गुरु दत्त के लिए सिनेमा व्यवसाय न होकर पैशन था. जिसके लिए वे किसी भी सीमा को पार कर जाते थे. भारतीय सिनेमा में गुरु दत्त ऐसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जिन्होंने फिल्म निर्माण, डायरेक्शन, कोरियोग्राफी और एक्टिंग में अपना लोहा मनवाया. गुरु दत्त का जन्म आज ही के दिन 9 जुलाई 1925 को बेंगलुरु में हुआ था. उनका असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था.
बचपन बेहद गरीबी में गुजरी थी
गुरु दत्त का बचपन बेहद गरीबी में बीती थी. बड़ी मुश्किल से पढ़ाई हो सकी. उन्होंने कोलकाता में टेलीकॉम ऑपरेटर की नौकरी की और बाद में वह लौटकर अपने माता-पिता के पास मुंबई आ गए थे.
5 साल तक सीखा डांस
संगीत और कला में रुचि होने के चलते गुरु दत्त ने अपनी प्रतिभा से स्कॉलरशिप हासिल की और उदय शंकर इंडिया कल्चर सेंटर में दाखिला ले लिया, जहां से उन्होंने डांस सीखा. 5 साल तक उदय शंकर से डांस सीखने के बाद गुरु दत्त को पुणे के प्रभात स्टूडियो में बतौर कोरियोग्राफर काम करने का मौका मिला. एक दिन उस समय के महान एक्टर देव आनंद से भेंट हो गई और फिर क्या था, वह फिल्म बनाने और एक्टिंग के क्षेत्र में काम करने लगे. देव आनंद ने दत्त को अपनी नई प्रोडक्शन कंपनी, नवकेतन में निदेशक के रूप में नौकरी की पेशकश की.
ऐसे की करियर की शुरुआत
गुरु दत्त ने फिल्म उद्योग में अपने करियर की शुरुआत फिल्म हम एक हैं में कोरियोग्राफर के रूप में काम करके की थी. उन्होंने सामाजिक रूप से जागरूक फिल्मों का निर्माण किया, जिनमें प्यासा (1957), कागज के फूल (1960), और बाजी (1951) शामिल हैं. बाजी नवकेतन में बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म थी. देवानंद की फिल्म 'बाजी' की सक्सेस के बाद गुरु दत्त बतौर निर्देशक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए.
गीता दत्त से कर ली शादी
फिल्म 'बाजी' के गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान गुरु दत्त की गीता दत्त से निगाहें टकराईं. लेकिन दोनों में कोई समानता नहीं थी. गीता शौहरत की बुलंदियों पर थीं तो गुरु दत्त अपनी पहचान तलाश रहे थे. गीता दत्त बिलकुल गुरुदत्त की फिल्मों जैसी थीं डार्क और ब्यूटीफुल. दोनों ने तीन साल के प्रेम के बाद 1953 में शादी कर ली. दोनों के तीन बच्चे हुए. जाने कब गीता-गुरु में दूरियां आ गईं. गुरुदत्त को जानने वालों की मानें तो दोनों में अहम का टकराव था.
जब वहीदा रहमान के प्यार में पड़े
गीता से दूरियां बढ़ने के बाद गुरु दत्त के जीवन में वहीदा रहमान आईं. वहीदा जानती थीं कि गुरु दत्त शादीशुदा हैं. इसलिए इस संबंध को उन्होंने कभी नहीं स्वीकारा. इधर, गुरु दत्त की बेचैनी कम नहीं हुई. वह शराब में डूबे रहने लगे.1959 में गुरुदत्त की आई फिल्म 'कागज के फूल'.फ्लॉप रही. गुरु दत्त को इस फिल्म की असफलता ने तोड़ दिया था. गीता उन्हें छोड़ के जा चुकी थीं. अब गुरु दत्त पूरी तरह टूट चुके थे.
1960 में फिल्म 'चौदहवीं का चांद' आई
1960 में गुरु दत्त और वहीदा रहमान की फिल्म 'चौदहवीं का चांद' आई. व्यवसायिक तौर पर ये एक हिट फिल्म थी. इस फिल्म से गुरुदत्त को फौरी तौर पर खुशी मिली. गुरुदत्त पूरी तरह से वहीदा के इश्क में गिरफ्तार हो गए थे, और शायद इस बेचैनी से भी घिर गए कि आखिर वो चाहते किसे हैं, गीता को या वहीदा को? 1962 में अपनी बेचैनी, कशमकश में उलझे गुरु दत्त ने फिर ने एक फिल्म वहीदा रहमान को लेकर 'साहिब बीवी और गुलाम' बनाई.
सोए तो कभी नहीं उठे
गीता दत्त बच्चों को लेकर घर से जा चुकी थीं. गुरुदत्त बार-बार आत्महत्या की कोशिश कर रहे थे. उनकी बेचैनी अब और बढ़ चुकी थी. फिर आई वो 10 अक्टूबर 1964 की काली रात जिस रात के काले अंधेरों के आगोश में गुरुदत्त मौत की नींद सो गए थे. कहा जाता है कि उस रात उन्होंने जमकर शराब पी थी. इसके बाद गीता से फोन पर नोकझोंक हुई. काफी ज्यादा नींद की गोलियां खाने के बाद उस रात जो गुरुदत्त सोए तो कभी नहीं उठे.
गुरु दत्त के बेटे अरुण ने यही माना कि उनके पिता की मौत दुर्घटनावश शराब और नींद की गोलियों के मिश्रण से हुई है. गुरु दत्त के छोटे भाई और फिल्ममेकर देवी दत्त ने भी हमेशा से इन संभावनाओं को खारिज किया कि उन्होंने आत्महत्या की है. देवी दत्त ने कई बार यह कहा कि उनके भाई को नींद नहीं आने की बीमारी थी. इस कारण वह नींद की दवाइयां लेते थे. इसलिए निश्चित तौर पर उनकी मौत दुर्घटनावश शराब और दवाइयों के ओवरडोज से ही हुई होगी.