
दिल्ली में चुनाव (Delhi Election 2025) हैं. आम आदमी पार्टी (AAP) 2013 से सत्ता में है. इस दौरान पहले अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और फिर आतिशी (Atishi) दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं. बीजेपी के पांच साल के शासन में तीन मुख्यमंत्री रहे. भाजपा (BJP) के बाद कांग्रेस की सत्ता रही. कांग्रेस के 15 साल के शासन में एक ही मुख्यमंत्री रहा.
शीला दीक्षित (Sheila Dixit) 1998 से लेकर 2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं लेकिन ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में हमेशा सब कुछ ठीक रहा. शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद रहते हुए कई समस्याओं का सामना करना पड़ा. कई बार तो पार्टी के नेताओं ने ही शीला दीक्षित का एक विरोध किया.
एक बार तो दिल्ली कांग्रेस के कुछ विधायकों ने शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला दिया. पार्टी के इन नेताओं ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री से हटाने की मांग की. इसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने क्या किया? आइए दिल्ली के इस सियासी किस्से के बारे में जानते हैं.
पहली बार दिल्ली CM
साल 1998 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए. जनता ने सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को नकार दिया. बीजेपी को दिल्ली की सत्ता से बाहर होना पड़ा. कांग्रेस ने बहुमत से सरकार बनाई. कांग्रेस की 70 में से 52 सीटें आईं.
जीत के बाद शीला दीक्षित सोनिया गांधी से मिलने गईं. सोनिया गांधी ने शीला दीक्षित से कैबिनेट बनाने को कहा. शीला दीक्षित को कैबिनेट चुनने की पूरी आजादी मिली. शीला दीक्षित अपनी कैबिनेट के साथ राजभवन में शपथ लेने पहुंचीं. इस तरह से शीला दीक्षित पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं.
मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा
शपथ लेते ही मुख्यमंत्री शीला दीक्षित शासन चलाने में लग गईं. राज्य को अच्छा से चला सके इसलिए शीला दीक्षित ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. सोनिया गांधी शीला दीक्षित के तर्क से सहमत हो गईं.
शीला दीक्षित ने अपने मन मुताबिक कैबिनेट चुनी. इस पर कांग्रेस हाईकमान ने तो मुहर लगा दी लेकिन पार्टी के कुछ नेता नाराज हो गए. कांग्रेस नेताओं की नाराजगी धीरे-धीरे बढ़ गई. फिर एक दिन कांग्रेस के कुछ विधायकों ने शीला दीक्षित के खिलाफ मोर्चा निकल दिया.
इस्तीफे की मांग
शीला दीक्षित ने अपनी ऑटोबायोग्राफी सिटीज़न दिल्ली माई टाइम्स माई लाइफ में बगावत की इस घटना का जिक्र किया है. 21 अप्रैल 2000 को जगदीश टाइटलर, दीपचन्द बंधु और रामवीस सिंह बिधूरी समेत पार्टी के अन्य विधायकों ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेताओं ने शीला दीक्षित को भ्रष्ट और अयोग्य बताया. साथ ही शीला दीक्षित को बाहर वाली बताया. कांग्रेस के इन बगावती नेताओं ने सोनिया गांधी से शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की.
सोनिया ने लिया एक्शन
कांग्रेस नेताओं के इन बगावती तेवर का सोनिया गांधी ने तीन दिन बाद जवाब दिया. उससे पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस के अगले दो दिनों में समन्वय बनाने के लिए छह सदस्यों की एक समन्वय समिति गठित कर दी. इस समिति में प्रभा राव, माधवराव सिंधिया, जगप्रवेश चन्द्र और अन्य लोग शामिल थे.
बगावती नेताओं को लगा कि सोनिया गांधी उनके इस रवैये के बाद शीला दीक्षित पर कोई कड़ा कदम उठाएंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सोनिया गांधी ने कहा- नेतृत्व परिवर्तन का कोई सवाल ही नहीं उठता. इसके बाद तो ये पक्का हो गया कि शीला दीक्षित ही दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी रहेगी. शीला दीक्षित ने अपना कार्यकाल अच्छी तरह से पूरा किया.