अमिताभ बच्चन की सरकार फिल्म तो आप सबने देखी होगी. सरकार फिल्म चुनाव और उसमें होने वाले क्राइम के इर्द-गिर्द घूमती है. कल से पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव शुरू होने वाले है. कल पहले चरण का मतदान होगा. लेकिन जरा एक परिस्थिति के बारे में सोचिए कि अगर आपका वोट कोई और डाल कर चला जाए तो क्या हो. इसे वोट की चोरी होना कहा जाता है. ऐसे में आप टेंडर वोट डाल सकते हैं. तो चलिए आज आपको बताते हैं कि आखिर ये टेंडर वोट है क्या?
क्या है टेंडर वोट?
अगर किसी परिस्थिति में आपका वोट कोई और डाल दे, तो धारा 49(पी) के तहत इसे वोट का चोरी होना कहा जाता है. चुनाव आयोग ने साल 1961 में धारा को संशोधित कर इसे शामिल किया था. अब इस धारा के तहत वोट करने के असल हकदार को दोबारा से वोट करने का अधिकार दिया जा सकता है. इसे टेंडर वोट कहा जाता है.
कैसे करें इस धारा का इस्तेमाल?
अगर कोई दूसरा व्यक्ति फर्जी तरीके से आपका वोट डाल दे तो धारा 49(पी) के जरिए इस वोट को निरस्त किया जा सकता है. इसके बाद असल मतदाता को दोबारा वोट करने का मौका मिलता है. जो भी व्यक्ति धारा 49 (पी) का इस्तेमाल करना चाहता है, वो सबसे पहले अपनी वोटर आईडी पीठासीन अधिकारी को दिखाएं. इसके बाद फॉर्म 17 (बी) पर भी हस्ताक्षर कर जमा करना होता है. जिसके बाद बैलेट पेपर को मतगणना केंद्र में भेजा जाता है. धारा 49 (पी) का इस्तेमाल करते हुए कोई व्यक्ति ईवीएम के जरिए वोट नहीं डाल सकता है.
वोट को चुनौती देना है जरूरी
बहुत से लोग को इस बारे में पता नहीं होता है. इसलिए इस बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरूकता फैलाने की जरूरत है. कई बार ऐसा भी होता है कि फर्जी वोट की शिकायत वोटिंग एजेंट के पास भी कर सकते हैं. इसके लिए पोलिंग एजेंट को फॉर्म 14 और महज दो रुपए जमा कर पीठासीन अधिकारी के पास शिकायत दर्ज करनी होगी. जिसके बाद पीठासीन अधिकारी या तो गांव वालों की मौजूदगी में या फिर इलाके के राजस्व अधिकारी की मौजूदगी में जांच करेगा. अगर फर्जी वोट की पहचान हो जाती है तो जिसके नाम से वोट गया है, पीठासीन अधिकारी उसे मत देने का अधिकार देगा. लेकिन अगर फर्जी वोट की पहचान नहीं होती है तो पीठासीन अधिकारी या तो शिकायतकर्ता के खिलाफ मामला दर्ज कर सकता है या पोलिंग एजेंट को दो रुपए देकर मामला खत्म कर सकता है.
टेंडर वोट में क्या है बड़ा पेंच?
टेंडर वोट के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि कोई भी व्यक्ति भले ही अपना वोट दोबारा डाल दे लेकिन चुनाव आयोग इसकी गिनती नहीं करता. बहुत ही विषम परिस्थिति में इसकी गिनती होती है. हालांकि इसका महत्व इतना भी कम नहीं हो जाता. मतगणना के समय जब ईवीएम में डाले गए वोटों की गिनती होती है तो अगर पहले दो प्रतिभागियों के बीच वोटों का अंतर कम होता है तो बैलेट वोटों की गिनती होती है. उसके बाद भी अगर अंतर कम ही रहता है तो टेंडर वोटों को शामिल किया जाता है. साल 2008 में हुए विधानसभा चुनावों में राजस्थान हाईकोर्ट ने टेंडर वोट को गिनती में शामिल करने का फैसला दिया था.