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#Filmy Friday: 127 साल पहले 1 रुपये के टिकट पर भारत में शुरू हुआ था सिनेमा का सफर...कैसे बॉलीवुड पड़ा नाम, जानिए

दो फ्रेंच भाइयों ने भारतीय सिनेमा को जन्म दिया था. ऑगस्ते लूमियर और लुई लूमियर ने जो सिलसिला शुरू किया, उसे अभी बहुत दूर तक जाना है. 7 जुलाई को 6 फिल्में दिखाने के बाद दोनों भाइयों ने ठीक एक हफ्ते बाद 14 जुलाई को बॉम्बे के ही नॉवेल्टी थिएटर में फिल्मों की दूसरी स्क्रिनिंग रखी और 24 फिल्में दिखाई.

 Birth of Indian CInema in India Birth of Indian CInema in India

बात आज से 127 साल पहले की है. 7 जुलाई 1896 को मुंबई के वॉटसन होटल में 6 फिल्में दिखाई गईं. यहां आने के लिए टिकट की कीमत एक रुपये रखी गई. एक अखबार ने इस घटना को ऐसे पेश किया जैसे वो किसी सदी का चमत्कार हो. इस घटना को भारतीय सिनेमा का जन्म माना जाता है. भारत में, पहली मोशन पिक्चर 1896 में वॉटसन होटल, बॉम्बे में लुमियर ब्रदर्स (Louis Lumiere और Auguste Lumiere) द्वारा पेश की गई थी. उन्हें इतिहास के सबसे शुरुआती फिल्म निर्माताओं के रूप में जाना जाता है. 

भारत में कैसे आया सिनेमा
वह 7 जुलाई, 1896 का दिन था, जब लुमियर ब्रदर्स ने बॉम्बे (अब मुंबई के नाम से जाना जाता है) के वॉटसन होटल में छह फिल्मों की स्क्रीनिंग की व्यवस्था की और भारत में सिनेमा का जन्म हुआ. दरअसल, फ्रांस में जन्मे लुमियर ब्रदर्स (Lumiere brothers) ने कई सारी मोशन पिक्चर बनाई थीं, जिन्हें वे पूरी दुनिया में दिखाना चाहते थे. इसकी शुरुआत उन्होंने ऑस्ट्रेलिया से करने की ठानी थी और इसी के लिए अपने एजेंट मॉरिस सेस्टियर को ऑस्ट्रेलिया रवाना किया था.

भारत के मुंबई शहर (तब, बंबई) पहुंचने पर एजेंट मॉरिस को पता चला कि ऑस्ट्रेलिया जाने वाले हवाई जहाज में कुछ खराबी आ जाने की वजह से वह अब उड़ान नहीं भर पाएगा. ऐसे में उन्होंने सोचा कि क्यों न ये फिल्में भारत में ही प्रदर्शित कर दी जाएं. इसके लिए उन्होंने लुमियर ब्रदर्स से बात की और उन्हें भी यह बात समझ आ गई. 14 जुलाई को उन्होंने बॉम्बे के नॉवेल्टी थिएटर में फिल्मों की दूसरी स्क्रीनिंग रखी, जिसमें कुल 24 फिल्में दिखाई गईं.

नाम दिया गया सिनेमा का अजूबा
इस स्क्रीनिंग के पहले दिन तकरीबन 200 लोगों ने वहां सिनेमा का आनंद लिया था. वहां 7 से 13 जुलाई तक फिल्मों को चलाया गया था और दर्शक सिनेमा नाम के उस चमत्कार को देख उत्साहित हो गए थे. इसके बाद इन फिल्मों को मुंबई के नॉवेलटी थिएटर में भी दिखाया गया था. इस दिन को सिनेमा की दुनिया का अजूबा कह कर प्रचारित किया गया था. 6 जुलाई 1896 को मॉरिस एक नामी अखबार के दफ्तर गए और 20वीं सदी के इस 'चमत्कार' का विज्ञापन दिया था. उस विज्ञापन में सिनेमा को दुनिया का अजूबा कहा गया था. विज्ञापन देखकर ही मुंबई के कोने-कोने से लोगों का हुजूम वॉटसन होटल तक पहुंच गया था. यहीं से भारतीय सिनेमा का जन्म हुआ.

पहली फिल्म एक डॉक्यूमेंट्री थी
इस तरह मोशन पिक्चर्स की शुरुआत भारत से हुई जोकि खासकर कलकत्ता और मद्रास से थी. इसके करीब एक साल बाद हीरालाल सेन नाम के एक फोटोग्राफर ने कलकत्ता के स्टार थिएटर में एक शो के अलग-अलग फोटो खींचकर एक फिल्म बनाई जिसे ‘फ्लॉवर ऑफ पर्शिया’ नाम दिया गया. किसी भारतीय द्वारा शूट की गई पहली फिल्म का नाम द रेसलर्स था, जिसे 1899 में एच.एस. भटावडेकर ने बनाया था. जिसमें मुंबई के हैंगिंग ग्रेडेंस में एक कुश्ती मैच को दर्शाया गया था. यह भारत की पहली डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी थी.

एक तरफ जहां इन फिल्मों को लेकर इतनी चर्चा थी. वहीं इसपर विज्ञापन भी छापे जा रहे थे. दादा साहेब फाल्के भी इस पूरी घटना से वाकिफ थे. 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखकर उन्होंने तय किया कि वह भी पौराणिक कथाओं पर फिल्म बनाएंगे. भारत में रिलीज़ होने वाली पहली फ़िल्म श्री पुंडलिक थी, जो 18 मई 1912 को दादा साहब तोरणे ने बनाई थी. ये एक मूक मराठी फिल्म थी. भारत की पहली पूरी लंबी फिल्म दादा साहब फाल्के (जिन्हें भारतीय सिनेमा के पिता के रूप में भी जाना जाता है) ने बनाई थी.

लंदन से आया था कैमरा
दादा साहेब फिल्म बनाने की बारिकी सीखने लंदन चले गए और वहां से न सिर्फ ट्रेनिंग बल्कि फिल्म बनाने के लिए जरूरी सामान भी लेकर आए. भारत आकर उन्होंने रिसर्च का काम शुरू किया और फिल्म बनाने में जुट गए. उन्हें 7 महीने का वक्त लगा और 3 मई 1913 को उन्होंने 'राजा हरिश्चंद्र' के नाम से फीचर फिल्म बना दी. इसके बाद सफर थोड़ा लंबा चला. एक तरफ दादा साहेब फाल्के फिल्मों को आवाज देने की कोशिश कर रहे थे दूसरी तरफ करीब 18 साल बाद फीचर फिल्मों ने बोलना शुरू किया और 14 मार्च 1931 को डायरेक्टर आर्देशिर ईरानी की फिल्म 'आलम आरा' रिलीज हो गई. इसे भारत की पहली फिल्म कहा जाता है. इस फिल्म को लंदन से मंगाए कैमरे से शूट किया गया था. यह एक टैनोर सिस्टम कैमरा था. इंपीरियल स्टूडियो इसे लेकर काफी उत्साहित था. क्योंकि पहले मूक फिल्में बनती थीं इसलिए इस फिल्म में कलाकारों को काफी दिक्कत हुई. ये भारत की पहले बोलने वाली फिल्म थी. लोगों को माइक पर बोलना सिखाया गया और ज़बान साफ करने के तरीके बताए गए.

बॉलीवुड नाम कब पड़ा
1976 में मुंबई से एक मैग्जीन प्रकाशित होती थी जिसका नाम था सिनेब्लिट्ज था. इसमें बेविंडा कोलैको ने सबसे पहले बॉम्बे के लिए 'बॉलीवुड' शब्द का इस्तेमाल किया. इसके पीछे उनकी प्रेरणा बंगाली फिल्म इंडस्ट्री को टॉलीवुड कहे जाने से मिली थी. कहा जाता है कि कोलकाता के 'टॉलीगंज' को फिल्मों का केंद्र कहा जाता था तो बंगाली फिल्म इंडस्ट्री का टॉलीवुड नाम पड़ा था.