यूपी विधानसभा में वोटों की गिनती शुरू हो गई है. इसके साथ ही रुझान भी आने शुरू हो गए हैं. अब तक भाजपा को बहुमत मिलता नजर आ रहा है. लेकिन इस चुनाव में कुछ सीटें ऐसी हैं, जो हार-जीत से परे हैं. इसको ऐसे समझ लिजिए, कि इन सीटों पर हार-जीत भविष्य की सियासत का भी ट्रेंड सेट करेगी. आज आपको ऐसी महत्वपूर्ण सीटों के बारे में बताते हैं, जिन पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं.
1. गोरखपुर सदर
इस सीट पर मुकाबला सपा और भाजपा के बीच का है. यहां भाजपा से योगी आदित्यनाथ तो सपा से सुभावती शुक्ला मैदान में हैं. फिलहाल इसे कांटे की टक्कर नहीं कह सकते क्योंकि वोटों का फासला काफी ज्यादा है.
अब जान लेते हैं कि ये सीट आखिर इतनी जरूरी क्यों है. सीएम योगी आदित्यनाथ के सामने यहां पर 12 प्रत्याशी है, जिनमें से लगभग सभी प्रत्याशी राजनीति के मैदान में नए हैं. इस सीट पर सपा ने भाजपा के पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष स्व. उपेंद्र शुक्ल की पत्नी सुभावती शुक्ला को मैदान में उतारा है. इसके अलावा बसपा से ख्वाजा शमसुद्दीन और कांग्रेस से चेतना पांडेय, तो वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) से चंद्रशेखर चुनावी मैदान में हैं. इस सीट से योगी की नजर पूरे पूर्वांचल पर है.
2. करहल (मैनपुरी)
इस सीट पर भी मुकाबला सपा और भाजपा के बीच का है. यहां सपा से पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे अखिलेश यादव मैदान में हैं तो भाजपा से एसपी सिंह बघेल.
अब जान लीजिए की क्यों महत्वपूर्ण है सीट, 1992 से ही यहां मुलायम सिंह यादव का दबदबा रहा है. यानी की 28 साल से यहां सपा का वर्चस्व कायम है. इस सीट पर यादव बाहुल्य है. आज तक सिर्फ 2002 में यहां सपा प्रत्याशी हारा था. ये सीट आगरा मंडल के अलावा इटावा, फर्रुखाबाद , शिकोहाबाद, कानपुर तक के इलाके पर असर डालती है.
3. सिराथू
इस सीट पर मुकाबला फिर से भाजपा और सपा के बीच है. भाजपा से केशव प्रसाद मौर्या तो सपा से पल्लवी पटेल मैदान में उतरी हैं. 1993 से 2007 तक ये लगातार बसपा का गढ़ा रहा है. 2008 परिसीमन से ये सामान्य सीट हो गई. उसके बाद 2021 में केशव प्रसाद मौर्या भाजपा के टिकट पर जीत थे.
ये सीट महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि बसपा के गढ़ में एक बार कमल खिलने के बाद अब भाजपा के लिए ये प्रतिष्ठा का सवाल है. ये सीट प्रयागराज और प्रतापगढ़ की पूरी बेल्ट पर असर डालते हैं. वैसे तो केशव प्रसाद पिछड़े वर्ग के नेता है, और इस सीट पर 34% पिछड़े वर्ग के वोटर में कुर्मी निर्णायक हैं. लेकिन सपा ने भी अपना दल की पल्लवी पटेल को उतारकर कुर्मी वोट बैंक में सेंधमारी करने की कोशिश की है.
4. अमेठी
अमेठी में मुकाबला भाजपा, सपा और कांग्रेस इन तीनों पार्टियों के बीच है. यहां भाजपा ने डॉ. संजय सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है, तो सपा ने महाराजी देवी और कांग्रेस ने आशीष शुक्ला को सामने रखा है. वैसे तो अमेठी हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है. लेकिन इस गढ़ में भाजपा भी 4 विधानसभा चुनाव जीत चुकी है. 2012 में यहां सपा ने भी सरकार बनाई थी. यहां की सीट को कांग्रेस की प्रतिष्ठा से जोड़ा जाता है. यहां राजघराने परिवार के प्रत्याशियों को 8 बार जीत मिल चुकी है. यहां तक की भाजपा के प्रत्याशी डॉ. संजय सिंह भी राजघराने से ताल्लुक रखते हैं. इससे पहले वो कांग्रेस के साथ थे. इस सीट पर कांग्रेस फिर से अपनी सियासी दबदबा चाहती है.
5. रामपुर सदर
इस सीट पर मुकाबला सपा, कांग्रेस और भाजपा के बीच है. सपा से आजम खान जेल से ही चुनाव लड़ रहे हैं, तो कांग्रेस ने नवाब काजिम अली खान और भाजपा ने आकाश सक्सेना को चुनाव के अखाड़े में खड़ा किया है. यहां 40 साल से आजम खान का दबदबा है, केवल एक बार 1996 में कांग्रेस के अफरोज अली खान आजम को टक्कर दी थी. इस सीट पर हमेशा से मुस्लिम उम्मीदवार ही जीतते आए हैं. ये सीट महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि ये सपा-भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है. पश्चिमी यूपी में आजम सियासत के बड़े चेहरे हैं. वो बार विधायक, एक बार राज्यसभा सांसद और 2019 में लोकसभा सांसद रह चुके हैं. फिलहाल वो इस वक्त जेल में हैं.
6. कुंडा
इस सीट पर मुकाबला आईएनडी-सपा आईएनडी के बीच है. कुंडा को कुंवर रघुराज प्रताप सिंह 'राजा भैया' का गढ़ माना जाता है. यहां पर सपा ने राजा भैया के सामने गुलशन यादव को खड़ा किया है. 1993 से इस सीट पर राजा भैया जीतते आ रहे हैं. इससे पहले एक बार भाजपा और दो बार कांग्रेस इस सीट पर जीत हासिल कर चुकी है.
अब ये जान लीजिए की ये सीट महत्वपूर्ण क्यों है, दरअसल यहां पर जातीय समीकरण से ज्यादा रघुराज प्रताप सिंह के नाम पर चुनाव लड़ा जा रहा है. वहीं भाजपा से मैदान में उतरी सिंधुजा मिश्रा 'गुंडा विहीन कुंडा' के नारे पर चुनावी मैदान में हैं.
7. जसवंतनगर
इस सीट पर मुकाबला भाजपा और सपा के बीच है. यहां भाजपा से विवेक शाक्य तो सपा से मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव चुनावी मैदान में हैं. 1993 से यहां मुलायम सिंह यादव जीतते आए हैं. इसके बाद शिवपाल यादव भी इस सीट से कई बार जीत चुके हैं. अब आपको बताते हैं कि इटावा की जसवंतनगर विधानसभा सीट क्यों महत्वपूर्ण है. इस सीट पर भाजपा ने विवेक शाक्य को चार बार के विधायक शिवपाल यादव के सामने खड़ा किया है. यहां दोनों के बीच मुकाबला सीधा दिख रहा है.
8. कैराना
इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच सीधी टक्कर है. यहां भाजपा से मृगांका सिंह तो सपा से नाहिद हसन मैदान में हैं. हालांकि कैराना मुस्लिम बाहुल्य सीट है, लेकिन इसके बावजूद भी यहां 4 बार भाजपा के प्रत्याशी जीते हैं. वहीं इससे पहले कांग्रेस ने भी यहां 5 विधानसभा चुनाव जीते हैं. अब जानते हैं कि ये सीट महत्वपूर्ण क्यों है. दरअसल इस सीट पर लंबे अरसे से पूर्व सांसद बाबू हुकुम सिंह और हसन परिवार के बीच टक्कर रही है. इस टक्कर में कभी एक परिवार आगे रहता है तो कभी दूसरा. बता दें कि 2014 के उप चुनाव और 2017 के आम चुनाव में यहां हसन परिवार ने जीत दर्ज की है. नाहिद हसन यहां से विधायक बने हैं.
9. अयोध्या
इस सीट पर मुकाबला भाजपा और सपा के बीच है. जहां भाजपा ने वेद प्रकाश गुप्ता तो वहीं सपा ने तेज नारायण को मैदान में उतारा है. 1991 से लगातार यहां 5 बार भाजपा के लल्लू सिंह जीत रहे हैं. 2012 में सपा ने जीत दर्ज की थी, लेकिन फिर 2017 में वेद प्रकाश गुप्ता ने इस सीट को फिर भाजपा के नाम कर दिया था. ये सीट जरूरी इसलिए हैं, क्योंकि अयोध्या सियासत की धुरी है. यह सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है. रामनगरी में योगी जी आए दिन दौरा करते रहते हैं. यहां भव्य मंदिर बनवाकर भाजपा इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत मान रही है.
10. जहूराबाद
जहूराबाद सीट पर मुकाबला सपा-सुभासपा और भाजपा के बीच है. सपा-सुभासपा से ओमप्रकाश राजभर तो वहीं भाजपा से कालीचरण राजभर चुनावी मैदान में हैं. 1985 से बाद से यहां दो बार कांग्रेस का कब्जा रहा है. उसके बाद भाजपा सपा और सुभासपा 1-1 बार जीते हैं.
ये सीट महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यहां ये राजभर वाराणसी, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया समेत 66 सीटों पर निशाना साद रहे हैं. एक वक्त में भाजपा के साथ रहने वाले राजभर आज पार्टी के विरोधी हैं. वहीं भाजपा ने 2 बार के विधायक कालीचरण राजभर को मैदान में उतारा है.