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चुनावी किस्से: सिर्फ एक दिन के लिए यूपी के मुख्यमंत्री बने थे जगदंबिका पाल, 24 घंटे बाद देना पड़ा था इस्तीफा

21 फरवरी 1998 को तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को पद से बर्खास्त कर दिया था. जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. पाल विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर सके थे और उनकी कुर्सी चली गई थी. कल्याण सिंह के पक्ष में 215 वोट जबकि जगदंबिका पाल को 196 वोट मिले थे.

जगदंबिका पाल जगदंबिका पाल
हाइलाइट्स
  • जगदंबिका पाल सिर्फ 24 घंटे ही सीएम की कुर्सी पर बैठ सके

  • विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर सके थे जगदंबिका पाल

  • 2014 में कांग्रेस से फिर भाजपा में लौट आए थे पाल

नायक फिल्म देखी है आपने? अगर देखी है तो ठीक और नहीं देखी तो आपको बता दें कि इस फिल्म में अनिल कपूर 24 घंटे के लिए मुख्यमंत्री बनते हैं. इसके आगे वो जो कुछ करते हैं वो अलग. इस फिल्म की बात यहां इसलिए क्योंकि हिंदुस्तान में चुनाव के लिहाज से सबसे बड़ी धाक रखने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में एक ऐसे नेता रहे जो एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बने और 24 घंटे बाद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ गई. उस नेता का नाम है जगदंबिका पाल. पूरी कहानी आगे बताएंगे लेकिन उससे पहले यह बता दें कि जब सीएम बने थे तब पाल कांग्रेस के पाले में चले गए थे और आज भाजपा के टिकट पर लोकसभा सांसद हैं.

हिंदुस्तान की राजनीति के इतिहास को पलटेंगे तो पता चलेगा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी किसी चुंबक से कम नहीं होती. जो एक बार बैठ जाए, उठना नहीं चाहता. मुख्यमंत्री की कुर्सी की लड़ाई भी अलग ही है. लेकिन, आखिर ऐसा क्या हुआ कि जगदंबिका पाल सबसे बड़े चुनावी राज्य यूपी के मुख्यमंत्री बने लेकिन इसके अगले ही दिन उनसे मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन गई? जाहिर है राजनीतिक उठापटक जबरदस्त रही होगी. आखिर यह परिस्थिति कैसे बनी और इसकी पूरी कहानी क्या है, आइये जानते हैं.

ये था पूरा वाकया-
21 फरवरी 1998. तब यूपी के राज्यपाल रोमेश भंडारी हुआ करते थे. उनके एक फैसले से सभी हैरत में पड़ गए थे. उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को पद से बर्खास्त कर दिया था. जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. दरअसल, जगदंबिका पाल यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे और उनके पास परिवहन विभाग जैसी बड़ी जिम्मेदारी थी. यूपी की राजनीति पर मजबूत पकड़ रखने वाले लोग बताते हैं कि उस वक्त रोमेश भंडारी ने जगदंबिका पाल को फ्री हैंड दे दिया था. उनकी मदद से ही जगदंबिका पाल को 22 फरवरी को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली. जगदंबिका पाल के बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने सभी विपक्षी पार्टियों से मदद मांगी थी और कई बड़े नेताओं से उनकी सीधी बात भी हुई थी. वे पूरी तरह से इस कोशिश में थे कि कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सके. पाल सीएम तो बन गए लेकिन कुर्सी नहीं बचा सके.

कल्याण सिंह ने साबित कर दी बहुमत, सीएम की कुर्सी से उतर गए जगदंबिका पाल
आगे हुआ यूं कि भाजपा ने राज्यपाल के फैसले का पुरजोर विरोध किया और अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रदर्शन का जिम्मा उठाया. जमकर प्रदर्शन हुआ और मामला हाई कोर्ट तक भी पहुंच गया. हाई कोर्ट से कल्याण सिंह को राहत मिली और कोर्ट ने राज्यपाल के उस फैसले को ही खारिज कर दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि कल्याण सिंह ही मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन, कोर्ट की तरफ से ये फैसला आने के बाद भी विवाद नहीं थमा था. 26 फरवरी को कल्याण सिंह को बहुमत साबित करना था. स्थिति पक्ष में जरूर दिख रही थी लेकिन अगर पर्याप्त विधायक नहीं होते तो कल्याण सिंह के लिए मुश्किल हो जाती. हालांकि, ऐसा कुछ नहीं हुआ. कल्याण सिंह को कुल 215 मत मिले. वहीं, जगदंबिका पाल को 196 वोट मिले. कल्याण सिंह दोबारा यूपी के मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन ये घटना अपने आप में इतिहास बन गई.

जगदंबिका पाल 24 घंटे मुख्यमंत्री तो रहे लेकिन, ऐसा कुछ नहीं कर सके कि किसी खास बात के लिए उन्हें याद किया जा सके, सिवाय इसके कि वो एक यूपी के सीएम रहे. जगदंबिका पाल यूपी के 17वें मुख्यमंत्री बने थे. जगदंबिका पाल उस वक्त कांग्रेस में चले गए थे लेकिन बाद में फिर से भाजपा में आ गए. 2014 में भाजपा में लौटे और डुमरियागंज से चुनाव लड़ा और जीते. वर्तमान में भी डुमरियागंज से सांसद हैं.