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Filmy friday Jubilee Kumar: स्टारडम के दिनों में 'जुबली कुमार' कहलाए, जब करियर ढलान पर आया तो बेचना पड़ा अपना लकी बंगला, पढ़िए कहानी राजेंद्र कुमार की

1960 के दशक में राजेंद्र कुमार को 'जुबली कुमार' के नाम से जाना जाता था और इसकी एक खास वजह थी. आज के दर्शक भले ही 'सिल्वर जुबली' से वाकिफ न हों, लेकिन उस समय किसी फिल्म का सिल्वर जुबली मनाना बड़ी बात हुआ करती थी.

 Jubilee Kumar Jubilee Kumar
हाइलाइट्स
  • पुलिस की नौकरी छोड़ एक्टिंग करने आए

  • ऐसे राजेंद्र कुमार बने जुबली कुमार

फिल्मी फ्राइडे (Filmy Friday) में आज हम जिस एक्टर की बात कर रहे हैं उन्होंने लगातार कई हिट फिल्में दीं...उनकी ज्यादातर फिल्में सिल्वर जुबली होती थी. लोग उनकी किस्मत पर गश खाकर गिरते थे और सोचते थे कोई इतना लकी कैसे हो सकता है. मेकर्स के लिए वो हिट फॉर्मूला थे. जी हां हम बात कर रहे हैं राजेंद्र कुमार (Rajendra Kumar) यानी 'जुबली कुमार' की.

पुलिस की नौकरी छोड़ एक्टिंग करने आए
राजेंद्र कुमार का जन्म 20 जुलाई 1929 को सियालकोट के तुली फैमिली में हुआ था. विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया. यहां आकर उनके पिता ने कपड़ों का कारोबार शुरू किया. राजेंद्र कुमार की पढ़ाई लिखाई पाकिस्तान और भारत में हुई. यहां पर राजेंद्र की पुलिस में नौकरी भी लग गई थी, लेकिन ट्रेनिंग में जाने से दो दिन पहले वह एक्टर बनने मुंबई पहुंच गए.

5 साल तक स्ट्रगल करते रहे
मुंबई आकर राजेंद्र कुमार को अहसास हुआ कि हीरो बनना इतना भी आसान काम नहीं है. परिवार से लड़कर वो एक्टर बनने मुंबई आए थे ऐसे में शर्म के मारे उन्होंने घर न जाने का फैसला किया और मुंबई में ही संघर्ष करने लगे. 5 साल तक उन्होंने असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम किया. इसके बाद 1949 में फिल्म 'पतंगा' में वो छोटी भूमिका में नजर आए. इसके बाद किदार शर्मा की 1950 की फिल्म 'जोगन' में दिलीप कुमार और नरगिस के साथ एक छोटे रोल में उन्हें कास्ट किया गया. निर्माता देवेन्द्र गोयल ने राजेंद्र कुमार को 'जोगन' में देखा और उन्हें 1955 में 'वचन में ब्रेक दिया'. इस फिल्म के लिए उन्हें केवल 1500 रुपये दिए गए थे.

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पहली हिट फिल्म 'मदर इंडिया'
राजेंद्र कुमार की पहली बड़ी हिट महबूब खान की 'मदर इंडिया' थी, लेकिन इस फिल्म का पूरा क्रेडिट नरगिस को दिया गया. राजेंद्र कुमार की हिट फिल्मों का सिलसिला 1959 में आई फिल्म 'धूल का फूल' से शुरू हुआ और उसके बाद 'घराना', 'दिल एक मंदिर', 'मेरे महबूब', 'संगम', 'आई मिलन की बेला', 'आरज़ू', 'सूरज', 'झुक गया आसमान', 'तलाश' और 'गंवार' जैसी फिल्में आईं, जिसने उन्हें हिंदी सिनेमा का जुबली कुमार के रूप में स्थापित किया.

ऐसे जुबली कुमार बने राजेंद्र कुमार
1960 के दशक में राजेंद्र कुमार को 'जुबली कुमार' के नाम से जाना जाता था और इसकी एक खास वजह थी. आज के दर्शक भले ही 'सिल्वर जुबली' से वाकिफ न हों, लेकिन उस समय किसी फिल्म का सिल्वर जुबली मनाना बड़ी बात हुआ करती थी. ये शब्द उन फिल्मों के लिए इस्तेमाल किया जाता था जो थिएटर में 25 सप्ताह तक चलती थीं. इससे ज्यादा वक्त तक थियेटर में चलने वाली फिल्मों को गोल्डन जुबली कहा जाता था. राजेंद्र कुमार को 'जुबली कुमार' कहा गया क्योंकि 1960 के दशक में उनकी लगभग सभी फिल्में 'सिल्वर जुबली' थीं. निर्माता उन्हें अपनी फिल्म में लेने के लिए तरसते थे क्योंकि राजेंद्र कुमार जिस भी फिल्म का हिस्सा बनते वो सुपरहिट होती थी.

ये किस्सा रहा बेहद दिलचस्प...
राजेंद्र कुमार को लेकर एक किस्सा बताया जाता है कि 'वचन' के प्रीमियर के लिए जब उनसे पूछा गया कि क्या वह अपने रिश्तेदारों या दोस्तों के लिए कोई सीट चाहते हैं, तो उन्होंने 10 सीटें बुक कर लीं ये सोचकर की वो फ्री होंगी. कुछ दिनों के बाद जब राजेंद्र कुमार अपनी फीस लेने गए तो उन्हें कम पैसे दिए गए और जब उन्होंने इसका कारण पूछा तो उन्हें बताया गया कि जो सीटें उन्होंने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए ली थीं, उनके पैसे काट लिए गए थे. उन्होंने भी जब नाम फिल्म से अपने बेटे कुमार गौरव को लॉन्च किया तो हांगकांग से भारत की गई लंबी कॉलों के लिए अमृता सिंह की फीस से कुछ अमाउंट काट लिया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि राजेंद्र कुमार के इंडस्ट्री के लोग कंजूस कहते थे.

दोस्ती को रिश्तेदारी में बदला
राजेंद्र कुमार ने शुक्ला कुमार से शादी की. उनके तीन बच्चे हुए, दो बेटियां और एक बेटे कुमार गौरव. कुमार गौरव की शादी सुनील दत्त की बेटी नम्रता दत्त से हुई है. राजेंद्र कुमार सुनील दत्त के अच्छे दोस्त थे. जब भी दोस्त सुनील दत्त चुनाव लड़ते थे तो राजेंद्र कुमार उनके लिए प्रचार करते थे.

राजेश खन्ना को बेच दिया अपना लकी बंगला
हालांकि कहते हैं ना हर सूरज ढलता जरूर है...70 के दौर में उनका रंग फीका पड़ने लगा और माली हालत भी खराब होने लगी. अपनी आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए राजेंद्र कुमार को अपना लकी बंगला 'डिंपल' बेचना पड़ा. जब उन्हें ये बंगला छोड़कर जाना पड़ा था, वो पूरी रात रोते रहे थे.

कहा जाता है राजेश खन्ना ने राजेंद्र कुमार का बंगला सिर्फ इसलिए खरीद लिया था क्योंकि इसी बंगले में आते ही राजेंद्र कुमार जुबली स्टार बने थे. जब राजेंद्र कुमार ने राजेश खन्ना को बंगला बेच दिया, तो उन्होंने बंगले का नाम 'डिंपल' हटाने को कहा. राजेंद्र कुमार ने अपने बंगले का नाम अपनी बेटी डिंपल के नाम पर रखा था. राजेश खन्ना के लिए यह बंगला काफी लकी साबित हुआ था. उन्होंने इसमें शिफ्ट होने के बाद एक के बाद एक 15 हिट फिल्में दी थीं. 12 जुलाई, 1999 को राजेंद्र कुमार इस दुनिया को अलविदा कह गए.