बॉलीवुड के पहले खान कहे जाने वाले दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर, 1922 को हुआ था. लगभग छह दशकों के करियर में, दिलीप कुमार न केवल अपने अभिनय और बेदाग डायलॉग डिलीवरी के लिए बल्कि अपने सुपरहिट गानों के लिए भी जाने जाते थे. फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए, भारत सरकार ने उन्हें देश के तीसरे और दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, 1991 में पद्म भूषण और 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया था. दिलीप की बेहतरीन फिल्मों में 'देवदास', 'मुगल-ए-आजम', 'क्रांति', 'नया दौर', 'मधुमति', 'राम और श्याम' आदि शामिल हैं. त्रासद या दुःखद भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें 'ट्रेजिडी किंग' भी कहा जाता था.
आर्मी क्लब में एक सैंडविच स्टॉल चलाते थे दिलीप
दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर, 1922 को पाकिस्तान के पेशावर में यूसुफ खान के रूप में हुआ था और वह 12 भाई-बहनों में से एक थे. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा बार्न्स स्कूल, देवलाली, नासिक से पूरी की. राज कपूर उनके बचपन के दोस्त थे, जो बाद में फिल्म इंडस्ट्री में उनके सहयोगी भी बने. 1943 में उन्होंने पुणे के आर्मी क्लब में एक सैंडविच स्टॉल भी चलाया था. उनके पिता एक फल व्यापारी और जमींदार थे, जो पेशावर और नासिक के पास देवलाली में बागों के मालिक थे.
मधुबाला से लग रहे थे रिश्तों के कयास
फिल्म उद्योग में अपने करियर की शुरुआत में, दिलीप कुमार उर्दू भाषा में प्रवीणता के कारण पटकथा और कहानी-लेखन में मदद करते थे. सायरा बानो से शादी करने से पहले, दिलीप कुमार के मधुबाला के साथ रिश्ते के बारे में कयास लगाए जा रहे थे. उसके बाद साल 1966 में दिलीप की शादी उस वक्त की बॉलीवुड डीवा सायरा बानो के साथ हो गई, जो उनसे 22 साल छोटी थीं. तब दिलीप कुमार ने फिल्मों से पांच साल का लंबा ब्रेक लिया, जो 1976 से 1981 तक चला.
पाकिस्तान से मिला सर्वोच्च नागरिक का पुरस्कार
उनके अभिनय करियर के समाप्त होने के बाद, दिलीप को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के माध्यम से संसद के ऊपरी सदन के लिए नामित किया गया था. उन्होंने 2000 से 2006 तक महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद के रूप में कार्य किया. 1998 में, पाकिस्तान सरकार ने दिलीप को उनकी सर्वोच्च नागरिक अलंकरण निशान-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया, जिससे वह सम्मान प्राप्त करने वाले एकमात्र भारतीय बन गए. उनकी एक आत्मकथा भी है जिसका नाम 'द सब्सटेंस एंड द शैडो' है.
उनकी मृत्यु के बाद ये पहला जन्मदिन होगा
1922 में पेशावर में जन्में दिलीप स्वास्थ्य संबंधी कारणों से सिनेमा जगत से दूर जाने से पहले दशकों तक दर्शकों का मनोरंजन किया. लंबी बीमारी के बाद अपनी पत्नी सायरा बानो, परिवार और प्रशंसकों की आंखें नम कर सुपरस्टार ने 7 जुलाई, 2021 को इस दुनिया से विदाई ले ली. उनकी मृत्यु के बाद अभिनेता का यह पहला जन्मदिन होगा और हर कोई इस बारे में बात कर रहा है कि सायरा बानो का उनकी अनुपस्थिति में अपना दिन मनाने के बारे में क्या कहना है. दिलीप कुमार की जयंती से पहले, उनकी पत्नी ने विशेष रूप से ईटाइम्स के हवाले से एक इमोशनल लेटर लिखा, जिसमें उनके दिवंगत पति और अभिनेता के बचपन और परिवार के बारे में जिक्र है.
सायरा बानो ने लिखा इमोशनल लेटर
सायरा लिखती हैं, "11 दिसंबर, 1922 पेशावर, पूर्व-विभाजन भारत में उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत. 11 दिसंबर की बेहद ठंडी रात में, जब पेशावर के किस्सा ख्वानी बाजार में ठंडी हवाओं के झोंके से भीषण आग भड़क रही थी, मेरी जान, यूसुफ साहब, पेशावर के एक प्रमुख फल व्यापारी मोहम्मद सरवर खान की खूबसूरत पत्नी आयशा बेगम के चौथे बच्चे के रूप में पैदा हुए थे. इस साल 11 दिसंबर को, जो कल है, उनका 99वां जन्मदिन होगा."
वो आगे लिखती हैं, "हालांकि, उनके लाखों प्रशंसक और मैं (उनकी फैन नंबर 1) इस दिन को अपने आप में चुप-चाप मना लेंगे, लेकिन हम सभी अच्छे से जानते हैं कि वह हमारे जीवन में हमेशा के लिए हैं. तथ्य यह है कि दिलीप साहब बहुत खुश थे और गर्व करते थे कि वह एक अविभाजित भारत में पैदा हुए था और वह एक बड़े, खुशहाल परिवार में पला-बढ़े थे, जो बड़ों के सम्मान के बंधन से जुड़ा था, छोटे सदस्यों और महिलाओं की देखभाल करता था और एक दूसरे पर अटूट विश्वास रखता था."
वो आगे लिखती हैं, "साहेब को अपने पिता द्वारा अपने बेटों और बेटियों में दी गई देशभक्ति पर भी गर्व था और उन्हें और उनके ग्यारह भाई-बहनों को सभी समुदायों और सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ घुलने-मिलने की आजादी दी गई थी. इसलिए, अपने जीवन भर में दिलीप साहब औरों से काफी अलग थे, वो सभी क्षेत्रों और समाज के सभी वर्गों के लोगों के साथ पूरी तरह से कम्फर्टेबल थे."
अपनी शादी के बारे में बात करते हुए, सायरा बानो लिखती है, "साहेब से मेरी शादी के बाद, मुझे एक ऐसे जीवन के आदी होने में कोई कठिनाई नहीं हुई, जिसमें मेहमानों और रिश्तेदारों का बेवक्त स्वागत कभी कराया जाता था, और उन्हें कंफर्टेबल महसूस कराते हुए शाही पठान शैली में खाना खिलाया जाता था. हमारे जीवन के सभी खास मौकों पर हमने लोगों और फूलों से अपना घर भरा देखा है. उस घर को रोशन देखा है. न तो मोमबत्ती की रोशनी से और न ही बिजली की रोशनी से, बल्कि ड्राइंग रूम, फ़ोयर और बगीचे में साहेब की उपस्थिति से, जहां पर वो हर मेहमान पर ध्यान दिया करते थे, चाहें वो किसी भी पेशे या सोशल स्टेटस का हो."
"साहेब के फिल्म इंडस्ट्री और हमारे समुदाय के बाहर और भी दोस्त थे, जो जन्मदिन, सालगिरह, ईद, दिवाली, क्रिसमस आदि अवसरों पर ओपन हाउस में आने वाले कई लोगों को हैरान भी करते थे."
अपनी शादी की सालगिरह के बारे में बताते हुए सायरा लिखती है, "जैसा कि मैंने दो महीने पहले हमारी शादी की सालगिरह के अवसर पर कहा था, वह हमारे बीच में है, धीरे से मेरा हाथ पकड़ रहे है और बिना शब्दों के अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं ... अपनी आँखों की बेजोड़, अद्वितीय वाक्पटुता से."
सायरा बानो ने लिखा, "एक बार फिर मुझे पता है कि मैं अभी और हमेशा के लिए अकेली नहीं हूं. जन्मदिन मुबारक हो, जान."