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64 Years of Mughal-E-Azam: 16 साल में बनी थी मुगल-ए-आजम, मेकिंग में पानी की तरह बहाया गया था पैसा...टिकट के लिए कई दिनों तक लाइन में खड़े थे लोग

‘मुगल-ए-आजम’ 5 अगस्त 1960 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी. के आसिफ के निर्देशन में बनी ‘मुगल-ए-आजम’ में दिलीप कुमार और मधुबाला ने लीड रोल निभाया था. 

Mughal E Azam Mughal E Azam
हाइलाइट्स
  • पानी की तरह बहाया गया था पैसा

  • कई दिनों तक लाइन में लगने के बाद लोगों को मिली थी टिकट

हिंदी सिनेमा में कुछ ऐसी कल्ट फिल्में बनी हैं जिनकी अहमियत साल दर साल बढ़ती रही है. बॉक्स ऑफिस कलेक्शन किसी भी फिल्म की सफलता और असफलता का पैमाना होता है. साल 1960 में एक ऐसी फिल्म रिलीज हुई थी जिसने लोगों को सिनेमाघर आने पर मजबूर कर दिया था.

इस फिल्म की गिनती आज भी हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में होती है. फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर बंपर कमाई की थी. फिल्म का नाम था ‘मुगल-ए-आजम’. ये फिल्म 5 अगस्त 1960 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी. के आसिफ के निर्देशन में बनी ‘मुगल-ए-आजम’ में दिलीप कुमार और मधुबाला ने लीड रोल निभाया था.

पानी की तरह बहाया गया था पैसा
मुगल-ए-आजम अपने जमाने की सबसे मंहगी और सफल फिल्म थी. ‘मुगल-ए-आजम’ को बनाने में 16 साल लगे. फिल्म के गानों पर पानी की तरह पैसा बहाया गया ताकि सब असली लग सके. फिल्म के लिए के आसिफ ने असली मोतियां मंगवाई थी.

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105 बार लिखा गया था "प्यार किया तो डरना क्या" गाना
"प्यार किया तो डरना क्या" गाने की शूटिंग में उस समय में 10 मिलियन खर्च हुए थे. इसे गीतकार शकील बदायूंनी ने 105 बार लिखा था तब तक जब तक कि संगीत निर्देशक नौशाद इसे पसंद नहीं करते. इस गाने को शीश महल में फिल्माया गया था. उन दिनों ध्वनि की गूंज क्रिएट करने का कोई तरीका नहीं था, ऐसे में नौशाद ने लता मंगेशकर से स्टूडियो के बाथरूम में ये गाना गवाया था.

दिल्ली से लाए गए थे दर्जी
कलाकारों के लिए ड्रेस सिलने के लिए दिल्ली से दर्जी लाए गए थे, कढ़ाई के लिए सूरत-खंबायत के एक्सपर्ट बुलाए गए थे, हैदराबाद के सुनारों ने आभूषण तैयार किए थे. कोल्हापुर के कारीगरों ने मुकुट डिजाइन किए थे, राजस्थान के लोहारों ने हथियार तैयार किए थे और जूते आगरा से मंगवाए गए थे. युद्ध के सीन के लिए 2000 ऊंट, 4000 घोड़े और 8000 सैनिक इस्तेमाल में लाए गए थे. इसके लिए भारतीय सेना से इजाजत ली गई थी.

फिल्म में मधुबाला ने जो भारी चेन पहनी थी, वह असली थी. उन जंजीरों को पहनने के कारण वह कई दिनों तक बीमार रही थीं. फिल्म में इस्तेमाल की गई भगवान कृष्ण की मूर्ति सोने से बनी थी.

कई दिनों तक लाइन में लगने के बाद लोगों को मिली थी टिकट
जब फिल्म की बुकिंग शुरू हुई, तो मुंबई के प्रसिद्ध मराठा मंदिर में दंगे होने की स्थिति हो गई. फिल्म की टिकट लेने के लिए लोग कई दिनों तक कतार में खड़े रहे थे. जब भीड़ 100,000 पार गई और अनियंत्रित हो गई तो पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा. टिकट डॉकेट थे जिनमें फिल्म के बारे में तस्वीरें और सामान्य ज्ञान की बातें लिखी थी. साल 1960 में फिल्मों के सबसे महंगे टिकट 100 रुपये के थे. ‘मुगल-ए-आजम के देशभर में 10 करोड़ टिकट बिके थे.

उस्ताद जी ने लिए थे 25 हजार रुपये
के आसिफ इस बात पर आमादा थे कि फिल्म में तानसेन की गायकी के लिए उस्ताद बड़े गुलाम अली को चुना जाए. उस्ताद जी ने मना कर दिया. के आसिफ ने उनसे उनकी पीस पूछी.. उस्ताद जी ने के आसिफ का मुंह बंद करने के लिए उनसे 25,000 रुपये मांग लिए. ये उस समय के लिए बहुत बड़ी बात थी. के आसिफ ने उनकी बात मान ली. इस तरह फिल्म में उस्ताद जी ने दो गाने गाए. प्रेम जोगन बन के और शुभ दिन आयो राज दुलारा.

पृथ्वीराज कपूर ने सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया क्योंकि उनका मानना ​​था कि सम्राट अकबर (दिलीप कुमार) लीड एक्टर थे और उन्हें बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिलना चाहिए था.