सिनेमा को किसी भी दौर का आईना कहा जाता है. ऐसे में एक ऐसी फिल्म जिसमें 11 के ग्रुप में बच्चों को इकट्ठा होते दिखाया गया हो, उनका बकबक करना, बैट घुमाना, घर से पार्क तक क्रिकेट खेलने जाना और इसी सफर के बीच में उनकी छोटी-छोटी बातें … यकीनन ये दिल को छू लेने वाली तस्वीर है. दरअसल, ये तस्वीर एक मलयालम फिल्म मदापल्ली यूनाइटेड (Madappally United) की है. जो जुलाई में रिलीज होने वाली है. फिल्म कैसी है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई फिल्म समारोहों में इसने पुरस्कार जीते हैं.
Madappally यूनाइटेड फिल्म को लेकर GNT डिजिटल ने डायरेक्टर और राइटर अजय गोविंद से बात की. उन्होंने बताया कि ये फिल्म बच्चों की फिल्म है, बच्चों के साथ बनाई गई है और बच्चों के लिए बनाई गई है. चलिए पढ़ते हैं बातचीत के मुख्य अंश-
फिल्म के डायरेक्टर और राइटर अजय गोविंद कहते हैं, “इस फिल्म की शुरुआत दरअसल ऐसे हुई कि मैं एक डाक्यूमेंट्री की शूटिंग करने गया था केरल के मदापल्ली कोस्टल एरिया के एक स्कूल में गया था. उस वक़्त मेरे दिमाग में एक स्टोरी आईडिया था जो बच्चों के एक ग्रुप पर बेस्ड था. शूटिंग के वक्त कई बच्चों ने इंटरेक्शन किया और उन्होंने मुझे काफी इम्प्रेस किया. इससे पहले भी मैंने बच्चों के साथ डाक्यूमेंट्री शूट की है. तो मेरे दिमाग में हमेशा से ये आईडिया था. तब मैंने देखा कि बच्चों को अलग अलग चीजें सिखाई जा रही थी जैसे उन्होंने एक्टिंग की क्लासिस ली और उन्हें मार्शलआर्ट सिखाया गया, उन्होंने बड़े मन से सीखा. बस इसी से मुझे इंस्पिरेशन मिली कि मैं ये फिल्म बनाऊं.”
क्या है कहानी?
इस कहानी को लेकर अजय कहते हैं, “ये कहानी है कि स्कूल में पढ़ रहे बच्चों की. इन बच्चों को एक प्रोग्राम के तहत नए स्पोर्ट्स किट्स दिए जाते हैं. उन स्पोर्ट्स किट में से एक क्रिकेट किट होती है और उस किट को लेकर बच्चे खेलने जाते हैं. अक्सर हम देखते हैं कि हमारे घरों के पास के इलाकों में प्ले ग्राउंड होते हैं. ये घर के ज्यादा पास नहीं होते हैं. ऐसे में बच्चे जब खेलने जाते हैं तो अगल बगल के घरों के इकट्ठे करते हुए सभी बच्चे खेलने जाते हैं. तो वो जो घर से प्ले ग्राउडं तक का सफर होता है और उस दौरान जो चीजें या बातें होती हैं उसी सफर को इस फिल्म में दिखाया गया है.”
बच्चों की एक्टिंग कैसे मैनेज की?
अजय कहते हैं, “किसी भी फिल्म में सबसे ज्यादा जरूरी चीज कास्टिंग होती है कि आप फिल्म में एक्ट करने वाले लोगों को किस तरह से चुनते हैं. तो सबसे अच्छी बात ये रही कि जिन 11 बच्चों को इस फिल्म में लिया गया है मुझे उन बारे में पहले से थोड़ा बहुत आईडिया था कि ये कौन है और इनका पर्सनेलिटी ट्रेट क्या है. तो जब मैंने फिल्म में कास्टिंग डायरेक्टर राजेश को जब ये फिल्म की कहानी सुनाई तो उन्होंने जिन भी कैरेक्टर के बारे में मैंने उन्हें बताया तो उन्होंने उसे काफी अच्छे से समझ लिया था. तो जब हम फिल्म की कास्ट चुन रहे थे हमने जरीब 900 बच्चों का ऑडिशन लिया. लेकिन हमें उन्हें चुनने में कोई परेशानी नहीं आई.”
अजय गोविंद आगे कहते हैं,“वहीं, बच्चों के साथ शूटिंग की बात करें तो वो भी काफी मजेदार रही. कभी-कभार ऐसा होता था कि हमें रीशूट करना पड़ता था तो बच्चों को कहने की भी जरूरत नहीं पड़ती थी वे अपने आप ही समझ जाते थे. हालांकि, 11 बच्चों को संभालना और उन्हें स्क्रीनप्ले का पार्ट बनाना थोड़ा चलेंजिंग था. क्योंकि वो सब अलग अलग उम्र के बच्चे थे. इस फिल्म में काफी जाने माने एक्टर्स भी हैं. इन लोगों के साथ चैलेंज एक्सपेक्टेड था ही नहीं. इन दोनों का प्रोसेस एकदम अलग था. इस दौरान बच्चों ने काफी बार हमें शॉक किया. ऐसे ही एक एक्ट में जिसमें हम पुलिस स्टेशन के बाहर शूट कर रहे थे. तो खत्म होने के बाद उन्होंने भी कहा कि मुझे नहीं लग रहा था कि बच्चे एक टेक में शूट कर पाएंगे इसे. तो फिल्म के जो सीनियर एक्टर्स थे वो भी बच्चों से काफी इम्प्रेस हुए थे.”
अपने आप में परफेक्ट लोकेशन है मदापल्ली
लोकेशन को लेकर अजय बताते हैं, “मदापल्ली के बारे में सबसे अच्छी बात थी कि वो लोकेशन फिल्म के लिए एकदम फिट थी. वहां का आसपास का इलाका, वहां के बच्चे, वहां के लोग, वहां गलियां सब परफेक्ट था. इसलिए मैंने उस जगह को चुना. तो फिल्म का जो स्ट्रक्चर था वो इस जगह से एकदम मैच कर रहा था. तो मैंने पहले से ही सोचा था कि इस फिल्म में सबकुछ नेचुरल होना बेहद जरूरी था. मादपल्ली इतनी खूबसूरत जगह है कि हमें एक भी शोट के लिए कहीं और जाना ही नहीं पड़ा. हमें जो कुछ भी इस फिल्म के लिए चाहिए था वो सब इस लोकेशन पर था.”
बच्चों पर सिनेमा बनना बहुत जरूरी है
अजय का मानना है कि बच्चों के लिए फिल्म बनना बहुत जरूरी है. वे कहते हैं, “बच्चों पर फिल्म बनना और बच्चों के साथ फिल्म बनना बहुत जरूरी है क्योंकि मुझे लगता है कि इसका समाज पर बहुत असर पड़ता है, सिनेमा जिस तरह के बदलाव लेकर आ सकता है वही कहानियां अगर बच्चों के इर्द गिर्द हो और बच्चे उसमें हों तो उन बच्चों में सिनेमा काफी बदलाव ला सकता है. फिल्मों ऐसे हमारे असल जिंदगी काफी इंस्पायर होती है. तो जब बच्चे फिल्म में होते हैं तो इससे बच्चे आसानी से सीख पाते हैं. और इससे उनपर पॉजिटिव इम्पैक्ट पड़ेगा. और चूंकि आज इतने सारे प्लेटफॉर्म्स आ गए हैं जिनपर घर पर सबलोग साथ बैठकर देखते हैं ऐसे में बहुत जरूरी है कि ऐसा सिनेमा बने जो बच्चों के लिए हो और बच्चों के द्वारा बनाया गया हो.”
बता दें, इस पूरी फिल्म को बनने में 1 साल लगा है. हमने 2020 के लॉकडाउन से पहले ही इसे शूट कर लिया था. मदपाली जुलाई में रिलीज हो रही है.
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