गुजरात और हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में जहां गुजरात में कांग्रेस का प्रदर्शन इस बार खराब रहा,वहीं हिमाचल में उसने सत्ता से भाजपा को बेदखल किया है लेकिन विपक्षी पार्टियां जीत की बधाई की जगह हार को लेकर कटाक्ष कर रहीं हैं.2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की क्षमताओं पर सवाल उठा रही हैं. टीएमसी का कहना है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही देश में भाजपा के खिलाफ एकमात्र चेहरा हैं. पार्टी प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि गुजरात चुनाव में हार के बाद कांग्रेस को खुद की आलोचना करने की आवश्यकता है. उधर आप भी गुजरात में कांग्रेस की राह में रोड़ा पहुंचा चुकी है.गुजरात में कई सीटों पर उसकी हार आम आदमी पार्टी के कारण हुई है. बिहार में हुए उपचुनाव में बीजेपी की जीत से नीतीश कुमार को भी झटका लगा है. उनकी धमक कम हुई है.
हालांकि हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार ने मिशन 2024 के लिए विपक्ष की उम्मीदों को जिंदा रखा है. उत्तर प्रदेश में मामला एकतरह से टाई रहा है. इसके इतर ओडिशा, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल कर विपक्ष ने अपनी साख बरकरार रखी है. लेकिन विपक्ष की एकता की राह में फिलहाल कांटे ही कांटे नजर आ रहे हैं. विपक्ष बीते आठ सालों से भाजपा के खिलाफ एकजुट होने की नाकाम कोशिश करती रही है. इस बार भी इसके मजबूत आसार बनते नहीं दिख रहे. लगातार कमजोर होती कांग्रेस विपक्ष की अगुवाई का अपना दावा छोड़ना नहीं चाहती.
नीतीश अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करना चाहते हैं
दूसरी ओर ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और के चंद्रशेखर राव गैरकांग्रेस-गैरभाजपा दलों को एकजुट करना चाहते हैं. भाजपा के खिलाफ एकजुट होने के बदले विपक्षी दल अपना अलग-अलग दांव चल रहे हैं. इन दांव के पीछे उनकी केंद्र की राजनीति की अगुवाई करने की महत्वाकांक्षा है. केजरीवाल विपक्षी एकता की मुहिम से लगातार दूरी बना कर चल रहे हैं. ममता, केसीआर, शरद पवार चाहते हैं कि कांग्रेस इस बार क्षेत्रीय दल के किसी नेता की अगुवाई में चुनाव लड़े. इसके उलट नीतीश की योजना पुराने समाजवादी दलों को एकजुट कर कांग्रेस और वाममोर्चा के सहारे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने की है.
गुजरात में कांग्रेस की हार का दूसरे दलों की रणनीति पर भी पड़ेगा असर
गुजरात में कांग्रेस की हार सिर्फ उसी के लिए नहीं है बल्कि इस हार का असर दूसरे दलों पर भी पड़ना तय है. खासकर वैसे दल जो उसके साथ हैं या वह दल जो 2024 में नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष की अगुवाई करना चाहते हैं. अब तक इन नेताओं की रणनीति में कहीं न कहीं कांग्रेस थी और संभव है कि आगे भी रहे लेकिन गुजरात में जिस प्रकार कांग्रेस की हार हुई है उसके बाद कांग्रेस को कितना तवज्जो मिलेगा इस पर भी सवाल है. इतना ही नहीं इस वक्त कांग्रेस के साथ जो सहयोगी दल हैं उनके मन में भी गुजरात में हार के बाद डर बैठ गया होगा.
कांग्रेस ने कभी अपने पत्ते नहीं खोले
नीतीश, ममता और अरविंद केजरीवाल की दावेदारी के बीच कांग्रेस ने कभी अपने पत्ते नहीं खोले और जब भी उसके सामने यह सवाल आया तो उसकी ओर से यही कहा गया कि राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस मजबूती से लड़ेगी. यानी आखिरी वक्त तक वह भी अपनी दावेदारी से पीछे नहीं हटना चाहती है लेकिन गुजरात में जिस प्रकार उसकी हार हुई है उससे धक्का लगा है. गुजरात ही वह राज्य था जहां कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहता तो न केवल कांग्रेस बल्कि दूसरे विपक्षी दलों को भी ऊर्जा मिलती लेकिन ऐसा हुआ नहीं.