योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर शहर विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल कर दिया है. पूरे 18 साल बाद उत्तर प्रदेश का कोई मुख्यमंत्री विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहा है. इसलिए बीजेपी ने गोरखपुर में योगी के नामांकन को शक्ति प्रदर्शन बना दिया. योगी ने नामांकन भरने से पहले गोरखनाथ मंदिर में हवन और पूजापाठ किया. योगी का लखनऊ की लड़ाई में उतरना बीजेपी के लिए कितना अहम है, ये आपको अमित शाह की मौजूदगी बताएगी क्योंकि ऐसा पहली बार है जब अमित शाह किसी विधानसभा चुनाव में किसी प्रत्याशी के नामांकन के दौरान मौजूद रहे हों.
लेकिन सवाल ये है कि केवल 26 साल की उम्र में सांसद बनने वाले देश के पहले भगवाधारी मुख्यमंत्री को चुनाव में क्यों उतरना पड़ा? क्यों योगी ने गोरखपुर से उतरकर पिछले 18 साल के रिकॉर्ड को तोड़ा? क्योंकि चाहे योगी आदित्यनाथ हों, अखिलेश यादव या फिर मायावती, उत्तर प्रदेश के पिछले तीनों मुख्यमंत्रियों ने पूर्ण बहुमत की सरकार को बिना सीधे चुनाव लड़े चलाया और तीनों ने एमएलसी बनने की राह को चुना. योगी आदित्यनाथ से पहले मुलायम सिंह यादव ने साल 2003 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए गुन्नौर से चुनाव लड़ा और जीता.
ऐसे में सवाल सीधा है कि आखिर योगी जनता के बीच अपनी लोकप्रियता क्यों साबित करना चाहते हैं? और योगी को गोरखपुर से चुनाव लड़ाकर बीजेपी को क्या हासिल होगा?
अजय सिंह बिष्ट से इस तरह बने योगी आदित्यनाथ
पहली बार योगी आदित्यनाथ विधानसभा चुनाव के दंगल में उतरे हैं. पहली बार वो गोरखपुर सदर से चुनाव लड़ रहे हैं. गोरखपुर में योगी की गूंज है लेकिन इसके पीछे की कहानी बहुत दिलचस्प है. उत्तराखंड के गढ़वाल के एक गांव से आए अजय सिंह बिष्ट के योगी आदित्यनाथ बनने के पहले के जीवन के बारे में लोगों को ज्यादा कुछ मालूम नहीं है. सिवाय इसके कि वो हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक हैं और उनके परिवार के लोग ट्रांसपोर्ट बिज़नेस में हैं.
योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के पंचूर गांव में हुआ था. 1990 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई करते हुए वो एबीवीपी से जुड़ गए. 1993 में गणित में एमएससी की पढ़ाई के दौरान गुरु गोरखनाथ पर रिसर्च करने गोरखपुर आए. यहां गोरखनाथ पीठ के महंत अवैद्यनाथ जी की नजर में योगी आ गए. योगी आदित्यनाथ ने 22 साल की उम्र में संन्यास ग्रहण किया. इसके बाद उनका नाम अजय सिंह बिष्ट से योगी आदित्यनाथ हो गया. इसके बाद योगी आदित्यनाथ 12वीं लोकसभा के सबसे युवा सांसद चुने गए और गोरखपुर से 1998 से 2014 के बीच 5 बार सांसद चुने गए. 2017 के चुनाव में बीजेपी ने उन्हें स्टार प्रचारक बनाया और जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें उत्तर प्रदेश सौंप कर हमेशा की तरह सबको चौंका दिया.
ये कहानी तो सबको पता है. सवाल ये है कि योगी को गोरखपुर से लड़वाकर बीजेपी पूर्वांचल में कैसे कमल खिलता देख रही है? तो इस सवाल के जवाब के लिए आपको थोड़ा पीछे जाना होगा. जिसमें कड़क और दमदार योगी की एक ऐसी छवि भी मौजूद है जो आज के योगी से मेल नहीं खाती. बात साल 2007 की है. तब योगी आदित्यनाथ ने सांसद के तौर पर लोकसभा अध्यक्ष से बोलने की विशेष अनुमति ली और वो अपनी बात रखते हुए वो रो पड़े.
संसद में योगी के रोने की इस कहानी की शुरुआत को जानने के लिए आपको योगी की कर्मभूमि गोरखपुर लौटना होगा जिसके गोरखनाथ मंदिर के महंत की गद्दी का उत्तराधिकारी बनाने के चार साल बाद ही महंत अवैद्यनाथ ने योगी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बना दिया. जिस गोरखपुर से महंत अवैद्यनाथ चार बार सांसद रहे, उसी सीट से योगी 1998 में 26 वर्ष की उम्र में लोकसभा पहुंच गए.
योगी ने ऐसे ली राजनीति में एंट्री!
बात दो दशक पहले की है. गोरखपुर शहर के मुख्य बाजार गोलघर में गोरखनाथ मंदिर से संचालित इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ छात्र एक दुकान पर कपड़ा ख़रीदने आए और उनका दुकानदार से विवाद हो गया. इसी दौरान दुकानदार ने रिवॉल्वर निकाल ली. दो दिन बाद दुकानदार के खिलाफ़ कार्रवाई की मांग को लेकर एक युवा योगी की अगुवाई में छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया और वे एसएसपी आवास की दीवार पर भी चढ़ गए. ये योगी आदित्यनाथ थे, जिन्होंने कुछ समय पहले ही 15 फरवरी 1994 को नाथ संप्रदाय के सबसे प्रमुख मठ गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी के रूप में अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली थी. इस तरह गोरखपुर की राजनीति में एक 'एंग्री यंग मैन' की ये धमाकेदार एंट्री थी.
इसके बाद योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी के जरिए गोरखपुर और उसके आसपास के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई और जल्द ही उनकी गिनती बीजेपी के उग्र हिंदुत्वादी नेता के रूप में हो गई जिसमें जनवरी 2007 बहुत अहम है. ये वो वक्त था जब गोरखपुर दंगों की आग में झुलस रहा था. इसके विरोध में योगी आदित्यनाथ ने धरने पर बैठने का एलान किया लेकिन जब वो धरने के लिए जा रहे थे तभी उन्हें पुलिस ने शांति भंग करने की धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया. लेकिन मामूली धाराओं में गिरफ्तार करने के बावजूद उन्हें 11 दिनों तक गोरखपुर की जेल में बंद रखा गया इसीलिए वो लोकसभा में अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाए और रोने लगे. तब आंसुओं में तरबतर योगी को देखकर दुनिया हैरान थी और इस बात से अनभिज्ञ भी कि एक उत्तर प्रदेश एक ऐसा दौर देखेगा जिसमें योगी आदित्यनाथ सूबे की सियासत के सबसे बड़े सूरमा होंगे.
मुख्यमंत्री बनने से पहले ही योगी का जलवा गोरखपुर से निकलकर पूर्वांचल पर छाने लगा था. वो पूर्वांचल में हिंदुत्व के सबसे बड़े झंडाबरदार के तौर पर जाने जाने लगे थे. जिसमें लोग उनमें महंत दिग्विजयनाथ के तेवर और महंत अवैद्यनाथ का सामाजिक सेवा कार्य का जोग देखते हैं. यही वजह है कि गोरखपुर सदर सीट पर बीते 33 साल से बीजेपी का कब्जा है. खुद योगी आदित्यनाथ 1998 से 2017 तक गोरखपुर संसदीय सीट से अपराजेय रहे हैं. इस सीट की एक-एक विधानसभा सीट पर योगी की खासी पकड़ है. बीजेपी को उम्मीद है कि योगी के चुनाव लड़ने से गोरखपुर-बस्ती मंडल की 41 सीटों पर सीधा असर पड़ेगा.
एक और रिकॉर्ड बनाने की ओर योगी
योगी अपना कार्यकाल पूरा करने वाले उत्तर प्रदेश के 21 मुख्यमंत्रियों में से तीसरे सीएम बन चुके हैं. उत्तर प्रदेश में 1985 के बाद से कोई भी मुख्यमंत्री चुनाव जीतकर दोबारा सत्ता में नहीं लौटा है. 37 साल पहले ये कामयाबी कांग्रेस के दिग्गज नेता नारायण दत्त तिवारी को मिली थी. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ से पहले भाजपा के तीन नेताओं को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला है. कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह. इनमें से किसी भी सीएम के नाम पार्टी को दोबारा सत्ता में लाने का सेहरा नहीं बंधा है. लेकिन अगर योगी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी तो वो बीजेपी के ऐसे पहले मुख्यमंत्री होंगे.
योगी आदित्यनाथ को चुनाव लड़कर पूरे चुनाव को फ्रंट से लीड कर रहे हैं यानी उत्तर प्रदेश में बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के अलावा जनता के सामने योगी के पांच साल के कार्यकाल पर भी वोट मांग रही है. ऐसे में जीत दिलाने का ज्यादा दारोमदार आदित्यनाथ के कंधों पर ही है.