मृणाल सेन ऐसे फिल्मकार थे जिन्होंने अपनी फिल्मों के जरिए भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलाई. 14 मई 1923 को अविभाजित बंगाल के फरीदपुर कस्बे में जन्में मृणाल सेन को समाज की सच्चाई का कलात्मक चित्रण करने के लिए जाना जाता था.
फिल्म बनाने की ऐसी की शुरुआत
मृणाल ने कोलकाता से अपनी ग्रेजुएशन की. इसके बाद उन्होंने एक फिल्म स्टूडियो में ऑडियो टेक्निशियन के रूप में काम करना शुरू कर दिया. यहीं से उनके फिल्मी करियर की शुरुआत हुई. मृणाल सेन ने काम के दौरान कई बुक्स पढ़ीं जो फिल्म मेकिंग के बारे में थीं. इससे उनके अंदर भी फिल्में बनाने का सपना पनपने लगा.
नील आकाशेर नीचे फिल्म को लोगों ने सराहा
1955 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म रातभोर बनाई. ये कुछ खास नहीं चली जिससे उनका मन टूट गया. कुछ समय के ब्रेक के बाद उन्होंने फिल्म नील आकाशेर नीचे बनाई. इस फिल्म ने उन्हें बतौर निर्देशक फिल्म इंडस्ट्री में नई पहचान दी. उनकी तीसरी फिल्म बाइशे श्रावण ने मृणाल सेन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कर दिया. उन्होंने बंग्ला भाषा में ही नहीं, बल्कि हिंदी, उड़िया और तेलगु भाषा में भी कई फिल्में बनाई थीं. 80 वर्ष की उम्र में 2002 में अपनी आखिरी फिल्म आमार भुवन बनाई थी. मृणाल सेन का निधन 30 दिसंबर 2018 को हुआ था.
इन पुरस्कारों से नवाजा गया
मृणाल सेन के लिए पुरस्कार और सम्मान मिलना कोई नई बात नहीं थी. साल 2005 में भारत सरकार ने उनको पद्म विभूषण से नवाजा था. मृणाल को मिलान और पुणे अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार के अलावा सोवियत लैंड अवॉर्ड (1979), पद्म भूषण(1981) फ्रांस का कमांडर डी ओड्र डेस आर्ट्स एट लैटर्स (1983) एशियन फेडरेशन का ऑर्डर ऑफ फ्रैंडशिप (2000) प्राप्त हो चुके हैं. 2000 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने अपने देश के सबसे बड़े सम्मान ऑर्डर ऑफ फ्रेंडशिप से मृणाल सेन को सम्मानित किया था. ये सम्मान पाने वाले वो अकेले भारतीय फिल्म मेकर हैं.
स्टूडेंस्ट्स सीखते हैं फिल्म मेकिंग के गुर
मृणाल सेन 1998-2003 तक राज्यसभा के सांसद भी रहे. 2005 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया था. मृणाल सेन को लोग प्यार से मृणाल दा कहकर बुलाते थे. उनकी फिल्में आज भी बड़े-बड़े फिल्म इंस्टीट्यूट में दिखाई जाती हैं ताकि स्टूडेंट्स उनसे फिल्म मेकिंग के गुर सीख सकें. मृणाल सेन ने सिनेमा माध्यम को लेकर जितने प्रयोग किए, कथा कहने की जो प्रविधि अपनाई वह अद्वितीय है. यही वजह है कि तकनीक क्रांति के इस दौर में उनकी फिल्में युवा फिल्मकारों को अपने करीब लगती है.मृणाल सेन कान्स, शिकागो, बर्लिन, वीनस, टोक्यो आदि समारोह में निर्णायक रह चुके हैं.
सुपरहिट फिल्में
मृणाल सेन की सुपरहिट फिल्में में भुवन शोम, मृगया, आकाश कुसुम, बाइशे श्रावण, नील आकाशेर नीचे, बैशे श्रावणा, अकालेर संधाने, खंडहर, खारिज, ओका उरी कथा, कोरस, जेनेसिस, एक दिन अचानक आदि शामिल हैं. मिथुन चक्रवर्ती ने 1976 में जिस प्रशंसित फिल्म मृगया से अपना डेब्यू किया था और जिसके लिए उन्होंने बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड जीता था वो मृणाल सेन ने ही बनाई थी. उन्हें भी इस फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था.