से सियासी दलों को साफ संदेश गया है कि सिर्फ नाम से काम नहीं चलेगा. जनता का मन जीतने के लिए काम भी करना जरूरी है. 

हिमाचल प्रदेश में रिवाज बरकरार-
हिमाचल प्रदेश में चुनाव रिवाज बदलने के लिए लड़ा गया था. लेकिन जनता ने रिवाज बकरार रखा है. इस पहाड़ी राज्य में 37 साल का रिकॉर्ड कामय है. जनता ने एक बार फिर सरकार बदल दी है. साल 1985 के बाद से कोई भी दल दोबारा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है. हर बार सरकार बदली है. कई अहम चुनावी मुद्दों के बावजूद बीजेपी की सरकार दोबारा नहीं आ पाई है.

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत के कारण-
हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है. कांग्रेस ने 40 सीटों पर जीत दर्ज की है. जबकि बीजेपी 25  सीट जीत सकी है. इस बार के चुनाव में हिमाचल प्रदेश में स्थानीय मुद्दे हावी रहे. स्थानीय मुद्दों पर ही चुनाव लड़ा गया. जनता ने चेहरे से लेकर हिंदुत्व के मुद्दे को नकार दिया. चलिए आपको बताते हैं कि किन मुद्दों की वजह से कांग्रेस बहुमत की सरकार बनाने जा रही है.

महंगाई-बेरोजगारी मुद्दा-
हिमाचल प्रदेश के चुनाव में महंगाई और बेरोजगारी बड़ा मुद्दा रहा. कांग्रेस ने इन मुद्दों को जोरशोर से उठाया. जनता ने इन मुद्दों को पसंद किया. जबकि बीजेपी महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश करती रही. जिसका खामियाजा उसे चुनाव में उठाना पड़ा.

हिंदुत्व का मुद्दा नहीं चला-
हिमाचल प्रदेश में मुस्लिम आबादी काफी कम है. जिसके चलते उनसे संबंधित मुद्दे चुनावों में कोई प्रभाव नहीं दिखा पाए. इस पहाड़ी राज्य में बीजेपी की ध्रुवीकरण की रणनीति काम नहीं आई. वोटर्स ने इस मुद्दों को नकार दिया.

OPS मुद्दा बीजेपी पर पड़ा भारी-
इस चुनाव में ओल्ड पेंशन स्कीम का मुद्दा उठाया गया. कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान जोरशोर से इस मुद्दे को उठाया और वादा किया कि सरकार बनेगी तो ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू किया जाएगा. जबकि बीजेपी ने इस मुद्दे पर गोलमोल जवाब देती नजर रही. जिसका नुकसान चुनाव में उठाना पड़ा. आपको बता दें कि 2004 में ओल्ड पेंशन स्कीम को बंद कर दिया गया था. हिमाचल प्रदेश में 4.5 लाख सरकारी कर्चमारी हैं.

वीरभद्र सिंह और जीएस बाली का चला नाम-
हिमाचल प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलता दिख रहा है. इस बार चुनाव में कांग्रेस के साथ लोगों की सहानुभूति भी थी. चुनाव से पहले सूबे के सबसे ज्यादा समय तक सीएम रहने वाले वीरभद्र सिंह का निधन हो गया. इतना ही नहीं, सूबे के एक और बड़े नेता जीएस बाली भी दुनिया से चले गए. इस तरह से कांग्रेस के साथ जनता की सहानुभूति भी रही.

प्रियंका गांधी ने लोकल नेताओं पर जताया भरोसा-
हिमाचल प्रदेश के चुनाव में प्रियंका गांधी ने खूब प्रचार किया. उन्होंने प्रचार के दौरान कई बार शिमला वाले अपने घर का भी जिक्र किया और जनता से कनेक्ट करने की कोशिश की. हिमाचल में प्रचार की जिम्मेदारी भी प्रियंका गांधी नहीं ही संभाली. राहुल गांधी ने तो इस पहाड़ी राज्य में एक दिन भी प्रचार नहीं किया. प्रियंका गांधी ने लोकल नेताओं पर भरोसा जताया और उनकी मदद से मैदान मार लिया.

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत के संदेश
हिमाचल प्रदेश में जीत ने एक तरफ कांग्रेस को संजीवनी दी है तो दूसरी तरफ बीजेपी को सोचने पर मजबूर कर दिया. बीजेपी के लिए साफ संदेश है कि चुनाव सिर्फ चेहरे पर नहीं लड़ा जा सकता है. जनता के मुद्दों को भी उठाना पड़त है. चलिए आपको बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत में क्या संदेश छिपा है.

सिर्फ पीएम मोदी का चेहरा काफी नहीं-
हिमाचल प्रदेश के नतीजे ने साफ कर दिया कि सिर्फ एक चेहरे के भरोसे चुनाव नहीं जीता जा सकता. बीजेपी पूरी तरह से पीएम मोदी के चेहरे पर निर्भर रही. पीएम मोदी के छवि को भुनाने में जुटी रही. इस दौरान बीजेपी ने किसी दूसरे चेहरे पर फोकस नहीं किया. पीएम मोदी ने एक रैली में कहा था कि विधानसभा उम्मीदवार को मत देखिए, सिर्फ कमल पर ठप्पा लगाओ तो वह मोदी को वोट मिलेगा. सिर्फ पीएम मोदी के चेहरे पर निर्भरता बीजेपी को भारी पड़ी.

मुद्दों को नजरअंदाज नहीं कर सकते-
हिमाचल के नतीजों से एक संदेश ये भी गया है कि जनता से जुड़े मुद्दों को नजरअंदाज नहीं कर सकते. महंगाई, बेरोजगारी, ओपीएस और अग्निवीर के मुद्दे से सरकार का मुंह मोड़ना बीजेपी पर भारी पड़ गया. जहां सरकारी कर्मचारी ओपीएस चाहते थे. वहीं युवा अग्निवीर योजना से नाराज थे. बीजेपी इन दोनों वर्गों को साधने के लिए कुछ नहीं कर पाई. 

उम्मीदवार की निजी पहचान भी अहम-
हिमाचल प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस की तरफ से शीर्ष नेतृत्व का ज्यादा दखल नहीं रहा. स्थानीय नेताओं ने अपनी राजनीतिक क्षमता में चुनाव लड़ा. उनकी निजी और क्षेत्रीय पहचान ने भी चुनावी नतीजों में अहम भूमिका निभाया. इलाके में कैंडिडेट की अपनी पकड़ ने नतीजों को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया.

2024 आम चुनाव के लिए संदेश-
हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की चार सीटें है. लेकिन इस छोटे से प्रदेश ने सियासी दलों को 2024 आम चुनाव के लिए एक संदेश जरूर दिया है कि जनता के मुद्दों से भटकना नुकसानदायक हो सकता है. अगर बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाए तो जीत हासिल की जा सकती है.

जीत में कांग्रेस के लिए बड़ा संदेश-
हिमाचल प्रदेश के चुनाव में दो पार्टियों में लड़ाई रही. जिसमें कांग्रेस ने बाजी मार ली और बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. इसका मतलब है कि आमने-सामने की लड़ाई में कांग्रेस बीजेपी को टक्कर दे सकती है और हरा भी सकती है. जिन जगहों पर त्रिकोणीय मुकाबला होता है, वहां कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ रहा है. दिल्ली एमसीडी चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले में आम आदमी पार्टी की जीत हो गई. जबकि गुजरात में साल 2017 विधानसभा चुनाव में दो पार्टियां आमने-सामने थीं तो कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था. लेकिन इस बार जब लड़ाई बीजेपी, कांग्रेस और AAP के बीच हुई तो बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की.

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