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गंगूबाई फिल्म का मुकदमा सुनते हुए भावुक हुईं जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सुनाई एक लड़की की सच्ची कहानी

जस्टिस बनर्जी ने बताया कि उसके साथ हुई घटना सोचकर आज भी मेरी रूह कांप जाती है. एक रात में भोगे नरक की वजह से वो लड़की HIV पॉजिटिव हो गई. मैं जब उससे मिली तो उसने इस तरह मेरा हाथ पकड़ा और पूछा कि आखिर मैंने क्या किया है? मेरा कसूर क्या है? ये वाक्य बोलते-बोलते जस्टिस बनर्जी काफी भावुक हो गईं.

गंगूबाई फिल्म का मुकदमा सुनते हुआ भावुक हुईं जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सुनाई एक लडकी की सच्ची कहानी गंगूबाई फिल्म का मुकदमा सुनते हुआ भावुक हुईं जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सुनाई एक लडकी की सच्ची कहानी
हाइलाइट्स
  • जब दुश्चक्र में फंस गई 14 साल की मासूम...

  • सेक्स वर्कर की गरिमामयी कहानी है गंगूबाई

आलिया भट्ट की फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी रिलीज से पहले ही विवादों में घिर चुकी है. फिलहाल इस फिल्म की रील स्टोरी पर उठे कानूनी विवाद की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने इस मुकदमे की सुनवाई के वक्त एक रियल स्टोरी सुनाई, जिससे कोर्ट रूम में मौजूद सभी लोग भावुक हो उठे. जस्टिस बनर्जी ने एक मासूम और मजबूर लड़की को व्यापार में धकेलने की दास्तान सुनाई. शुक्रवार को रिलीज के लिए तैयार फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी पर रोक लगाने की अपील वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने 14 साल की एक लड़की की आपबीती सुनाई जो उस लड़की ने उनसे खुद साझा की थी.

जब दुश्चक्र में फंस गई 14 साल की मासूम...
कहानी सुनाते हुए वो खुद भी काफी भावुक हो गईं. जस्टिस बनर्जी ने बताया कि वो कई सालों तक लीगल एड सोसाइटी का हिस्सा रही हैं. कलकत्ता हाई कोर्ट की जज रहते समय वो लीगल सर्विसेज अथॉरिटी की चेयरपर्सन भी रहीं. जस्टिस बनर्जी ने अदालत में बताया कि वर्षों पहले की बात है. एक बार मुझे देह व्यापार में झोंकी गई महिला के बारे में पता चला. आज भी जब मैं उसके बारे में सोचती हूं तो परेशान हो जाती हूं. वो 14 साल की लड़की थी. परिवार में कोई नहीं था. उसे दो वक्त का भोजन भी नहीं मिल रहा था. उसके पड़ोस में रहने वाली महिला जिसे लोग मासी कहते थे. वहीं उसकी देखभाल करती थी.

एक दिन उस चाची ने उससे कहा कि तुम बॉम्बे आ जाओ. यहां तुम्हें नौकरी खाना सब कुछ मिलेगा. गरीबी से मुक्ति और काम की युक्ति सोचकर वो मुंबई जाने के लिए तैयार हो गई. वह वहां गई तो दुश्चक्र में फंस गई. चाची के जाल में फंसने के बाद कई लोगों ने उसके साथ दुष्कर्म किया. रोज उसे कई लोगों को संतुष्ट करना होता था. एक रात तो कई लोगों ने युवा लड़की के साथ असुरक्षित रेप किया. वो काफी रोई चिल्लाई. आखिरकार एक रात आए एक आदमी को उसकी दीन दशा पर दया आ गई. उसने उस मजबूर दुखियारी लड़की को वहां से छुड़ाकर एक NGO को सौंप दिया. उस एनजीओ की पहल पर बाद में मीडिया ने उसके मामले को जोरशोर से उठाया.

संजीदा हो गया कोर्ट रूम
जस्टिस बनर्जी ने बताया कि उसके साथ हुई घटना सोचकर आज भी मेरी रूह कांप जाती है. एक रात में भोगे नरक की वजह से वो लड़की HIV पॉजिटिव हो गई. मैं जब उससे मिली तो उसने इस तरह मेरा हाथ पकड़ा और पूछा कि आखिर मैंने क्या किया है? मेरा कसूर क्या है? ये वाक्य बोलते-बोलते जस्टिस बनर्जी काफी भावुक हो गईं. कोर्ट रूम का माहौल भी संजीदा हो गया. 

सेक्स वर्कर की गरिमामयी कहानी है ये फिल्म
शांति तब टूटी जब भंसाली प्रोडक्शन की ओर से दलील दे रहे सीनियर एडवोकेट अर्यमा सुंदरम ने कहा कि ये मामला उस तरह का नहीं है. यहां तो उस पीड़ित महिला की हिम्मत की प्रशंसा हो रही है. यह फिल्म उन्हें बदनाम नहीं करती है बल्कि उनके साहस और आत्मविश्वास के लिए उन्हें महिमामंडित करती है. यह तो एक सेक्स वर्कर की गरिमामयी कहानी है जो राजनीतिक रूप से प्रमुखता से बढ़ी है. लेकिन खामख्वाह इस फिल्म पर सवाल उठा कर इसे विवादों में घसीटा जा रहा है. वो भी ऐसे दावेदार के द्वारा जो इस फिल्म की नायिका के असल व्यक्तित्व यानी असली गंगूबाई काठियावाड़ी का दत्तक पुत्र होने का दावा तो करता है. पर उसके पास इसका कोई सबूत नहीं है. अदालत ने फिर इसी दलील पर याचिका खारिज भी कर दी थी.