बात अगर फिल्मों के प्रोडक्शन की हो तो आपको यह जानकर अच्छा लगेगा कि दुनिया में सबसे ज्यादा फ़िल्में इंडियन फिल्म इंडस्ट्री बनाती है. इसलिए फिल्मों के प्रोडक्शन के मामले में यह नंबर वन है. आज भारतीय सिनेमा का विस्तार बहुत ज्यादा है और जितनी यह इंडस्ट्री बड़ी है उतना ही विशाल है इसका इतिहास.
दादा साहेब फाल्के की ‘राजा हरिश्चंद्र’ फिल्म को भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म होने का ख़िताब प्राप्त है. क्योंकि इस फिल्म को दादा साहेब ने भारतीय कलाकारों के साथ मिलकर बनाया था. हालांकि, यह फिल्म बहुत सी चुनौतियों के बाद बनी.
बताया जाता है कि इस फिल्म में रानी तारामती का किरदार निभाने के लिए उन्हें कोई हीरोइन नहीं मिली थी. क्योंकि रंगमंच महिला कलाकारों से लेकर तवायफों तक ने कैमरे के सामने काम करने से मना कर दिया था. ऐसे में उन्होंने एक पुरुष कलाकार से रानी तारामती का किरदार कराया था.
लेकिन धीरे-धीरे उस जमाने में भी कुछ ऐसी साहसी महिलाएं आगे आई जिनकी सोच ने भारतीय सिनेमा का रुख बदल दिया. आज गुड न्यूज़ टुडे के साथ जानिए उन महिलाओं के बारे में जो अपने जमाने से आगे की सोच रखती थीं.
भारतीय सिनेमा की पहली एक्ट्रेस: दुर्गाबाई कामत
दुर्गाबाई कामत भारतीय सिनेमा की पहली महिला एक्टर थीं. उन्होंने दादा साहेब फाल्के की दूसरी फिल्म ‘मोहिनी भस्मासुर’ में मुख्य भूमिका निभाई. इस फिल्म के बाद उन्होंने कभी पलटकर नहीं देखा. हालांकि, उस जमाने में उनका बड़े परदे के लिए अभिनय करना आसान काम नहीं था.
लेकिन उन्होने दकियानूसी सोच से ऊपर उठकर खुद और भारतीय सिनेमा को एक अलग पहचान दी. दिलचस्प बात यह है कि उनकी बेटी कमलाबाई गोखले उसी फिल्म में काम करने वाली पहली फीमेल चाइल्ड एक्ट्रेस थीं.
भारतीय सिनेमा की पहली महिला डायरेक्टर: फातिमा बेगम
फातिमा बेगम भारतीय सिनेमा की पहली महिला डायरेक्टर थीं. पहले वह एक स्टेज एक्टर थीं. लेकिन बाद में उन्होंने कई नाटकों में एक्टिंग और निर्देशन, दोनों काम किए. साल 1926 में उन्होंने 'बुलबुल-ए-परिस्तान' की पटकथा लिखी और बाद में इस फिल्म का निर्देशन करके वह भारतीय सिनेमा की पहली महिला निर्देशक बन गईं.
इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने गॉडेस ऑफ लव (1927), चंद्रावली (1928), हीर रांझा (1928) और शकुंतला (1929) जैसी कई फिल्मों का निर्देशन किया. उन्होंने एक और स्टीरियोटाइप को तोड़ते हुए अपना खुद का प्रोडक्शन 'फातमा फिल्म्स' भी शुरू किया.
भारतीय सिनेमा की पहली महिला म्यूजिक डायरेक्टर: जद्दन बाई
इलाहाबाद में जन्मी जद्दन बाई एक तवायफ दलीपाबाई की बेटी थीं. उन्हें ठुमरी वादक मौज्जुद्दीन खान सहित प्रसिद्ध गायकों ने शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित किया था. बतौर एक्टर इंडस्ट्री में शुरुआत करने के बाद, वह भारत की पहली महिला संगीत निर्देशक बनीं.
उन्होंने तलाश-ए-हक (1935) और मैडम फैशन (1936) के लिए म्यूजिक कंपोज़ किया. दिलचस्प बात यह है वह भारतीय सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री नरगिस की मां भी हैं.
भारतीय सिनेमा की पहली महिला सिनेमाटोग्राफर: विजया लक्ष्मी
बी. आर विजयलक्ष्मी न केवल भारत की बल्कि एशिया की पहली महिला थीं जिन्होंने किसी फिल्म में कैमरा और लाइट क्रू को संभाला था. उनका जन्म दक्षिण भारतीय फिल्मों के निर्देशक और निर्माता बी. आर पंथुलु के घर में हुआ था.
जिस जमाने में फिल्म प्रॉडक्शन में तकनीकी काम सिर्फ पुरुष संभालते थे, तब साल 1980 में उन्होंने बतौर ‘डायरेक्टर ऑफ़ फोटोग्राफी’ काम किया. उन्होंने 1980 की तमिल फिल्म 'नेन्जाथाई किलाथे' में सिनेमाटोग्राफर अशोक कुमार की असिस्टेंट के रूप में काम किया.
तब से लेकर अब तक उन्होंने 22 फिल्मों की शूटिंग की है और 2018 में उन्होंने 'अभियुद कथा अनुविंतेयम' के साथ बतौर डायरेक्टर डेब्यू किया.
भारतीय सिनेमा की पहली स्टंट वुमन: फीयरलेस नाडिया
मेरी इवांस वाडिया उर्फ फीयरलेस नाडिया भारतीय सिनेमा की पहली स्टंट वुमन थीं. ऑस्ट्रेलिया में जन्मी नाडिया अपने पिता के साथ 1913 में मुंबई आईं. उनका नाम 1935 में आई फिल्म ‘हंटरवाली’ के बाद फीयरलेस नाडिया पड़ गया.
जिस जमाने में स्क्रीन पर महिलाओं का आना शर्म की बात समझा जाता था. उस समय नाडिया बड़े परदे पर स्टंट करती नजर आती थीं. अपने सभी स्टंट वह खुद करती थीं और इसलिए उन्हें भारतीय सिनेमा की पली स्टंट वुमन कहा जाता है.
भारतीय सिनेमा की पहली महिला कॉमेडियन: उमादेवी खत्री अका टुनटुन
प्यार से टुन टुन के नाम से जानी जाने वाली उमादेवी खत्री हिंदी सिनेमा की पहली महिला कॉमेडियन थीं. और बाद में वह एक प्लेबैक सिंगर भी बन गईं. उन्होंने जॉनी वॉकर, भगवान दादा और धूमल जैसे प्रसिद्ध हास्य कलाकारों के साथ 190 से अधिक फिल्मों में काम किया.
जिस जमाने में औरतों का अपने घर में खुलकर हंसना भी शर्म की बात मानी जाती थी. उस जमाने में उमादेवी खत्री ने कॉमेडी शैली पर भरोसा किया और बड़े परदे पर अभिनय कर लोगों को भी हंसाया.
आज भारतीय सिनेमा में जितनी भी महिलाएं अलग-अलग सेक्टर में काम कर रहीं हैं, वे सभी कहीं न कहीं इन साहसी महिलाओं की कर्जदार हैं. यह इन महिलाओं का हौसला था जिन्होंने देश-दुनिया में दूसरी महिलाओं के लिए भारतीय सिनेमा के दरवाजे खोल दिए.