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Jharkhand Siyasi Kisse: 9 साल की उम्र में चिड़िया की मौत और शाकाहारी बने... चावल बेचकर 5 रुपए ले घर से निकले... फिर सियासत के बड़े खिलाड़ी बने... जानें झारखंड के पूर्व CM Shibu Soren से जुड़े 4 किस्से 

Jharkhand Election: शिबू सोरेन झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं. वह आठ बार लोकसभा सांसद और तीन बार राज्यसभा के लिए चुने गए थे. झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो और गुरुजी के नाम से प्रसिद्ध शिबू सोरेन के करीब पांच दशक का राजनीतिक सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है. 

Hemant Soren and Shibu Soren (File Photo: PTI) Hemant Soren and Shibu Soren (File Photo: PTI)
हाइलाइट्स
  • झारखंड की कुल 81 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में 13 नवंबर और 20 नवंबर को होगी वोटिंग

  • भारतीय जनता पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बीच है कड़ी टक्कर

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 (Jharkhand Assembly Elections 2024) की बिसात बिछ चुकी है. कुल 81 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में 13 नवंबर और 20 नवंबर को वोटिंग होनी है. चुनाव के नतीजे 23 नवंबर 2024 को घोषित किए जाएंगे.

मतदाताओं को लुभाने के लिए हर पार्टियां जुटी हुई हैं. मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (BJP) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के बीच है. कांग्रेस (Congress) और अन्य पार्टियां भी अधिक से अधिक सीटों पर विजय प्राप्त करना चाह रही हैं. आज हम झारखंड के एक ऐसे पूर्व मुख्यमंत्री से जुड़े चार किस्सों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें लोग 'गुरुजी' कहते हैं. जी हां, हम बात शिबू सोरेन (Shibu Soren) की कर रहे हैं. 

... तो इसलिए मांस-मछली खाना छोड़ दिया था 
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को नेमरा (तत्कालीन हजारीबाग व वर्तमान में रामगढ़ जिला) गांव में हुआ था. झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन इनके पुत्र हैं. जेएमएम प्रमुख और झारखंड के पूर्व सीएम शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा. उन्हें जेल तक जाना पड़ा. शिबू सोरेन की उम्र जब महज 9 साल की थी तो उन्हें एक चिड़िया की मौत से इतना दुख हुआ कि उन्होंने हमेशा के लिए मांस-मछली खाना छोड़ दिया.

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दरअसल, यह बात साल 1953 की है. दशहरा का दिन था और शिबू अपने पिता सोबरन सोरेन के साथ घर में बैठे थे. घरवालों ने एक कोयल पाल रखी थी. वह कोयल शिबू के पैर में बार-बार चोंच मार रही थी. इससे परेशान होकर सोबरन ने अपनी बंदूक की नोंक से जब चिड़िया को भगाने का प्रयास किया, तो उसकी मौत हो गई. इस घटना से शिबू सोरेन इतने दुखी हुए कि वह पूरी तर शाकाहारी बन गए. उन्होंने बांस का खटिया बनाकर और कफन ओढ़ाकर उस कोयल चिड़िया का दाह-संस्कार किया था.

चावल चूड़ा पहुंचाने जा रहे पिता की हत्या
बड़े भाई राजाराम सोरेन के साथ बचपन में शिबू सोरेन गोला स्थित आदिवासी छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रहे थे. 27 नवंबर 1957 की बात है जब शिबू सोरेन के पिता सोबरन सोरेन गांव से चावल चूड़ा लेकर छात्रावास में अपने दोनों बेटों को पहुंचाने जा रहे थे. इसी बीच रास्ते में लुकरैयाटांड़ गांव के पास उनकी हत्या कर दी गई. पिता की हत्या होने के बाद शिबू सोरेन का पढ़ाई से मन पूरी तरह से टूट गया.

चावल बेचकर 5 रुपए लेकर घर से निकले और फिर... 
शिबू सोरेन ने पिता की हत्या के बाद बड़े भाई राजाराम से घर से बाहर जाकर कुछ करने की इच्छा जताई. इसके लिए उन्होंने बड़े भाई से पांच रुपए मांगा. घर में उस वक्त पैसे नहीं थे, लेकिन तभी उनकी नजर घर में रखे हांडा पर पड़ी. शिबू सोरेन की मां सोना सोरेन हर दिन खाना बनाने के पहले एक मुट्ठी चावल निकाल कर उस हांडा में डाल देती थीं.

शिबू पैसे का इंतजाम करने के लिए उस चावल को बेचना चाहते थे. मां ऐसा नहीं करने देतीं इसलिए उन्होंने मां को वहां से हटने का इंतजार किया. मां जैसे ही वहां से हटीं, उन्होंने हांडा में रखा 10 पैला चावल निकाल लिया और उसे बाजार में बेचकर पांच रुपए हासिल किए. इसी पांच रुपए को लेकर शिबू सोरेन घर बाहर निकले और फिर सियासत के बड़े चेहरे बन गए. उस पवित्र चावल ने शिबू सोरेन को संथाल समाज का ‘दिशोम गुरु’ बना दिया.

हर घर से 250 ग्राम चावल और 3 रुपए चंदा किया इकट्ठा 
शिबू सोरेन ने अपनी राजनीति पारी शुरू करते हुए सबसे पहले बड़दंगा पंचायत से मुखिया का चुनाव लड़ा था. इसमें वह हार गए थे. इसके बाद उन्होंने अपनी किस्मत जरीडीह विधानसभा सीट से आजमाने की कोशिश की. इसमें भी उनके नसीब ने साथ नहीं दिया और वे चुनाव हार गए. शिबू सोरेन पहली बार 1980 में दुमका लोकसभा सीट से तीर-धनुष चुनाव चिह्न लेकर चुनाव लड़ने का फैसला किया.

लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए उनके पास उतने पैसे नहीं थे. शिबू सोरेन को जीताने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं ने दिशोम दाड़ी चंदा उठाने का अभियान शुरू किया. इसके तहत प्रत्येक गांव के प्रति परिवार, प्रति चूल्हा एक पाव (250 ग्राम) चावल और 3 रुपए नगद लिया जाने लगा. इस चंदे की राशि से पोस्टर बैनर छपवाए गए. इस अभियान के दौरान संग्रह राशि से गुरुजी ने अपना पहला चुनाव लड़ा था. पहली बार जीतकर लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे. वह इस चुनाव में झारखंड अलग राज्य निर्माण आंदोलन के अग्रदूत बन कर उभरे. 

दुमका लोकसभा सीट से 8 बार चुने गए सांसद
शिबू सोरेन दुमका लोकसभा सीट से कुल 8 बार सांसद चुने गए. वह पहली बार इस सीट से 1980 में सांसद बने. इसके बाद 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में दुमका लोकसभा सीट से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे. वह तीन बार राज्यसभा के लिए चुने गए. केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे. शिबू सोरेन पहली बार 2 मार्च 2005 को झारखंड के सीएम बने थे. दूसरी बार 27 अगस्त 2008 को मुख्यमंत्री बने थे. तीसरी और आखिरी बार दिसंबर 2009 मुख्यमंत्री बने थे लेकिन कुछ ही दिनों में त्यागपत्र देना पड़ा था.