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Kashmir Siyasi Kisse: जिस Sheikh Abdullah को Nehru ने 11 सालों तक रखा था जेल में, उसे Indira Gandhi ने बना दिया था जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री, लेकिन क्यों?

Jammu Kashmir Assembly Election 2024: देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद शेख अब्दुल्ला को नजरबंद रखा गया. नजरबंदी का आदेश लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था. पाकिस्तान युद्ध के वक्त अब्दुल्ला को फिर से हिरासत में ले लिया गया था. तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने शेख अब्दुल्ला को साल 1972 में जेल से रिहा करवा दिया था. 

Sheikh Abdullah and Indira Gandhi (File Photo) Sheikh Abdullah and Indira Gandhi (File Photo)
हाइलाइट्स
  • कश्मीर कॉन्सपिरेसी केस के आरोप में शेख अब्दुल्ला को जाना पड़ा था जेल

  • शेख अब्दुल्ला को इंदिरा गांधी ने साल 1972 में जेल से कराया था रिहा 

जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) में विधानसभा चुनाव 2024 (Assembly Election 2024) को लेकर सियासी पारा चरम पर है. सभी दल जीत के लिए जोरशोर से चुनाव प्रचार कर रहे हैं. ऐसे में पुराने सियासी किस्सों को भी लोग याद कर रहे हैं. ऐसा ही एक किस्सा इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) और शेख अब्दुल्ला (Sheikh Abdullah) से जुड़ा हुआ है. जिस शेख अब्दुल्ला को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) ने जेल में बंद कर रखा था, उसके इंदिरा गांधी ने पीएम बनने के बाद जेल से बाहर निकालकर जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री बना दिया था. 

महाराजा हरि सिंह के साथ अच्छ नहीं रहे शेख अब्दुल्ला के संबंध
शेख अब्दुल्ला के कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के साथ संबंध कभी अच्छे नहीं रहे. शेख अब्दुल्ला साल 1946 में ने जम्मू-कश्मीर में महाराजा हरि सिंह के खिलाफ कश्मीर छोड़ो आंदोलन चलाया था, तब महाराजा ने अब्दुल्ला को जेल में डाल दिया था. हालांकि बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू की कोशिशों से शेख अब्दुल्ला 29 सितंबर 1947 को जेल से रिहा हो गए. इसके बाद जब भारत में जम्मू-कश्मीर का विलय हुआ, तब 5 मार्च 1948 को अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री बना दिए गए. 

आपको मालूम हो कि उस समय कश्मीर में मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री शब्द का इस्तेमाल किया जाता था. शेख अब्दुल्ला 1953 तक जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री रहे. आपको मालूम हो कि शेख अब्दुल्ला ने 1932 में ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस नाम से पार्टी बनाई थी. हालांकि उन्हें बाद में अहसास हुआ कि कश्मीर की राजनीति में उनकी धर्मनिरपेक्ष पहचान जरूरी है. यही कारण है कि साल 1939 में उन्होंने अपनी पार्टी के नाम में से मुस्लिम शब्द और राज्य का नाम हटाकर नेशनल कॉन्फ्रेंस कर दिया. 

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नेहरू सरकार ने डाल दिया था जेल में 
शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर का पीएम रहते हुए कश्मीरियों को आत्मनिर्णय का अधिकार देने की वकालत करने लगे, जो वास्तव में अलगाववादी विचार था. 29 सितंबर 1950 को शेख अब्दुल्ला अमेरिकी राजदूत लॉय हेंडरसन से मिले और कहा कि उनकी राय में कश्मीर को आजाद हो जाना चाहिए. यहां के ज्यादातर लोग ऐसा ही चाहते हैं. अक्टूबर 1951 को एक भाषण में तो उन्होंने अपनी इच्छा साफ़ तौर पर जाहिर कर दी. उन्होंने कहा कि हम खुद को पूरब का स्विट्जरलैंड बनाना चाहते हैं. हम दोनों देशों भारत और पाकिस्तान की राजनीति से अलग रहेंगे, लेकिन दोनों से दोस्ताना संबंध रखेंगे. 

शेख अब्दुल्ला के इस तरह के बयानों और विदेशी अधिकारियों से अंदर खाने बातचीत की खबरों के बाद नेहरू चौकन्ने हो गए थे. इसके बाद शेख अब्दुल्ला को साल 1953 में पीएम के पद से हटा दिया गया. उनके स्थान पर बख्शी गुलाम मोहम्मद जम्मू कश्मीर के नए प्रधानमंत्री बनाए गए. गुलाम मोहम्मद को पंडित नेहरू का समर्थन मिला था. इसके पीछे कारण यह था कि पंडित नेहरू शेख अब्दुल्ला की भारतीय लोकतंत्र के प्रति निष्ठा को लेकर संदेह में थे. अब्दुल्ला पर आरोप लगे थे कि वह पाकिस्तान के शासक जनरल अयूब खान से मुलाकातें कर रहे थे. इसके कुछ ही दिनों बाद पंडित नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को कश्मीर-साजिश के आरोप में लगभग 11 सालों के लिए जेल में डाल दिया.

शेख अब्दुल्ला फिर क्यों हुए जेल से रिहा
शेख अब्दुल्ला के करीब 11 साल तक जेल में रहने के बाद सरकार ने उन पर लगे सारे आरोप वापस ले लिए थे. पंडित नेहरू की पहल पर 8 अप्रैल 1964 को शेख अब्दुल्ला को जेल से रिहा किया गया था. कहा जाता है कि पंडित नेहरू तब भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की बेहतरी के लिए अब्दुल्ला का साथ चाहते थे. नेहरू समझ गए थे कि कश्मीर के मसले को अगर हल करना है तो अवाम को बीच में रखना होगा और इसके लिए शेख अब्दुल्ला से बेहतर कौन होता, जो उनकी आवाज़ बनता. लिहाजा शेख अब्दुल्ला जेल से रिहा कर दिया गया. 

नेहरू उनसे और पाकिस्तान से बातचीत को तैयार थे. तब तक अब्दुल्ला भी कश्‍मीर की आजादी के बजाय स्‍वायत्‍ता के समर्थक नजर आने लगे थे. अब वे कश्मीर के रहनुमा की जगह महज एक मध्यस्थ की भूमिका निभाने की चाह रखने लगे थे. 24 मई, 1964 को अब्दुल्ला पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान से मिलने पाकिस्तान गए. दो दिनों तक दोनों के बीच गहन बातचीत हुई. कहा जाता है कि शुरुआती हिचक के बाद अयूब खान भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलने को तैयार हो गए थे. अगले महीने नई दिल्ली में एक बैठक रखी गई, जिसमें शेख अब्दुल्ला भी मौजूद रहते. हालांकि ऐसा हो नहीं पाया. 27 मई 1964 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का निधन हो गया. 

पंडित नेहरू के निधन के बाद शेख अब्दुल्ला को नजरबंद कर दिया गया 
पंडित नेहरू के निधन के बाद शेख अब्दुल्ला को नजरबंद रखा गया. नजरबंदी का आदेश लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था. पाकिस्तान युद्ध के वक्त शेख अब्दुल्ला को फिर से हिरासत में ले लिया गया. इंदिरा गांधी पहली बार 24 जनवरी 1966 को देश का प्रधानमंत्री बनी थीं. इंदिरा गांधी ने शेख अब्दुल्ला को साल 1972 में जेल से रिहा करवा दिया. वे इसी साल जून के तीसरे सप्ताह में श्रीनगर पहुंचे. इसी के साथ उन्होंने अपने पुराने रुख यानी जम्मू-कश्मीर की स्वायत्ता का हल्ला मचाना शुरू कर दिया. इसके बवाजदू इंदिरा गांधी ने 3 मार्च 1975 को शेख अब्दुल्ला की खूब तारीफ की. 

दरअसल, इससे एक सप्ताह पहले ही पीएम इंदिरा गांधी ने शेख अब्दुल्ला के साथ एक समझौता किया था. समझौते की शर्तों में केंद्र और राज्य के बीच संबंधों पर नियम बनाए गए थे. पीएम प्रतिनिधि के तौर पर दिल्ली से जी. पार्थसारथी और श्रीनगर से मिर्जा अफजल बेग को नियुक्त किया गया था. चूंकि दिल्ली ने पार्थसारथी को हस्ताक्षर करने के लिए नियुक्त किया था, इसलिए शेख ने भी अफजल बेग को इसकी जिम्मेदारी दी थी. हालांकि सही मायने में अब्दुल्ला को ही हस्ताक्षर करने थे.अब्दुल्ला अपने को भारत के प्रधानमंत्री से कम नही आंकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी जगह अफजल को अपना प्रतिनिधि बनाया था. 

1972 में बनी थी कांग्रेस की सरकार
जम्मू-कश्मीर में पांचवीं बार  विधानसभा चुनाव 1972 में हुए. इस बार कांग्रेस को 58, भारतीय जनसंघ को तीन, जमाते इस्लामी को पांच और निर्दलीय उम्मीदवारों को नौ सीटें मिलीं. कांग्रेस नेता सैयद मीर कासिम ने एक बार फिर राज्य की बागडोर संभाली. सैयद मीर कासिम 25 फरवरी 1975 तक सीएम रहे. इंदिरा-शेख अब्दुल्ला समझौते के बाद उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ी. इंदिरा गांधी ने एक बार फिर अब्दुल्ला की सत्ता में वापसी करा दी. शेख अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाया गया. 

कांग्रेस ने अब्दुल्ला को सीएम बनाने के लिए विधानपरिषद से अपने दो सदस्यों से इस्तीफा ले लिया. इन खाली हुई सीटों से शेख और उसके सहयोगी मिर्जा अफजल बेग को चुनाव जीता कर विधानपरिषद भेजा गया. अगले दो सालों तक कांग्रेस ने बिना शर्त शेख को समर्थन दिया. इसी अंतराल में देश पर आपातकाल जबरदस्ती थोप दिया गया. इसके बाद 26 मार्च, 1977 से 9 जुलाई, 1977 तक जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन रहा. इसके बाद साल 1977 में हुए चुनाव हुए. देश में इंदिरा विरोधी लहर थी. जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस की स्थिति सही नहीं थी. इस विधानसभा चुनाव में शेख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने धमाकेदार वापसी की. नेशनल कॉन्फ्रेंस को 76 में से 47 सीटें हासिल हुईं.शेख अब्दुल्ला फिर सीएम बने. अब्दुल्ला का 8 सितंबर 1982 को निधन हुआ. तब वे राज्य के मुख्यमंत्री थे. अब्दुल्ला के निधन के बाद उनके बेटे  फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने थे.