हिमाचल प्रदेश की सियासत का वो नेता, जो 2 बार सूबे का मुख्यमंत्री बना. लेकिन जब तीसरी बार कमान संभाली की बारी आई तो खुद विधानसभा का चुनाव हार गए. जी हां, हम बात प्रेम कुमार धूमल की कर रहे हैं. धूमल ने कानून की पढ़ाई की. उसके बाद प्रोफेसर बन गए और कॉलेज में पढ़ाने लगे. लेकिन उनका मन तो सियासी दांव-पेंच में लगता था. फिर क्या था, धूमल ने सियासी मोर्चा संभाल लिया और सूबे के सबसे बड़े राजनीतिक पद तक पहुंच गए. चलिए आपको प्रेम कुमार धूमल की कहानी बताते हैं.
धूमल का छात्र जीवन-
प्रेम कुमार धूमल का जन्म 10 अप्रैल 1944 को हमीरपुर के समीरपुर गांव में हुआ था. इनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई भगवाड़ा में हुई. धूमल ने मैट्रिक की पढ़ाई हमीपुर से ही पूरी की. साल 1970 में धूमल ने जालंधर के दोआबा कॉलेज में अंग्रेजी से एमए में पहला स्थान हासिल किया. धूमल ने गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर से एलएलबी की पढ़ाई की. प्रेम कुमार धूमल सियासत में आने से पहले प्रोफेसर थे. धूमल ने पढ़ाई पूरी करने के बाद पंजाब विश्वविद्यालय में प्रवक्ता के तौर पर ज्वाइन किया था. नौकरी करते हुए उन्होंने एलएलबी की डिग्री हासिल की.
धूमल को 1984 में मिला चुनाव लड़ने का मौका-
प्रेम कुमार धूमल वैसे तो सियासत में काफी वक्त से सक्रिय थे. लेकिन उनकी पहली बार चुनाव लड़ने का मौका साल 1984 में मिला. उस वक्त बीजेपी विधायक जगदेव चंद्र ने हमीरपुर में लोकसभा का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया तो बीजेपी किसी और चेहरा की तलाश करने लगी और धूमल में उनको वो चेहरा दिखा. धूमल को लोकसभा चुनाव का टिकट मिल गया. लेकिन धूमल को हार का सामना करना पड़ा. लेकिन साल 1989 में एक बार बीजेपी ने धूमल पर हमीरपुर में दांव लगाया. इसपर धूमल ने पार्टी को निराश नहीं किया और हमीरपुर से जीत हासिल की. इस तरह से प्रेम कुमार धूमल ने सियासत में जीत की शुरुआत की. साल 1991 में फिर से धूमल लोकसभा पहुंचे. साल 1993 में धूमल को हिमाचल बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया.
नरेंद्र मोदी से दोस्ती आई काम, बन गए सीएम-
साल 1998 में हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए. इसमें बीजेपी ने प्रेम कुमार धूमल के नाम पर जीत हासिल की थी. लेकिन धूमल को बीजेपी की अगुवाई करने का मौका कैसे मिला? इस कहानी में नरेंद्र मोदी की दोस्ती का अहम रोल है. सूबे में कांग्रेस की सरकार थी. चुनाव होने वाले थे. बीजेपी अपने नेता की तलाश कर रही थी. नरेंद्र मोदी हिमाचल बीजेपी के प्रभारी थे. बीजेपी का लीडर चुनने के लिए एक बैठक हुई. इस बैठक में शांता कुमार ने टीम की अगुवाई करने से इनकार कर दिया. फिर क्या थे, प्रभारी नरेंद्र मोदी ने नया लीडर चुनने को लेकर केंद्रीय नेतृत्व को मना लिया. चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी के दोस्त प्रेम कुमार धूमल की अगुवाई में चुनाव में जाने का फैसला हो गया. विधानसभा चुना हुए तो बीजेपी को 31 सीट और कांग्रेस को 32 सीटें मिली. बड़ी पार्टी कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला. वीरभद्र सिंह ने सीएम पद की शपथ ली. लेकिन वो बहुमत साबित नहीं कर पाए और सिर्फ 11 दिन में पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद प्रेम कुमार धूमल को हिमाचल विकास कांग्रेस के 5 विधायकों का समर्थन मिल गया और धूमल सूबे के मुख्यमंत्री बन गए.
प्रेम कुमार धूमल ने 5 साल तक सूबे में सरकार चलाई. बीजेपी में सियासी खींचतान चलती रही. शांता कुमार के समर्थक विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा भी खोला. जिसका नुकसान बीजेपी को साल 2003 विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा. इस चुनाव में धूमल की अगुवाई में बीजेपी की हार हुई. हालांकि प्रेम कुमार ने बमसन से चुनाव जीत गए और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए.
साल 2007 में संसद पहुंचे धूमल-
साल 2007 में क्वेश्चन फॉर कैश का मामला सामने आया. कई सांसदों पर सवाल पूछने के बदले पैसे लेने के आरोप लगे. इस मामले में हमीरपुर के सांसद सुरेश चंदेल का भी नाम सामने आया. चंदेल को इस्तीफा देना पड़ा. हमीपुर में उपचुनाव हुए और प्रेम कुमार धूमल एक बार फिर लोकसभा सांसद बन गए.
दूसरी बार CM बने प्रेम कुमार-
हिमाचल प्रदेश में 2007 में विधानसभा चुनाव हुए. एक बार फिर धूमल की अगुवाई में बीजेपी मैदान में उतरी और इस बार बंपर जीत हासिल की. बीजेपी को 41 सीटों पर जीत मिली. दूसरी बार प्रेम कुमार धूमल हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए. साल 2012 तक धूमल सीएम पद पर रहे.
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार हुई और कांग्रेस के वीरभद्र सिंह एक बार फिर सीएम बने. साल 2017 में एक बार फिर विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी को बड़ी जीत मिली. लेकिन इस बार धूमल अपना चुनाव हार गए. उसके बाद धूमल लगातार सियासत से दूर होते गए.
धूमल की फैमिली-
प्रेम कुमार धूमल की शादी शीला से हुई है. धूमल के दो बेटे अरुण ठाकुर और अनुराग ठाकुर हैं. धूमल के छोटे बेटे अनुराग ठाकुर भी सियासत में सक्रिय हैं और केंद्रीय मंत्री हैं. जबकि बड़े बेटे अरुण ठाकुर बीसीसीआई में सक्रिय रहे हैं.
ये भी पढ़ें: