एक बार की बात है, राजस्थान के जयपुर के आमेर रोड पर रहने वाले एक बच्चे को फिल्में देखने का बहुत शौक था. वो बच्चा अक्सर ही स्कूल जाता और वहां से जल्दी छुट्टी लेकर फिल्में देखने निकल जाता. फिल्मों को लेकर जुनून ऐसा की जेब खर्च के लिए घर से जितना भी पैसा मिलता तो वो बचा कर फिल्में देखने निकल जाता. दरअसल इस बच्चे को दिलीप साहब और नसीरुद्दीन शाह काफी ज्यादा पसंद थे.फिल्में देखते-देखते इस बच्चे पर एक्टिंग का भूत ऐसा चढ़ा कि फिल्मी दुनिया में इतना नाम कमाया जो कभी किसी ने भी नहीं सोचा था. ऊपर लगी तस्वीर देख कर आप समझ तो गए ही होंगे की हम बात किसकी कर रहे हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं इरफान खान की.
इरफान खान का जन्म 7 जनवरी 1967 को जयपुर के एक मामूली से परिवार में हुआ था, और साल 2020 में 29 अप्रैल को कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांसें ली. लेकिन इरफान की कहानी बस इतनी सी नहीं है. इरफान वो शख्सियत हैं, जिसने जिंदगी में बहुत ऊंची उड़ानें भरी हैं, लेकिन ताउम्र जमीन से जुड़े हुए रहे.
इरफान को कोई हुनर सीखाना चाहते थे पिता
इरफान की मां हमेशा से चाहती थीं कि उनका बेटा पढ़-लिख कर एक इज्जतदार नौकरी कर ले, और पिता चाहते थे कि उनका लाडला कोई हुनर सीख ले. लेकिन इरफान के ख्वाब हमेशा से बड़े और कुछ अलग थे. ख्वाब इतने बड़े कि उसको समेटने के लिए पूरा राजस्थान भी छोटा पड़ जाए.
पहली बार में निकाला NSD का एंट्रेंस
बचपन से इरफान को पढ़ने-लिखने का कोई खास शौक नहीं था, लेकिन एक्टिंग ने मानो उनको अपनी ओर खुद ही खींच लिया हो. नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, जहां बड़े-बड़े अभिनेता तीन-तीन बार में एंट्रेंस पास नहीं कर पाते हैं, वहीं इरफान ने एक बार में एंट्रेंस पास कर लिया था. फिल्म ओम शांति ओम का बड़ा मशहूर डायलॉग है कि अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में जुट जाती है. इरफान के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.
एक वक्त था जब इरफान को नहीं भा रही थी एक्टिंग...
"इक बार तो यूं होगा, थोड़ा सा सुकून होगा, ना दिल में कसक होगी, ना सिर में जुनून होगा." इरफान की फिल्म सात खून माफ का ये डायलॉग उनके जीवन पर उस वक्त सटीक था. जब उन्हें एक्टिंग में मजा नहीं आ रहा था. बात 1984 की है, जिस वक्त इरफान खान बतौर अभिनेता सबको पसंद आ रहे थे, लेकिन वो दौर ऐसा था जब अभिनय उन्हें इतना पसंद नहीं आ रहा था. खासतौर पर टेलीविजन पर. हालांकि मीरा नायर की फिल्म 'सलाम बॉम्बे' में इरफान ने एक छोटा सा किरदार निभाया था, वो फिल्म बड़ी मकबूल हुई थी. वहीं चंद्रकांता जैसे सीरियल में भी इरफान नजर आए थे. फिर भी इरफान को वो मजा नहीं आ रहा था, जिसके लिए उन्होंने अभिनय को चुना था. लेकिन तब किसी ने कहां ही सोचा था, कि ये अभिनेता एक दिन देश का ही नहीं विदेशों का भी स्टार बनके दिखाएगा.
तिग्मांशु धूलिया- आशा कि किरण
उसके बाद इरफान के दोस्त तिग्मांशु धूलिया उनकी जिंदगी में एक आशा की किरण बनकर आए. उन्होंने बनाई फिल्म हांसिल, जिसमे इरफान की जिंदगी बदल कर रख दी. ये रातोंरात स्टार बन गए टेलीविजन का प्रेशर भी उनके ऊपर से हट गया, वो अभिनय की बोरियत भी दब गई, और इरफान खान एक सुपरस्टार बनकर उभर आए. उसके बाद मानों फिल्मों का तांता लग गया. 'मकबूल', 'लाइफ इन आ मेट्रो' फिर जुरासिक पार्क सीरीज और फिर जुरासिक वर्ल्ड में भी नजर आए. इन्फर्नो, स्लमडॉग मिलेनियर, द नेमसेक हर तरह के जॉनर में इरफान खान छा गए थे.
हर चीज से पहले होमवर्क करते थे इरफान
इरफान ने 1995 अपने साथ ही पढ़ने वाली लड़की सुतापा सिकदर से शादी कर ली थी. शादी से इरफान को दो बेटे हुए बाबिल और आयन. उनकी पत्नी अक्सर इंटरव्यू में बताती हैं कि इरफान को हमेशा से किताबें पढ़ने का बहुत शौक था. NSD के दिनों से ही जब सभी लोग मौज मस्ती करते थे, तब इरफान अपना ज्यादा से ज्यादा समय तरह तरह की किताबें पढ़ने में लगाते थे. इरफान कुछ भी करने से पहले अपना होमवर्क करके ही निकलते हैं. फिल्म हो या टीवी इरफान हर जगह पहले होमवर्क करते हैं, ताकि वो अपना बेस्ट दे सकें.
यकीनन इरफान खान एक गजब के अभिनेता थे, लेकिन एक अजब बीमारी ने इन्हें घेर लिया, जिसने फिल्म इंडस्ट्री को हिला कर रख दिया. वो अभिनेता जिसमें एक अलग जादू है. इरफान खान जैसा अभिनेता ना था, ना आगे कभी होगा. आज इरफान अगर जिंदा होते तो अपना 55वां जन्मदिन मनाते. जिंदा होते कहना शायद गलत होगा, क्योंकि इरफान हम सबके के दिलों में जिंदा थे, जिंदा हैं, और हमेशा रहेंगे.