के एल सहगल का जन्म 11 अप्रैल, 1904 को जम्मू में कुंदनलाल सहगल के रूप में हुआ था. वह भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के पहले सुपरस्टार थे. वह उस युग के थे जब इंडियन फिल्म इंडस्ट्री कोलकाता में स्थित थी. उन्होंने संगीत प्रेमियों को 'जब दिल ही टूट गया', 'बंगला बने न्यारा', 'हम अपना उन्हें बना ना सके', 'दो नैना मतवाले तिहारे', 'मैं क्या जानूं क्या जादू', 'बाबुल मोरा','जैस कई धुनें दीं. सहगल साहब की मां नन्हें कुंदन लाल को धार्मिक कार्यक्रमों में ले जाती थी जहां वो हिन्दुस्तानी क्लासिकल संगीत की धुन पर भजन, कीर्तन गाते थे. उनके पिता को ये बात मंजूर नहीं थी लेकिन सहगल साहब को संगीत से अलग करना उनके बस की बात नहीं थी. कुछ लेखों की मानें तो सहगल साहब राम लीला में 'सीता' का किरदार भी निभाते थे.
अपने एक दशक से अधिक लंबे करियर में, सहगल ने 36 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें से 28 हिंदी में, सात बंगाली में और एक तमिल में थीं. उन्होंने ग़ज़ल, फिल्मी और गैर-फिल्मी, हिंदी, उर्दू सहित बंगाली, पंजाबी, तमिल और फारसी में लगभग 185 गाने गाए. लेकिन अपनी इस म्यूजिकल जर्नी शुरू करने से पहले जाने-माने गायक भारतीय रेलवे में काम करते थे. उन्होंने एक सेल्समैन के रूप में भी काम किया. उनके पिता अमरचंद सहगल जम्मू-कश्मीर के राजा के दरबार में कार्यरत थे और माता केसरबाई सहगल एक धार्मिक महिला थीं जिन्हें संगीत का शौक था. 1930 के दशक में सहगल का परिचय संगीतकार रायचंद बोराल से हुआ, जिन्होंने युवा गायक की प्रतिभा को पहचाना और उनके मार्गदर्शन में सहगल को ग़ज़ल गायन में पॉपुलैरिटी मिली. उनकी आवाज ने "प्रेमनगर में बसाऊंगा घर में" और "नुक्ताचीन है ग़मे दिल" जैसे रूह कंपा देने वाली ग़ज़लों में खोए हुए प्यार को अभिव्यक्ति दी.
वह आर.सी. बोराल ही थे, जिन्होंने उन्हें बी.एन. सरकार के फिल्म स्टूडियो न्यू थिएटर्स के साथ एक कॉन्ट्रेक्ट पर हस्ताक्षर कराया, जहां उन्हें उनकी फिल्मों में काम करने के लिए प्रति माह 200 रुपये का भुगतान किया जाता था. सहगल की पहली फिल्म एक उर्दू फिल्म थी जिसका नाम था मोहब्बत के आंसू (1932). इसके बाद, उन्होंने सुबह के सितारे, जिंदा लाश, चंडीदास, देवदास और अन्य जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया. शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित देवदास (1935) अभिनेता-गायक की पहली सुपरहिट फिल्म थी. इसने उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग में एक प्रतिभाशाली अभिनेता के रूप में स्थापित किया.
एक समय बोलना भी छोड़ दिया था
लेकिन एक ऐसा दौर भी आया जब उन्होंने गाना तो दूर बोलना भी छोड़ दिया था. एक न्यू वेबसाइट में छपे लेख के अनुसार, 13 साल की उम्र में कुंदन लाल को लगा कि उनकी आवाज फट रही है. इस उम्र में लड़कों की आवाज़ में बदलाव आता ही है लेकिन वो इसे समझ नहीं पाए और उन्होंने गाने से दूरी बना ली. यही नहीं उन्होंने बात करना भी छोड़ दिया. जब कई महीने बीत गए तब घरवालों को चिंता होने लगी. परिवार ने काफी समझाया लेकिन कुंदन लाल नहीं माने. किसी ने उन्हें फक़ीर बाबा के पास जाने की सलाह दी. बाबा समस्या समझ गए और उन्होंने कुंदन लाल को रियाज करते रहने की सलाह दी. तब जाकर उन्होंने फिर से गाना शुरू किया.
गाने पर रॉयल्टी लेने वाले पहले गायक
के एल सहगल भारत के पहले गायक थे जिन्होंने अपने गानों पर रॉयल्टी लेना शुरू किया. सहगल साहब ने हिंदी, पंजाबी, बांग्ला, तमिल और यहां तक की फारसी में भी गाने गाए हैं. फ़ारसी गज़ल 'मा रा बा ग़म्ज़ा कुश्त' को भी सहगल साहब ने गाया था. इस गज़ल को इकबाल बानो, फरीद अयाज़ ने भी अपनी आवाज दी.
शराब पिए बिना गाते नहीं थे
फिल्मों का केन्द्र कोलकाता से मुंबई शिफ्ट हो रहा था. साल 1941 में सहगल साहब भी रंजीत मूवीटोन के साथ काम करने के लिए मुंबई आ गए. कॉन्ट्रेक्ट के मुताबिक उन्हें हर फिल्म के लिए 1 लाख रुपये मिलने थे. रॉयल्टी लेने वाला पहले सिंगर सहगल साहब के जीवन में एक दौर ऐसा भी आया जब वो बिना शराब पिए गाना नहीं गाते थे. सहगल साहब ने संगीत की कोई
ट्रेनिंग नहीं ली थी लेकिन उनके सभी गाने लोगों के दिलों तक पहुंचे.
लता मंगेशकर करना चाहती थीं शादी
लता मंगेश्कर के एल सहगल की बहुत बड़ी फैन थीं और उनकी हर एल्बम खरीदती थीं. लता जी जब भी रेडियो पर उनकी आवाज सुनती थीं तो घर का सब काम छोड़कर उन्हें सुनने बैठ जाती थीं. लता जी कभी के एल सहगल से नहीं मिलीं लेकिन फ़िल्मी दुनिया का एक तबका ये मानता था कि लता जी को सहगल साहब इतने पसंद थे कि वो उनसे शादी करना चाहती थीं. एक किताब (Kundan: Saigal’s Life & Music)में ये बात कही गई है कि एक सूफी संत सलमान यूसुफ ने कुंदन को आशीर्वाद दिया था और केसर कौर को भविष्यवाणी की थी कि उनका बेटा एक "महान गायक" बनेगा. सहगल ने अपनी कला में इतनी महारत हासिल कर ली कि बाद में किशोर कुमार, मुकेश और मोहम्मद रफ़ी जैसे गायकों ने उनसे प्रेरणा ली. किताब में कहा गया है कि यहां तक कि उस्ताद फैयाज खान भी सहगल के राग दरबारी में ख्याल गायन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनसे कहा, “बेटा, मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं जिसे सीख कर तुम और बड़ा गायक बन सको.”इससे अधिक और कुछ नहीं है जिसे आप एक महान गायक बनने के लिए आत्मसात कर सकें.