यूपी की 9 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ के नारे 'बटेंगे तो कटेंगे' के प्रभाव की भी परख होगी. वजह ये है कि उपचुनाव को खुद फ्रंट से लीड कर रहे यूपी के मुख्यमंत्री के इस नारे को विपक्ष की जातीय गोलबंदी के काट के तौर पर देखा जा रहा है.
इस नारे ने हाल ही में हरियाणा चुनाव में रंग दिखाया है और महाराष्ट्र, झारखंड में भी इसकी गूंज सुनाई पड़ रही है. ऐसे में ये तय है कि यूपी उपचुनाव की रैलियों और जनसभाओं में ये नारा गूंजेगा. अब इस नारे को संघ का समर्थन मिलने के बाद 2027 होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा की सियासी रणनीति इसके इर्द-गिर्द होने के संकेत भी मिल रहे हैं. आपको मालूम हो कि राज्य की 9 विधानसभा सीटों पर 13 नवंबर को मतदान होगा. 23 नवंबर 2024 को इस उपचुनाव क रिजल्ट आएगा.
विपक्ष की जातीय गोलबंदी का सियासी जवाब
उत्तर प्रदेश में नौ सीटों पर विधानसभा उपचुनाव सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए बहुत अहम है. हालांकि लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन से उत्साहित विपक्ष खास तौर पर समाजवादी पार्टी प्रदेश में न सिर्फ मुखर है बल्कि उसे इसी प्रदर्शन को बनाए रखने की उम्मीद है. इस बीच यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हरियाणा चुनाव में दिया गया नारा 'बटेंगे तो कटेंगे' यूपी उपचुनाव के केंद्र में आ गया है.
वजह ये है कि विपक्ष जातियों पर फोकस कर रहा है और एनकाउंटर से लेकर पुलिस हिरासत में मौत तक को जातीय खांचे में बांटकर योगी सरकार को घेरने की पुरजोर कोशिश कर रहा है. ऐसे में जातियों को एकजुटता का संदेश देने के लिए पार्टी ने योगी के इस 'एग्रेसिव' नारे ‘बटेंगे तो कटेंगे’ को उपचुनाव केंद्र में लाने का फैसला किया है.
हरियाणा चुनाव में नारे के सियासी परख से रणनीतिकारों को उम्मीद
दरअसल, हरियाणा चुनाव के बीचोंबीच यूपी के मुख्यमंत्री ने जिस तरह यह नारा देकर जातियों को एकजुट करने कोशिश की उसका नतीजा भाजपा के लिए सुखद रहा. इसी चुनाव में संघ की सक्रियता को भी जीत का एक बड़ा फैक्टर माना जा रहा है. जबकि लोकसभा चुनाव में संघ की जमीन पर सक्रियता कम होने का परिणाम साफ तौर पर दिखा.
अब भाजपा के लिए बहुत अहम यूपी विधानसभा उपचुनाव में सारी जिम्मेदारी योगी आदित्यनाथ पर है. ऐसे में उनकी ब्रांड हिंदुत्व की छवि के साथ सभी जातियों को एकजुट करने के लिए इस नारे पर पार्टी के रणनीतिकार भरोसा कर रहे हैं. सूत्रों के अनुसार जिस तरह से एनकाउंटर में जाति को लेकर समाजवादी पार्टी मुखर हुई है उससे जातियों को एक करने की ज़रूरत और बढ़ी है. इसके साथ ही हिंदू समाज को एक करने पर भी भाजपा को बेहतर चुनावी नतीजे मिलने की उम्मीद है.
संघ के समर्थन के बाद यूपी विधानसभा चुनाव में इस नारे के इर्द-गिर्द तय होगी रणनीति
इस बीच मथुरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यकारी मंडल की बैठक में संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले इस नारे के समर्थन में आए बल्कि आगे के लिए इस नारे पर संघ के समर्थन से आगे की रणनीति का रास्ता भी साफ कर दिया. दरअसल, संघ ये मानता है कि ये शुरू से ही संघ का लक्ष्य रहा है कि समाज को एकजुट किया जाए.
संघ के पदाधिकारी कहते हैं कि ये संघ का शुरू से ही विचार रहा है कि देश को एकजुट होना चाहिए. देश बंटेगा तो समाज को नुकसान होगा. संघ के समरसता कार्यक्रम हों या शाखा का आयोजन, सब पर इसका सिद्धांत लागू होता है. ऐसे में आज सबसे ज़्यादा जरूरत इसी बात पर ध्यान देने की है कि समाज को बंटना नहीं है. ऐसे में यही बात संघ दोहरा रहा है. संकेत ये भी हैं कि आने वाले दिनों में संघ इसके लिए लोगों के बीच जा कर उनकी समझ बढ़ाएगा.
संघ के लिए सबसे अहम है 2027 का चुनाव
संघ अपने शताब्दी वर्ष में खास तौर पर हिंदी हार्टलैंड में अपने आरंभिक काल से शुरू किए गए मुद्दों को किसी भी तरह से बिखरने नहीं देना चाहता. भले ही संघ खुल कर राजनीतिक कार्यक्रमों का हिस्सा बनता हो पर पिछले एक दशक से बीजेपी की जातियों को साधने की सफलता के पीछे संघ का जातियों को लेकर किया गया ज़मीनी काम रहा है.
ख़ासकर पिछड़ी,अनुसूचित जातियों और अति पिछड़े वनवासी समाज तक संघ ने अपनी पहुंच बनाई है. 2014 में जातियों को एक सूत्र में पिरोकर उससे चुनावी सफलता हासिल करने में बीजेपी के रणनीतिकारों को सफलता मिली थी लेकिन 2019 और 2024 में ये वर्चस्व टूटता रहा. साथ ही अब बीजेपी के रणनीतिकारों और खास तौर पर संघ को ये लगता है कि अकेले विकास और आय बढ़ने के वायदे की बात करने से लोग नहीं जुड़ रहे हैं. संघ विचारक सौरभ मालवीय मानते हैं कि हिंदू धर्म और समाज की एकजुटता संघ का लक्ष्य रहा है.
सौरभ मालवीय कहते हैं कि 'संघ एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है. भारतीय संस्कृति, सभ्यता और सनातन परम्परा का संरक्षण करना प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य है. हिंदू धर्म रहेगा तो विश्व बंधुत्व, विश्व मानवता सुखी रहेगी. यही हमारा दृष्टिकोण है. राजनीति की अवसरवादिता के दुष्परिणाम को देखते हुए भी हिंदू समाज को एक रहना चाहिए. हिंदू समाज के कमजोर होने और छिन्न-भिन्न होने का इतिहास हमने देखा है'.