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Filmy Friday Durga Khote: बॉलीवुड की सबसे रईस हीरोइन जिसका गरीबी से रहा गहरा नाता, क्रू मेंबर की जान बचाने के लिए शेर से भिड़ गई थी एक्ट्रेस...खुद का बेटा खोया लेकिन बनी फिल्म इंडस्ट्री की मां

दुर्गा खोटे का परिवार काफी अमीर था. दुर्गा खोटे ने ना केवल अपना नाम कमाया बल्कि लड़कियों के लिए बॉलीवुड का चेहरा ही बदल दिया. उन्होंने उस दौर में फिल्मों में काम किया जब महिलाओं का फिल्मों में काम करना बुरी नजर से देखा जाता था.

Durga Khote Durga Khote

एक दौर था, जब भारत में नाटकों और फिल्मों आदि में महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं थी. मुगल-ए-आजम में जोधा बाई और सलीम की मां के रोल में नजर आईं दुर्गा खोटे ने उस जमाने में बॉलीवुड में अभिनय किया जब यह सेक्टर भी पुरुष प्रधान था और पुरुष ही कई बार महिला का किरदार निभाते थे. दुर्गा खोटे को बॉलीवुड की वो एक्ट्रेस कहा जा सकता है जिन्होंने फिल्मी दुनिया में महिलाओं के लिए नए आयाम स्थापित किए.मिर्ज़ा ग़ालिब, मुग़ल-ए-आज़म, दादी मां, आनंद, मुसाफ़िर, बावर्ची, बॉबी, भरत मिलाप, नमक हराम और कर्ज़ उनकी कुछ यादगार फिल्मों में एक हैं. दिग्गज अभिनेत्री दुर्गा खोटे की जिंदगी भी किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं है. 

दुर्गा खोटे का जन्म बहुत ही रईस खानदान में हुआ था लेकिन बहुत ही कम उम्र में उनकी शादी हो गई. हालांकि शादी-परिवार सबकुछ ठीक था कि अचानक एक दिन उनके पति का निधन हो गई. उस समय दुर्गा खोटे की उम्र महज 26 साल थी और वो दो बेटों की मां थीं. पति के यूं चले जाने से दुर्गा खोटे को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा और ना चाहते हुए भी फिल्मों में काम करना पड़ा.

बचपन का नाम वीटा लाड था
दुर्गा खोटे का जन्म 14 जनवरी 1905 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. बचपन में उनका नाम वीटा लाड था. उनके पिता का नाम पांडुरंग शामराव लाड था और उनकी मां मंजुलाबाई थीं. दुर्गा खोटे अमीर खानदान से थीं. जिस वक्त महिलाओं को पढ़ने नहीं दिया जाता था, उस वक्त दुर्गा खोटे ने सेंट जेवियर कॉलेज से बीए की पढ़ाई की. कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही उनकी शादी एक अमीर खानदान के लड़के से कर दी गई. उनके पति का नाम विश्वनाथ खोटे था और वो मैकेनिकल इंजीनियर थे. शादी के कुछ समय बाद दुर्गा के पति का निधन हो गया और परिवार को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा. कुछ समय तक ससुर ने घर चलाया लेकिन फिर उनकी भी मौत हो गई. इस दौरान दुर्गा खोटे ने फिल्मों में आने का फैसला किया.

कैसे मिली पहली फिल्म
दुर्गा पढ़ी-लिखी थीं तो कुछ समय के लिए वो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी जिससे परिवार का गुजारा हो जाता था. उस दौरान जे.बी. एच वाडिया दुर्गा खोटे की बहन शालिनी के परिचित थे. उसी समय वे अपनी फिल्म के लिए नए चेहरे की तलाश में थे. उन्होंने शालीनी को फिल्म के एक किरदार का ऑफर दिया लेकिन शालीनी ने मना कर दिया. उन्होंने उस रोल के लिए दुर्गा खोटे का नाम सुझा दिया. दुर्गा खोटे इस किरदार को करने के लिए राजी हो गईं.फिल्म का नाम फरेबी जाल था जो 1931 में रिलीज हुई थी। हालांकि ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से फ्लॉप रही. पहली फिल्म रिलीज हुई और फ्लॉप भी हो गई. उन्हें लोगों की आलोचना का भी सामना करना पड़ा. पहली ही फिल्म में फ्लॉप टैग मिलने पर उन्होंने फिल्मी दुनिया से दूरी बना ली. 

लड़के करते थे लड़की का रोल
दुर्गा खोटे ने उस वक्त फिल्मी इंडस्ट्री में कदम रखा था, जब लड़कियों के रोल भी लड़के ही किया करते थे. फिल्मों में यूं जाने से दुर्गा खोटे की खूब आलोचना हुई. कई तरह की बातें हुईं कि एक रईस परिवार की लड़की फिल्मों में कैसे काम कर सकती है? फिल्म में उनका रोल बस 10 मिनट का था लेकिन उन्हें उतने से रोल के लिए भी काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. लोगों के तानों से वो बुरी तरह से टूट गईं जिस वजह से उन्होंने फिल्मी दुनिया से दूरी बना ली थी. हालांकि बाद में वी.शांताराम के कहने पर दोबारा इंडस्ट्री में कदम रखा और 5 दशक तक इस इंडस्ट्री का हिस्सा बनी रही.

जोधाबाई सबसे यादगार किरदार
इसके बाद उन्होंने फिल्म इत्तेफाक से निर्देशक वी शांताराम का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. उन्होंने दुर्गा खोटे को फिल्म अयोध्येचा राजा में मुख्य किरदार तारामती ऑफर किया. फिल्म का निर्माण प्रभात स्टूडियो द्वारा हिंदी और मराठी दोनों में किया गया था. फिल्म सफल रही और दुर्गा खोटे की उन्हीं लोगों ने प्रशंसा की जिन्होंने कभी उनकी आलोचना की थी. वह रातों-रात स्टार बन गईं. इसके बाद अभिनेत्री ने प्रभात स्टूडियो की माया माचिन्द्रा नाम की एक और फिल्म की जिसमें उन्होंने एक रानी की भूमिका निभाई. उन्होंने फिल्म मुगल-ए-आजम में जोधाबाई का किरदार निभाया जो आज तक उनका सबसे यादगार किरदार है.

फ्रीलांस काम करने वाली पहली एक्ट्रेस 
दुर्गा खोटे हिंदी सिनेमा की पहली ऐसी एक्ट्रेस थीं जिन्होंने स्टूडियो सिस्टम (फिल्मों में काम करने के लिए एक ही स्टूडियो के साथ मासिक वेतन पर एग्रीमेंट) को खत्म किया और फ्रीलांस काम करने वाली पहली एक्ट्रेस बनीं.

जान बचाने के लिए शेर से भिड़ गईं
दुर्गा खोटे एक फिल्म की शूटिंग कोल्हापुर में कर रही थीं. उस दौरान वहां कुछ शेरों को शूट के लिए सेट पर लाया गया था. उनके साथ उन शेरों का ट्रेनर भी था लेकिन तभी अचानक एक शेर ने एक क्रू मेंबर पर हमला बोल दिया. उस आदमी को बचाने के लिए दुर्गा उस शेर से भिड़ गईं. थोड़ी देर बाद ट्रेनर ने उस शेर को शांत कराया और दुर्गा भी बाल-बाल बच गईं.

बनीं फिल्म इंडस्ट्री की 'मां'
जब दुर्गा खोटे फिल्मों में अच्छा खासा नाम कमा रही थीं उस दौरान उनके एक बेटे का निधन हो गया. बेटे के चले जाने से उन्हें गहरा सदमा लगा. लेकिन फिर भी वो ऑनस्क्रीन मां का किरदार निभाती रहीं. उन्होंने फिल्म मुगल-ए-आजम में सलीम की मां जोधा बाई का किरदार निभाया जो आज भी लोगों के जेहन में जिंदा है. इसके अलावा उन्होंने मुगल-ए-आजम, जीत, सिंगार, हम लोग, मिर्जा गालिब, दो भाई, पहेली, पापी और दौलत का दुश्मन में भी मां का किरदार निभाया.

दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड हासिल करने वाली चौथी महिला
दुर्गा खोटे ने लगभग 50 वर्षों तक फिल्म उद्योग में काम किया और लगभग 200 फिल्मों में अभिनय किया. उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उनकी आखिरी फिल्म 1980 के दशक की कर्ज थी जिसके बाद उन्होंने संन्यास ले लिया. दुर्गा खोटे दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड हासिल करने वाली चौथी महिला हैं. साथ ही उन्हें पद्मश्री और फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है. 1991 में 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.