scorecardresearch

गंगूबाई काठियावाड़ी से पहले वेश्याओं की जिंदगी के अलग-अलग पहलुओं से रूबरू करा चुकी है बॉलीवुड की ये फिल्में

संजय लीला भंसाली की फिल्मों में सेक्स वर्कर को दिखाया जाना कोई इत्तेफाक नहीं है. दरअसल संजय लीला भंसाली  रेड लाइट एरिया के पास ही बड़े हुए हैं. भंसाली ने वेश्याओं की जिंदगी को बहुत करीब से देखा है और अब वो उसी करीबी से अपने दर्शकों को वेशयाओं की जिंदगी के बारे में बता रहे हैं. यह सब 2002 में फिल्म “देवदास” के साथ शुरू हुआ, जो शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की कहानी पर आधारित थी. 

गंगूबाई काठियावाड़ी गंगूबाई काठियावाड़ी

सेक्स वर्कर्स की जिंदगी पर "गंगूबाई काठियावाड़ी "  खूब चर्चा में है. इस फिल्म में ये दिखाया गया है कि कैसे एक लड़की को जबरदस्ती सेक्स वर्कर के दलदल में उतार दिया जाता है  लेकिन आगे चल कर वही लड़की इस पेशे में फंसी लड़कियों के हक की आवाज बनती है. वैसे एक बात तो तय है कि सेक्स वर्कर का नाम सुनकर सबके जहन में एक सवाल जरूर आता है कि आखिर सेक्स वर्कर की जिंदगी कैसी होती होगी. क्योंकि ये कहानी महज एक गंगूबाई की नहीं है , ये कहानी है इस पेशे में फंसी उन तमाम लड़कियों की जो इस दलदल से निकलना चाहती हैं. और सेक्स वर्कर की लाइफ को जानने और समझने के दो ही तरीकें हैं.. सिनेमा या किताबें. आज हम ऐसी ही कुछ फिल्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जो सेक्स वर्कर की कहानी बताती हैं.  इन फिल्मों की बात करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इन फिल्मों में सेक्स वर्कर्स की जिंदगी, चुनौतियों और उनके प्रति समाज की धारणा को दिखाया गया है. 

संजय लीला भंसाली की फिल्मों में सेक्स वर्कर को दिखाया जाना कोई इत्तेफाक नहीं है. दरअसल संजय लीला भंसाली  रेड लाइट एरिया के पास ही बड़े हुए हैं. भंसाली ने वेश्याओं की जिंदगी को बहुत करीब से देखा है और अब वो उसी करीबी से अपने दर्शकों को वेशयाओं की जिंदगी के बारे में बता रहे हैं. यह सब 2002 में फिल्म “देवदास” के साथ शुरू हुआ, जो शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की कहानी पर आधारित थी.  इस दुखद कहानी के तीन हिस्सेदारों में से एक वेश्या चंद्रमुखी थी. यहां भी चंद्रमुखी को सिर्फ उसी तरह से दिखाया गया, जो एक सामान्य सेक्स वर्कर की लाइफ होती है.  कुछ साल बाद संजय लीला भंसाली ने एक इंटीमेट लव स्टोरी “सावरिया” बनाई.  इस कहानी में सेक्स वर्कर का अलग से कोई रोल नहीं था लेकिन इस फिल्म की कहानी गुलाब द्वारा नैरेट की गई, जो एक सेक्स वर्कर थी.   

टिकली और लक्ष्मी बॉम्ब

आदित्य कृपलानी के उपन्यास पर आधारित यह  फिल्म सेक्स वर्कर्स की जिंदगी के हर पहलू को दिखाती है. यह फिल्म ऐक ऐसी दुनिया के करीब लाती है जिसके बारे में शायद आपने कभी सोचा भी न हो. इस फिल्म में सेक्स वर्कर्स की जिंदगी के हर एक एंगल और परस्पेक्टिव को दिखाया गया है. फिल्म में दिखाया गया है कि औरतों का ये ‘धंधा’ औरतें ही चलाती हैं. फिल्म की कहानी की बात करें तो फिल्म लक्ष्मी माल्वनकर से शुरू होती है जो 20 सालों से इस धंधे में है. इस धंधे में महिलाओं को लेकर आना उसका ही काम है. 

 देव डी

अनुराग कश्यप के डायरेक्शन में बनी यह फिल्मबंगाली नोवल देवदास का मॉर्डन वर्जन है.  इस फिल्म में बताया गया है कि कई बार महिलाएं यह पेशा अपनी मर्जी से भी चुनती हैं.  यह फिल्म महिलाओं के पसंद के बारे में एक नजरिया दिखाया गया है.  इस फिल्म में सेक्स वर्कर की भूमिका में कल्कि कोचलीन हैं. 


मंडी

साल 1983 में आई श्याम बेनेगल की फिल्म मंडी बॉलीवुड सिनेमा की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक है यह फिल्म अपने समय से काफी आगे थी. इस फिल्म में समाज के एक तबके की हकीकत को बखूबी बयां किया गया है. हालांकि, इस फिल्म में सेक्स वर्कर्स के पेशे को छोड़ उनके जीवन को दिखाया गया है.  जैसा कि हमेशा होता है पेशा हमारी जीवन के एक हिस्से को परिभाषित करता है. नसीरुद्दीन शाह से लेकर स्मिता पाटिल तक हर एक अभिनेता ने अपना रोल बखूबी निभाया है. 

बेगम जान

बेगम जान यानी विद्या बालन  शकरगढ़ और दोरांगला जगह के एक वेश्यालय की मालकिन होती है. बेगम जान के वेश्यालय में कई सेक्स वर्कर्स होती हैं, जिन्हें खुदलबेगनजान ने पाला-पोसा  है.  मोटे तौर पर ये वो लड़कियां होती हैं जिन्हें उनके परिवार ने छोड़ दिया है और बेगम जान ही उनका सहारा है. 

चमेली

फिल्म चमेली में करीना कपूर लीड रोल में हैं. इस फिल्म में वेश्यावृति और अंडरवर्ल्ड  का तानाबाना है.  फिल्म में ये भी दिखाया गया है कि कैसे एक सेक्स वर्कर डिप्रेशन से जूझ रहे आदमी की मदद करती है.