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UP Election 2022: तीसरे चरण का फैसला तय करेंगे आलू की खेती करने वाले किसान, राजनीतिक पार्टियों के सामने रखेंगे अपने मुद्दे

फर्रुखाबाद की आलू मंडी एशिया की सबसे बड़ी आलू मंडी है. जिसमें आगरा, ऐटा, मैनपुरी समेत 9 जिलों से हज़ारो किसान अपने आलू बेचने के लिए आते हैं. करीब 3 से 4 हज़ार किसान हर रोज इस मंडी में अपनी फसल लेकर आते हैं. लेकिन किसानों ने बताया कि आलू की खेती में किसानों को पिछले कई सालों से नुकसान उठाना पड़ रहा है.

फर्रुखाबाद की आलू मंडी फर्रुखाबाद की आलू मंडी
हाइलाइट्स
  • एशिया की सबसे बड़ी आलू मंडी है फर्रुखाबाद मंडी

  • आलू की खेती करने वाले किसानों का है मुद्दा

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दो चरणों में मतदान हो चुका है. अब तीसरे चरण में मतदान की तैयारियां चल रही हैं. बताया जा रहा है कि तीसरे चरण के चुनाव में इस बार आलू किसानों के मुद्दे सबसे ज्यादा रहने वाले हैं. पहले और दूसरे चरण के चुनाव में गन्ना किसानों के मुद्दों को तूल मिला था. 

अब तीसरे चरण में आलू की खेती करने वाले किसान अपनी बात मुद्दों के साथ रखते नजर आ रहे हैं. इस बारे में गुड न्यूज़ टुडे ने एशिया की सबसे बड़ी आलू मंडी फर्रुखाबाद में किसानों से बात की. 

आलू के दाम नहीं हैं फिक्स:

फर्रुखाबाद की आलू मंडी एशिया की सबसे बड़ी आलू मंडी है. जिसमें आगरा, ऐटा, मैनपुरी समेत 9 जिलों से हज़ारो किसान अपने आलू बेचने के लिए आते हैं. करीब 3 से 4 हज़ार किसान हर रोज इस मंडी में अपनी फसल लेकर आते हैं. 

लेकिन किसानों ने बताया कि आलू की खेती में किसानों को पिछले कई सालों से नुकसान उठाना पड़ रहा है. हालात ये हैं कि किसान मुश्किल से अपनी लागत निकाल पा रहे हैं. मुनाफे की बात तो भूल ही जाइये. किसान कहते है उनके लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि मंडी में आलू का कोई रेट फिक्स नहीं है.

इसलिए व्यापारी अपने मनमर्जी रेट पर खरीदते हैं. और बहुत बार किसानों को कम रेट पर फसल बेचनी पड़ती है. 

चुनाव के मौसम में चाहते हैं समस्या का हल: 

फ़िलहाल पूरे उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल है और सभी राजनैतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने में लगी हैं. ऐसे में आलू किसान भी यही चाह रहे हैं कि इस चुनावी मौसम में उनके मुद्दे भी सुने जाएं. और उनकी समस्याओं का समाधान निकले.

इस इलाके में आलू की खेती करने वाले किसानों की तादाद भी काफी ज्यादा है. इसलिए सभी राजनीतिक दल चुनावों से पहले उनके मुद्दों पर बात जरूर करना चाहता है. हालांकि बात करने के बाद समाधान कितना किया जाएगा, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है. 

लेकिन किसान चाहते हैं कि इस बार का चुनाव उनके मुद्दों पर हो. क्योंकि उन्हें पता है कि उनके लिए क्या सही है और कौन-सी पार्टी उनकी चुनावों के बाद सुध लेगी.