30 अप्रैल, 1870 को जन्मे धुंडीराज गोविंद फाल्के एक भारतीय डायरेक्टर, प्रोड्युसर, पटकथा लेखक, संपादक और डिस्ट्रिब्यूटर थे. देश को पहली फीचर फिल्म देने के लिए उन्हें भारतीय सिनेमा का जनक माना जाता है. भारत की पहली स्वदेशी मूक फिल्म का शीर्षक था, राजा हरिश्चंद्र (1913).
19 साल के करियर में उन्होंने 95 फीचर फिल्मों और 27 शॉर्ट फिल्मों में काम किया. उनकी आखिरी फिल्म, गंगावतरण (1937) दादासाहेब द्वारा बनाई गई एकमात्र फिल्म थी जिसमें साउंड और डायलॉग्स थे. साल 1944 में उनकी मृत्यु के बाद, भारत सरकार ने 1969 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार नाम से उनके नाम पर एक पुरस्कार शुरू किया.
यह भारतीय सिनेमा के विकास में बहुमूल्य योगदान को मान्यता देने के लिए देश में फिल्मी हस्तियों के लिए सर्वोच्च पुरस्कार है. 1971 में, इंडिया पोस्ट ने दादासाहेब पर एक डाक टिकट जारी किया.
फोटोग्राफर के तौर पर की शुरुआत
15 साल की उम्र में दादासाहेब ने मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लिया जहां उन्होंने मूर्तिकला, ड्राइंग, पेंटिंग और फोटोग्राफी की पढ़ाई की. साल 1890 में, वह एक फोटोग्राफर के रूप में काम करने के लिए वड़ोदरा, गुजरात चले गए. लेकिन बुबोनिक प्लेग में अपनी पहली पत्नी और बच्चे को खोने के बाद दादासाहेब ने फोटोग्राफी की नौकरी छोड़ दी.
इसके बाद, उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में एक ड्राफ्ट्समैन के रूप में काम करना शुरू किया. लेकिन महाराष्ट्र में उन्होंने अपना खुद का प्रिंटिंग प्रेस शुरू करने के लिए इस्तीफा दे दिया. भारतीय चित्रकार राजा रवि वर्मा के साथ काम करने के बाद, दादासाहेब ने अपनी पहली विदेश यात्रा की और जर्मनी में एक जादूगर कार्ल हर्ट्ज़ के साथ काम किया.
कैसे मिली फिल्म बनाने की प्रेरणा
फर्डिनेंड जेक्का की मूक फिल्म, द लाइफ ऑफ क्राइस्ट देखने के बाद दादासाहेब का जीवन बदल गया. और फिर दादासाहेब ने अपनी पहली फिल्म बनाने का मन बनाया. लेकिन यह इतना आसान नहीं रहा. उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी आई फिल्म की एक्ट्रेस तलाशने में.
जी हां, उस समय महिलाओं के लिए कैमरा के सामने काम करना अपमान की बात समझी जाती थी. इसलिए उन्हें अपनी फिल्म में काम करने के लिए कोई महिला कलाकार नहीं मिली. उन्होंने उस समय तवायफों से भी काम के लिए पूछा लेकिन वे भी तैयार नहीं हुईं. ऐसे में, उन्होंने एक रसोइये को फिल्म में लीड एक्ट्रेस का रोल दिया.
पत्नी और बेटे ने भी किया फिल्म में काम
दादासाहेब ने अपनी फिल्म में निर्देशन, डिस्ट्रिब्यूशन, और सेट-बिल्डिंग को कंट्रोल किया. और उन्होंने अपनी पहली फिल्म में हरिश्चंद्र की भूमिका भी निभाई. उनकी पत्नी ने कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग का काम संभाला और उनके बेटे ने फिल्म में हरिश्चंद्र के बेटे की भूमिका निभाई. इस पूरी फीचर फिल्म को बनाने के लिए दादासाहेब ने 15 हजार रुपये खर्च किए.