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#Filmy Friday Sadhna:1 रुपये लेकर हीरोइन बनी थीं साधना...34 साल के करियर में मिला सिर्फ एक अवॉर्ड, एक्टर नहीं फिल्म डायरेक्टर से हुआ था प्यार

साधना ने महज 14 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था. राज कपूर की फिल्म 'श्री 420' में एक गाना मुड़-मुड़ के न देख के कोरस में साधना थीं. इसके बाद उन्होंने 16 साल की उम्र में सिंधी फिल्म 'अबाना' में लीड रोल में काम किया.

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अपनी दिलकश अदाओं से दर्शकों को अपना दीवाना बनाने वाली बॉलीवुड अभिनेत्री साधना 60 के दशक की सबसे खूबसूरत हीरोइनों में से एक थीं. उनके बालों का एक हेयरस्टाइल इतना पॉपुलर हुआ कि उसे साधना कट ही नाम दे दिया गया. उन्होंने अपने करियर में कई बेहतरीन फिल्में दीं. उनकी सबसे यादगार फिल्में मेरा साया, वो कौन थी, एक फूल दो माली, एक मुसाफिर एक हसीना और वक्त रहीं. लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो ना हो, झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में जैसे सुपरहिट गाने मशहूर अभिनेत्री साधना पर ही फिल्माए गए थे.

साधना अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी, इसलिए उनकी परवरिश बहुत लाड प्यार से हुई थी. साधना का जन्म 2 सितंबर, 1941 को कराची में एक सिंधी फैमली में हुआ था. उनके पिता ने उनका नाम एक्ट्रेस साधना बोस के नाम पर साधना रखा था.

पहली फिल्म के लिए मिले थे 1 रुपये
साधना हमेशा से एक्ट्रेस बनना चाहती थीं. साधना शिवदासानी के स्टारडम की राह तभी शुरू हुई जब विभाजन के बाद हुए दंगों के दौरान उनका परिवार कराची से भागकर मुंबई के सायन के पास बैरक में रहने लगा. 1955 में उन्हें पहला छोटा ब्रेक मिला. उन्होंने राज कपूर की फिल्म श्री 420 में "मुड़ मुड़ के ना देख... मुड़ मुड़ के" गाने में एक कोरस लड़की की भूमिका निभाई. इस जय हिंद कॉलेज में उन्हें एक नाटक करते हुए देखने के बाद, जब वह 15 साल की थीं, तब उनसे पहली बार रोल ऑफर किया गया. उन्हें भारत की पहली सिंधी फिल्म अबाना (1958) में कास्ट किया गया था, जहां उन्होंने शीला रमानी की छोटी बहन की भूमिका निभाई थी. मुआवजे के तौर पर उन्हें 1 रुपये की छोटी सी फीस दी गई थी. फिल्म के बाद साधना की तस्वीर एक मैग्जीन में छपी थी.  तब के मशहूर प्रोड्यूसर सशाधर मुखर्जी ने वो तस्वीर देखी और काफी प्रभावित हुए. साधना को उन्होंने अपनी फिल्म 'लव इन शिमला' में कास्ट किया. उनकी ये फिल्म हिट रही. साधना की खूबसूरती से वो इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने अपने बेटे जॉय मुखर्जी के साथ साधना को फिल्म लव इन शिमला में कास्ट कर दिया. इस फिल्म को डायरेक्टर आर.के.नय्यर ने डायरेक्ट किया था, जिससे बाद में साधना ने शादी कर ली थी. इसके बाद साधना उसी बैनर के तले जॉय मुखर्जी के साथ फिल्म एक मुसाफिर, एक हसीना में नजर आईं.

साधना का माथा काफी चौड़ा था इसलिए आर.के. नय्यर ने साधना को अपना हेयर स्टाइल बदलने के लिए कहा. डायरेक्टर ने उन्हें ये सुझाव हॉलीवुड एक्ट्रेस ऑड्रे हेपबर्न के फ्रिंज हेयर स्टाइल से इंस्पायर होकर दिया था. इस फिल्म के बाद उनका ये लुक इतना पॉपुलर हुआ कि उनके नाम से फेमस हो गया. वैसे तो साधना में अपने फिल्मी करियर में एक से बढ़कर एक बेहतरीन फिल्में दीं. लेकिन उन्हें रफी और आशा के डूएट सॉन्ग अभी न जाओ छोड़कर के लिए हमेशा याद किया जाएगा.

पूरे करियर में सिर्फ एक अवॉर्ड
साधना ने फिल्मी करियर में करीब 30 फिल्मों में काम किया था पर उन्हें कोई भी अवॉर्ड नहीं मिला था. फिल्मी करियर छोड़ने के 8 साल बाद साधना को IIFA ने 2002 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवाॅर्ड से सम्मानित किया था. साल 1995 में साधना के पति आरके नैय्यर का निधन हो गया. आरके नय्यर की मौत के बाद साधना की लाइफ में बहुत उतार चढ़ाव आए. इनके कोई संतान नहीं थी. एक्ट्रेस जिस घर में रहती थीं उस पर कोर्ट केस हो गया था और उन्हें बार बार कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते थे. इस बीच साधना बीमार भी रहने लगी थीं. साधना को हाइपरथाईरॉडिज्म हो गया था जिसकी वजह से उन्होंने फिल्मों को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. उनकी आखिरी फिल्म ‘उल्फत की नई मंजिलें’है. 25 दिसंबर 2015 को साधना का निधन हो गया.

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