'शहंशाह-ए-कव्वाली' के नाम से मशहूर कव्वाली आइकन उस्ताद नुसरत फतेह अली खान की आज यानी 16 अगस्त को पुण्यतिथि है. मशहूर गायक और संगीतकार नुसरत फतेह अली खान अपनी पारंपरिक कव्वाली और दिल को छू लेने वाले संगीत के लिए आज भी याद किए जाते हैं. म्यूजिक इंडस्ट्री में योगदान के लिए उन्हें प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. भारत से ताल्लुक रखने वाले नुसरत फतेह अली खान भले ही पाकिस्तानी कव्वाल थे, लेकिन हिंदुस्तान में उन्हें काफी प्यार मिला. फिल्मी फ्राइडे में आज बात करेंगे उस्ताद नुसरत फतेह अली खान की.
नुसरत फतेह अली खान का जन्म 13 अक्टूबर 1948 को लायलपुर (फैसलाबाद, पाकिस्तान) में हुआ था. नुसरत साहब का नाम पहले परवेज रखा गया था. नुसरत के पिता उस्ताद फतेह अली खान और उनके दो चाचा उस्ताद मुबारिक अली खान और उस्ताद सलामत अली खान मशहूर कव्वाल थे. नुसरत के के पिता से कव्वाली सीखने देश-विदेश से लोग आते थे.
टॉफियों के लालच में सीखा संगीत
कम उम्र में ही नुसरत को संगीत की तालीम मिलनी शुरू हो गई. कई बार तो उन्हें संगीत सिखाने के लिए टॉफियों का लालच दिया जाता था. इस तरह कम उम्र में ही नुसरत के पिता ने उन्हें सुर की बारीकियों से परिचित कराया. नुसरत फतेह अली रियाज करते रहे. वे छोटे-मोटे स्टेज शो या धार्मिक समारोहों में परफॉर्मेंस देते थे.
पिता के इंतकाल के बाद गाना शुरू किया
1964 में पिता के इंतकाल के बाद नुसरत फतेह अली खान ने जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाने की ठानी. उन्होंने अपने चाचा के साथ मिलकर कार्यक्रमों में गाना शुरू किया. वहीं, जब चाचा मुबारक अली खान दुनिया से गुजरे तो कव्वाली ग्रुप की पूरी जिम्मेदारी नुसरत फतेह अली खान को सौंप दी गई.
सबसे ज्यादा कव्वाली गाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड
साल 1971 में हजरत दादागंज बख्श के उर्स में गाने के बाद नुसरत को खूब प्रसिद्धि मिली. इसके बाद कभी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 2001 तक कुल 125 एल्बमों के साथ सबसे ज्यादा कव्वाली गाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड उस्ताद नुसरत फतेह अली खान ने अपने नाम किया. उस्ताद नुसरत फतेह अली पहले गायक थे जिन्होंने पश्चिमी और पूर्वी संगीत शैलियों को एक साथ मिलाया.
ऋषि कपूर और नीतू सिंह की शादी के मौके पहली बार भारत आए थे
नुसरत फतेह अली खान कव्वाली गाने भारत भी आए. पहली बार वो 1980 में ऋषि कपूर और नीतू सिंह की शादी के मौके पर गाने आए थे. यही वह पहला मौका था, जब नुसरत फतेह भारत आए और उनकी आवाज हिन्दुस्तानियों के दिलों तक घर कर गई. उन्होंने हिंदी सिनेमा के लिए कई लोकप्रिय गाने गाए. इसमें 'कोई जाने कोई न जाने', 'दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है', 'खाली दिल नहीं' शामिल है.
48 साल में दुनिया को कहा अलविदा
उनकी लोकप्रिय कव्वाली में 'मेरा पिया घर आया', 'दमा दम मस्त कलंदर, 'दिल गलती कर बैठा है', 'ये जो हल्का-हल्का सुरूर है', 'तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी' शामिल हैं. उन्होंने पाकिस्तानी फिल्मों के लिए कई गाने गाए और उनके म्यूजिक की नकल भारत में भी की गई. दुनिया के प्रसिद्ध संगीतकार उनके साथ काम करना अपना सौभाग्य मानते थे. 16 अगस्त 1997 को 48 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया. लेकिन 6 मिलियन मासिक Spotify लिसनर्स और एक अरब से ज्यादा YouTube व्यूअर्स के साथ उनकी विरासत बढ़ती जा रही है.