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Modern Indian Football के आर्किटेक्ट कहलाते हैं सैयद अब्दूल रहीम, Maidaan Film में Ajay Devgan निभा रहे हैं इनका किरदार

यह कहानी है Modern Indian Football के आर्किटेक्ट कहे जाने वाले कोच और मैनेजर, सैयद अब्दुल रहीम की. जिन्हें लोग प्यार से रहीम साब कहते हैं. Maidaan फिल्म में अजय देवगन उनके किरदार में नजर आएंगे.

Ajay Devgan's film based on football coach, Syed Abdul Rahim (Photo: Wikipedia/IMDb) Ajay Devgan's film based on football coach, Syed Abdul Rahim (Photo: Wikipedia/IMDb)

इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में हर साल एक न एक फिल्म तो स्पोर्ट्स पर बनती ही है. स्पोर्ट्स ड्रामा को लोगों से अच्छा रिस्पॉन्स भी मिलता है. ये फिल्में न सिर्फ मनोरंजन के लिए होती हैं बल्कि बहुत बार किसी अनसुने हीरो की कहानी भी हमें बताती हैं. जैसे कि अजय देवगन अपनी आने वाली फिल्म मैदान के जरिए एक खिलाड़ी की सच्ची कहानी लेकर आ रहे हैं.

इस फिल्म में अजय देवगन भारतीय फुटबॉल कोच सैयद अब्दुल रहीम की मुख्य भूमिका में हैं. यह फिल्म 1952-1962 के दौरान भारतीय फुटबॉल के स्वर्ण युग के इर्द-गिर्द रची गई है. आज हम आपको बता रहे हैं Modern Indian Football के आर्किटेक्ट कहे जाने वाले सैयद अब्दुल रहीम की कहानी. 

कौन थे सैयद अब्दुल रहीम
सैयद अब्दुल रहीम को रहीम साब के नाम से जाना जाता है.उनको आधुनिक भारतीय फुटबॉल का वास्तुकार माना जाता है. वह एक महान खिलाड़ी और उससे भी बेहतर शिक्षक थे. वास्तव में, कोच के रूप में उनका कार्यकाल भारत में फुटबॉल का "स्वर्ण युग" माना जाता है. उनके मार्गदर्शन में, राष्ट्रीय फ़ुटबॉल टीम ने नई तकनीकें और रणनीतियां सीखीं, और खेल खेलने के अपने अनूठे तरीके के लिए प्रसिद्ध हुईं.

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उनकी टीम इतनी अच्छी थी कि उन्होंने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते, समर ओलंपिक के सेमीफाइनल खेले (भारत को यह स्थान पाने वाला पहला एशियाई देश बनाया), कोलंबो कप के खिताब जीते, और न जाने क्या-क्या उप्लब्धि इस टीम ने हासिल की. यह सब संभव हुआ रहीम साब की वजह से. 

कैसे हुई खेल की शुरुआत
हैदराबाद के रहीम ने करियर की शुरुआत एक स्कूल शिक्षक के रूप में की, लेकिन जल्द ही उन्हें फुटबॉल में रुचि हो गई और उन्होंने इसे गंभीरता से लेना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने शुरुआती मैच उस्मानिया विश्वविद्यालय की फुटबॉल टीम के लिए खेले. यहां  उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी. नकी टीम को "इलेवन हंटर्स" कहा जाता था और इसमें कॉलेज के छात्रों की एक टीम शामिल थी.

हालांकि, उन्होंने जल्द ही अपना ध्यान वापस शिक्षण पर केंद्रित कर दिया. ला में डिग्री हासिल करने के बाद, उन्होंने काचीगुडा मिडिल स्कूल, उर्दू शरीफ स्कूल, दारुल-उल-उलूम हाई स्कूल और चदरघाट हाई स्कूल सहित स्कूलों में शिक्षक के रूप में काम करना शुरू किया. लेकिन उनका दिल अभी भी फुटबॉल से जुड़ा था. उन्होंने फिजिकल एजुकेशन में डिप्लोमा लेने का फैसला किया और बाद में दो स्कूलों में सभी खेल गतिविधियों की जिम्मेदारी संभाली.

इस दौरान उन्होंने स्थानीय मैचों में क़मर क्लब का भी प्रतिनिधित्व किया. उनकी टीम को लोकल लीग की सर्वश्रेष्ठ टीमों में से एक माना जाता था. इसके बाद उन्होंने नीदरलैंड में डच एमेच्योर लीग क्लब एचएसवी होक के लिए खेला और फिर उन्हें फुटबॉल टीम मैनेजर की नौकरी मिल गई.

फुटबॉल टीम मैनेजर के रूप में उनकी सफलता
भारत के सबसे महान फुटबॉल कोच बनने की उनकी यात्रा 1943 में शुरू हुई. उन्हें हैदराबाद फुटबॉल एसोसिएशन के सचिव के रूप में चुना गया, और बाद में उन्हें आंध्र प्रदेश फुटबॉल एसोसिएशन का सचिव बनाया गया. इसी दौरान उन्होंने खेल के बुनियादी ढांचे को विकसित करने पर काम किया. नॉर्बर्ट एंड्रयू फ्रुवाल के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें हैदराबाद सिटी पुलिस एफसी के कोच बनने की पेशकश की गई थी. उन्होंने 1950 से 1963 में अपनी मृत्यु तक टीम को मैनेज किया.

उनकी देखरेख में टीम ने लगातार पांच रोवर्स कप जीते और पांच डूरंड कप के फाइनल में भी पहुंची, जिनमें से तीन में जीत हासिल की. रहीम ने संतोष ट्रॉफी के लिए भी फुटबॉल टीम को प्रशिक्षित किया, जिसे वरिष्ठ राष्ट्रीय चैंपियनशिप के रूप में जाना जाता था. टीम ने फाइनल में दोनों बार बॉम्बे को हराकर लगातार चैंपियनशिप जीती. 

भारतीय फुटबॉल का Golden Period
रहीम की झोली में सबसे प्रतिष्ठित जीत तब आई जब वह 1950 में भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के प्रबंधक बने. भारत 1950 फीफा विश्व कप का हिस्सा नहीं था, और उन्हें 1949 में सीलोन का दौरा करने वाली टीम को ट्रेनिंग देने का काम सौंपा गया था. यह भारतीय फुटबॉल के "स्वर्ण युग" की शुरुआत थी. रहीम ने टीम को इस तरह प्रशिक्षित किया कि वह एशिया की सर्वश्रेष्ठ फुटबॉल टीमों में से एक बन गई. उन्होंने नई दिल्ली में 1951 के उद्घाटन एशियाई खेलों के दौरान स्वर्ण पदक जीता.

रहीम के कार्यकाल के दौरान भारतीय फुटबॉल टीम को अपार सफलता मिली. टीम 1956 के मेलबर्न ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची, जिसे फुटबॉल में भारत की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता है. रहीम की वजह से नेविल डिसूजा, समर बनर्जी, पी.के. बनर्जी और जे. कृष्णास्वामी जैसे फुटबॉल खिलाड़ी विश्व प्रसिद्ध खिलाड़ी बन गए. उनकी आखिरी सफलता 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में थी, जहां भारत ने फाइनल में दक्षिण कोरिया को हराकर स्वर्ण पदक जीता था.

इन खिलाड़ियों को तराशा 
रहीम को फुटबॉल कोच के रूप में अपने शानदार कार्यकाल के दौरान कई भारतीय प्रतिभाओं को तराशने का श्रेय दिया जाता है. इस सूची में निखिल नंदी, मारियाप्पा केम्पैया, पीटर थंगराज, धर्मलिंगम कन्नन, निखिल नंदी, चुन्नी गोस्वामी, जरनैल सिंह, तुलसीदास बलराम, शेख अब्दुल लतीफ, हुसैन अहमद, मोहम्मद रहमतुल्लाह, केस्टो पाल, यूसुफ खान और अमल दत्ता जैसे नाम शामिल हैं.

मैदान फिल्म एक सच्ची कहानी पर आधारित है, इसलिए लोगों को बेसब्री से इसका इंतजार है. अमित शर्मा द्वारा निर्देशित इस फिल्म का निर्माण बोनी कपूर, आकाश चावला, अरुणव जॉय सेनगुप्ता और ज़ी स्टूडियोज़ ने किया है. फिल्म में अजय देवगन के अलावा प्रियामणि, रुद्रनील घोष और गजराज राव भी प्रमुख भूमिकाओं में हैं. रिपोर्टों के अनुसार, फिल्म 10 अप्रैल 2024 को रिलीज हो रही है.