Maharashtra Siyasi Kisse: महाराष्ट्र में एक बार फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी की लड़ाई शुरू हो चुकी है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election 2024) का ऐलान हो चुका है. महाराष्ट्र में 20 नवंबर को वोटिंग होगी. 23 नवंबर को चुनाव के नतीजे आएंगे.
शरद पवार एक फिर से महाराष्ट्र की राजनीति के धुरी बने हुए हैं. शरद पवार को कई लोग गुरु मानते हैं. ऐसे ही एक राजनेता हैं, सुशील शिंदे. कांग्रेस से ताल्लुक रखने वाले सुशील शिंदे महाराष्ट्र (Sushil Shinde Maharashtra) के पहले दलित मुख्यमंत्री बने. बाद में सुशील शिंदे देश के गृह मंत्री बने.
सुशील शिंदे के कार्यकाल के ही दौरान आतंकवादी अफजल अंसारी और अजमल कसाब को फांसी हुई थी. सुशील शिंदे एक नेता के कहने पर अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर राजनीति में आ गए थे. जिस चुनाव में खड़े होने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ी थी. उस चुनाव में उनको टिकट ही नहीं मिला.
सुशील शिंदे को चुनाव में टिकट न मिलने से सबसे ज्यादा दुख शरद पवार को हुआ था. आइए सुशील शिंदे और शरद पवार के इस किस्से पर नजर डालते हैं.
कांग्रेस में शरद
शरद पवार का पूरा परिवार कम्युनिस्ट पार्टी को मानता था. उनकी मां समेत सभी लोग लेफ्ट की विचारधारा को मानते थे. जब शरद पवार ने कांग्रेस में शामिल होने के बारे में परिवार को बताया तो उस पर काफी बहस हुई. आखिर में शरद पवार 1960 में कांग्रेस में शामिल हो गए.
1960 से 1972 तक शरद पवार कांग्रेस संगठन को मजबूत करने में लगे रहे. इस दौरान उन्होंने एक चुनाव में अपने भाई के खिलाफ प्रचार भी किया. 1967 के विधानसभा चुनाव में शरद पवार को यशवंत राव चव्हाण की सिफारिश के चलते टिकट मिला. शरद पवार बारामती से पहली बार विधायक बने.
सुशील शिंदे को राजनीति में लाए
1971 में सुशील शिंदे सब इंस्पेक्टर थे. पुलिस की नौकरी की वजह से सुशील शिंदे का मिलना-जुलना काफी लोगों से होता था. इसी दौरान उनकी मुलाकात शरद पवार से हुई. कुछ दिनों बाद शरद पवार ने सुशील शिंदे को 1972 में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया.
शरद पवार के कहने पर सुशील शिंद ने 1971 में पुलिस को नौकरी छोड़ दी. सुशील शिंदे कांग्रेस में शामिल हो गए. 1972 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने थे. शरद पवार यशवंत राव चव्हाण (Yashwantrao Chavan) के काफी करीबी थे. शरद पवार ने यशवंत राव से सुशील शिंदे के टिकट पर बात की.
नहीं मिला टिकट
यशवंत राव चव्हाण दलित व्यक्तियों को आगे बढ़ाने की बात करते थे. शरद पवार के कहने पर यशवंत राव ने कर्मला विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी के लिए सुशील शिंदे के नाम का प्रस्ताव रखा. सभी को लग रहा था कि सुशील शिंदे को टिकट मिल ही जाएगा.
हाईकमान ने सुशील शिंदे की जगह तैयप्पा सोनावने (T. H. Sonawane) को कर्मला से टिकट दे दिया. सुशील शिंदे और शरद पवार के लिए किसी झटके से कम नहीं था. बाद में सुशील शिंदे को पता चला कि बाबू जगजीवन राम ने तैयप्पा सोनावने के नाम की सिफारिश की थी.
रो पड़े शरद पवार
कांग्रेस हाईकमान ने बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjivan Ram) की सिफारिश पर तैयप्पा सोनावने को टिकट दे दिया. उस समय शरद पवार दिल्ली में थे. शरद पवार दिल्ली से मुंबई पहुंचे. मुंबई एयरपोर्ट पर सुशील शिंदे शरद पवार को रिसीव करने एयरपोर्ट पहुंचे.
सुशील शिंदे एक इंटरव्यू में इस बारे में बताया कि जब वो एयरपोर्ट पर शरद पवार से मिले तो उनकी आंखू में आंसू थे. शरद पवार निराश थे कि वो सुशील शिंदे को टिकट नहीं दिला पाए. तब सुशील शिंदे ने शरद पवार से कहा- इस बारे में ज्यादा मत सोचिए. मेरे लिए तो ये चुनौती है. अभी नहीं मिला तो कोई बात नहीं. बाद में टिकट मिल जाएगा.
आखिरकार मिला टिकट
1972 के चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी. कांग्रेस के खाते में 203 सीटें आईं. कांग्रेस के वसंतराव नाईक (Vasantrao Naik) महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. कर्मला से कांग्रेस के तैयप्पा सोनावने चुनाव जीत गए. 1973 में कर्मला विधायक तैयप्पा सोनावने का निधन हो गया.
1973 में कर्मला में उपचुनाव का ऐलान हुआ. महाराष्ट्र कांग्रेस ने एक बार सुशील शिंदे का नाम का प्रस्ताव रखा. इस बार कांग्रेस हाईकमान ने कोई अड़ंगा नहीं लगाया. इस तरह सुशील शिंदे को कर्मला से टिकट मिल ही गया. सुशील शिंदे को अपने पहले चुनाव में ही जीत मिल गई. इस तरह उनका सियासी करियर शुरू हो गया.