scorecardresearch

Himachal Election 2022: 13 साल में राजगद्दी, 27 साल में सियासत में इंट्री, 49 साल में सीएम... जानिए वीरभद्र सिंह की कहानी

Himachal Pradesh Assembly Election: सबसे ज्यादा वक्त तक हिमाचल प्रदेश में सत्ता संभालने वाले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह थे. वो करीब 22 साल तक सूबे के मुख्यमंत्री रहे. राजा साहब के नाम से मशहूर वीरभद्र सिंह ने 14 बार चुनाव लड़ा. 27 साल की उम्र में सियासत में इंट्री करने वाले वीरभद्र सिंह 6 बार हिमाचल प्रदेश के सीएम रहे.

हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह (फाइल फोटो) हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
  • 13 साल में बुशहर रियासत के राजा बन गए थे वीरभद्र सिंह

  • वीरभद्र ने 27 साल की उम्र में सियासत में इंट्री की थी

हिमाचल प्रदेश की सियासत में वीरभद्र सिंह एक वटवृक्ष की तरह थे. उनका सियासी सफर काफी लंबा रहा. उन्होंने 60 साल तक सूबे की सेवा की. इस दौरान उन्होंने कई चुनाव लड़े. सिर्फ 27 साल की उम्र में वीरभद्र सिंह ने सियासत में इंट्री ली और उसके बाद फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वो सांसद, विधायक और मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री तक का पद भी हासिल किया. राजा साहब के नाम से मशहूर वीरभद्र सिंह 6 बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इस दौरान उन्होंने सूबे के विकास के लिए कई योजनाएं चलाई और उसका फायदा आम जनता को हुआ. चलिए आपको हिमचाल प्रदेश में सबसे ज्यादा वक्त तक सियासी गलियारों में चहल-कदमी करने वाले लीडर वीरभद्र सिंह के किस्से बताते हैं.

वीरभद्र सिंह की पढ़ाई-लिखाई
23 जून 1934 को वीरभद्र सिंह का जन्म बुशहर राज परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम राजा पदमदेव सिंह था. जबकि मां का नाम शांति देवी था. वीरभद्र की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई शिमला के बिशप कॉटन स्कूल में हुई. हालांकि बाद में उनको पढ़ाई के लिए दिल्ली भेज दिया गया. वहां वीरभद्र सिंह ने सेंट स्टीफन कॉलेज से बीए ऑनर्स की डिग्री हासिल की. इसके बाद एमए की पढ़ाई की. वीरभद्र सिंह प्रोफेसर बनना चाहते थे. उनको इतिहास पढ़ाना अच्छा लगता था. लेकिन भाग्य को कुछ और मंजूर था. साल 2019 में शिमला में एक जनसभा में इसका जिक्र किया था.

नाबालिग वीरभद्र को बनना पड़ा राजा-
वीरभद्र सिंह का बचपन अभी पूरी तरह से गुजरा भी नहीं था कि उनको एक बड़े आघात का सामना करना पड़ा. जब वो सिर्फ 13 साल के थे तो उनके पिता पदमदेव सिंह का निधन हो गया. ये साल 1947 का था. राज परिवार की परंपरा के मुताबिक नाबालिग वीरभद्र सिंह को राजगद्दी संभालनी पड़ी. इतनी छोटी उम्र में उनको बुशहर रियासत का राजा बनाया गया. वीरभद्र सिंह कृष्ण वंश के 122वें राजा बनाए गए थे. 

राजा साहब ने 2 शादी की-
राजा साहब वीरभद्र सिंह ने दो शादियां की थी. साल 1954 में जब वो सिर्फ 20 साल के थे तो उनकी शादी जुब्बल की राजकुमारी रतन कुमारी से हो गई. वीरभद्र सिंह और रतन कुमारी की 4 बेटियां हैं. राजा साहब की पत्नी रतन कुमारी एक ऐसी बीमारी से पीड़ित थीं, जिसकी वजह से उनको 24 साल तक बिस्तर पर पड़े रहना पड़ा. आखिरकार उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. साल 1985 में 51 साल की उम्र में वीरभद्र सिंह ने दूसरी शादी प्रतिभा सिंह से की. उनका बेटा विक्रमादित्य सिंह सियासत में सक्रिय हैं.

27 साल की उम्र में सियासत में इंट्री-
वीरभद्र सिंह प्रोफेसर बनना चाहते थे. लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था. वीरभद्र सिंह को राजनीति में लाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं. साल 1959 में इंदिरा के कहने पर वीरभद्र सिंह दिल्ली में हिमाचल प्रदेश लौट गए और जनता के बीच सक्रिय हो गए. साल 1962 का आम चुनाव हुए तो वीरभद्र सिंह को कांग्रेस ने महासू से उम्मीदवार बनाया. वीरभद्र सिंह ने इस चुनाव में बड़ी जीत हासिल की और पहली बार लोकसभा पहुंचे. 
साल 1976 और 1972 में मंडी से लोकसभा पहुंचे. आपातकाल के बाद साल 1977 में हुए चुनाव में वीरभद्र सिंह की हार हुई. साल 1980 में जब फिर से लोकसभा चुनाव हुए तो वीरभद्र सिंह की जीत हुई. इसका इनाम भी उनको जल्द ही मिल गया. साल 1982 में इंदिरा गांधी की सरकार में उनको उद्योग राज्य मंत्री बनाया गया. 

पहली बार सूबे के सीएम बने वीरभद्र-
साल 1983 में कांग्रेस की ठाकुर राम लाल की सरकार पर घोटाले के आरोप लगे. इसको लेकर खूब हंगामा हुआ. कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में सीएम बदलने का फैसला किया और सूबे की कमान पहली बार वीरभद्र सिंह के हाथ में आई. साल 1985 में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस की जीत हुई और वीरभद्र सिंह दूसरी बार सीएम बने. उसके बाद से हिमाचल प्रदेश में कभी भी सरकार रिपीट नहीं हुई और जब भी कांग्रेस की सरकार बनी, वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने.

6 बार सीएम बने राजा साहब-
धीरे-धीरे वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश की राजनीति के पर्याय बन गए. राजा साहब साल 1983 से 1990 के बीच 6 साल 331 दिन तक लगातार दो बार मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और बीजेपी के शांता कुमार सीएम बने. लेकिन साल 1993 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए. जिसमें कांग्रेस की जीत हुई और 31 दिसंबर 1993 को वीरभद्र सिंह फिर मुख्यमंत्री बने. इस बार वो 24 मार्च 1998 तक इस पद पर रहे. लेकिन 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार चली गई और बीजेपी के प्रेम कुमार धूमल सीएम बन गए. लेकिन राजा साहब ने फिर से जबर्दस्त वापसी की और 2003 विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और सूबे की कमान संभाली. 30 दिसंबर 2007 तक वो मुख्यमंत्री रहे. लेकिन जब विधानसभा के चुनाव हुए तो पार्टी की हार हुई और सूबे की कमान बीजेपी के हाथ में चली गई. 
विपक्ष में 5 साल तक वीरभद्र सिंह ने संघर्ष किया और जनता ने इस संघर्ष का इनाम भी दिया. 2012 विधानसभा चुनाव में राजा साहब की अगुवाई में एक बार फिर कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की और सूबे की बागडोर वीरभद्र सिंह को सौंपी गई. साल 2017 तक वीरभद्र सिंह सीएम रहे. लेकिन 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी हार गई और बीजेपी के जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बन गए.
जब भी हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता आई. वीरभद्र सिंह को सूबे की कमान सौंपी गई. लेकिन जब पार्टी विपक्ष में रहती थी तो वीरभद्र सिंह को केंद्र में बुला लिया जाता था. यूपीए सरकार में 2009 से 2011 तक वीरभद्र सिंह कैबिनेट मंत्री रहे. राजा साहब चार बार 1967, 1971, 1980 और 2009 में लोकसभा सांसद रहे.

ये भी पढ़ें: