स्वर कोकिला लता मंगेशकर का जन्म आज ही के दिन 28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था. उन्होंने अपनी गायकी से देश के साथ-साथ दुनिया में भी लोगों का दिल जीता है. लता मंगेशकर को गायिकी क्षेत्र में अमूल्य योगदान देने के लिए भारत रत्न, पद्म विभुषण, पद्म भूषण और दादासाहेब फाल्के अवार्ड जैसे कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है. आइए आज स्वर कोकिला के जीवन से जुड़ी कहानियों के बारे में जानते हैं.
1940 में की गाने की शुरुआत
लता मंगेशकर ने गाने की शुरुआत 1940 में की. तब वह महज 11 साल की थीं. 1943 में मराठी फिल्म गजाभाऊ में उन्होंने हिंदी गाना माता एक सपूत की दुनिया बदल दे को आवाज दी. यह उनका पहला गाना है. लता जी सरल-निर्मल हैं, सम्मानित इतनीं कि सब उन्हें दीदी कहकर पुकारते थे.
पिता की वजह से बनीं सिंगर
लता मानती थीं कि पिता की वजह से ही वे सिंगर बनीं, क्योंकि संगीत उन्होंने ही सिखाया. लता के पिता दीनानाथ मंगेशकर मशहूर संगीतकार थे. दीनानाथ को लंबे समय तक मालूम ही नहीं था कि बेटी गा भी सकती है. लता को उनके सामने गाने में डर लगता था. वो रसोई में मां के काम में हाथ बंटाने आई महिलाओं को कुछ गाकर सुनाया करती थीं. मां डांटकर भगा दिया करती थीं कि लता के कारण उन महिलाओं का वक्त जाया होता था, ध्यान बंटता था.
छोटी सी उम्र में सिखाया था सही सुर
एक बार लता के पिता के शिष्य चंद्रकांत गोखले रियाज कर रहे थे. दीनानाथ किसी काम से बाहर निकल गए. पांच साल की लता वहीं खेल रही थीं. पिता के जाते ही लता अंदर गईं और गोखले से कहने लगीं कि वो गलत गा रहे हैं. इसके बाद लता ने गोखले को सही तरीके से गाकर सुनाया. पिता जब लौटे तो उन्होंने लता से फिर गाने को कहा. लता ने गाया और वहां से भाग गईं. लता मानती हैं 'पिता का गायन सुन-सुनकर ही मैंने सीखा था, लेकिन मुझमें कभी इतनी हिम्मत नहीं थी कि उनके साथ गा सकूं.
पिता से संगीत सीखना शुरू किया
इसके बाद लता और उनकी बहन मीना ने अपने पिता से संगीत सीखना शुरू किया. छोटे भाई हृदयनाथ केवल चार साल के थे जब पिता की मौत हो गई. उनके पिता ने बेटी को भले ही गायिका बनते नहीं देखा हो, लेकिन लता की सफलता का उन्हें अंदाजा था, अच्छे ज्योतिष जो थे. लता के मुताबिक उनके पिता ने कह दिया था कि वो इतनी सफल होंगी कि कोई उनकी ऊंचाइयों को छू भी नहीं पाएगा.
फिल्मों में एक्टिंग भी कर चुकी हैं लता
पिता की मौत के बाद लता ने ही परिवार की जिम्मेदारी संभाली और अपनी बहन मीना के साथ मुंबई आकर मास्टर विनायक के लिए काम करने लगीं. 13 साल की उम्र में उन्होंने 1942 में 'पहिली मंगलागौर' फिल्म में एक्टिंग की. कुछ फिल्मों में उन्होंने हीरो-हीरोइन की बहन के रोल किए हैं, लेकिन एक्टिंग में उन्हें कभी मजा नहीं आया. पहली बार रिकॉर्डिंग की 'लव इज ब्लाइंड' के लिए, लेकिन यह फिल्म अटक गई.
ऐसे मिला पहला बड़ा ब्रेक
संगीतकार गुलाम हैदर ने 18 साल की लता को गाते हुए सुना तो उस जमाने के सफल फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी से मिलवाया. शशधर ने साफ कह दिया ये आवाज बहुत पतली है, नहीं चलेगी. फिर मास्टर गुलाम हैदर ने ही लता को फिल्म 'मजबूर' के गीत 'अंग्रेजी छोरा चला गया' में गायक मुकेश के साथ गाने का मौका दिया.
यह लता का पहला बड़ा ब्रेक था, इसके बाद उन्हें काम की कभी कमी नहीं हुई. बाद में शशधर ने अपनी गलती मानी और 'अनारकली', 'जिद्दी' जैसी फिल्मों में लता से कई गाने गवाए. मालूम हो कि साल 1974 में भारतीय संगीत के इतिहास में सबसे ज्यादा गाने रिकॉर्ड करने पर लता मंगेशकर का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था.
...तो हुआ था प्यार
लता मंगेशकर ने 36 भारतीय भाषाओं में गाने रिकॉर्ड कराए हैं. लता मंगेशकर ने केवल हिंदी भाषा में 1,000 से ज्यादा गीतों को अपनी आवाज दी है. ये बात तो आप सभी जानते ही होंगे कि लता जी ने शादी नहीं की थी. कहते हैं लता मंगेशकर को भी कभी किसी से प्यार हुआ था लेकिन लता की ये प्रेम कहानी कभी पूरी नहीं हो पाई. शायद इसीलिए लता ने शादी नहीं की.
खबरों की मानें तो लता मंगेशकर को डूंगरपुर राजघराने के महाराजा राज सिंह से लता मंगेशकर बेहद प्यार करती थीं. ये महाराजा लता के भाई ह्रदयनाथ मंगेशकर के दोस्त भी थे. लेकिन ये मोहब्बत मुक्कमल नहीं पो पाई. कहा जाता है कि राज ने अपने माता-पिता से वादा किया था कि वो किसी भी आम घर की लड़की को उनके घराने की बहू नहीं बनाएंगे. राज ने यह वादा मरते दम तक निभाया.
पूरे घर की थी जिम्मेदारी
वहीं लता जी का कहना था कि उनके ऊपर पूरे घर की जिम्मेदारी थी इसीलिए उन्होंने कभी शादी नहीं की. लेकिन लता की तरह राज भी जीवन भर अविवाहित रहे. राज लता को प्यार से मिट्ठू पुकारते थे. उनकी जेब में हमेशा एक टेप रिकॉर्डर रहता था जिसमें लता के चुनिंदा गाने होते थे.
लता की तारीफ में गुलजार ने कहा था ये
1977 में फिल्म 'किनारा' में लता मंगेशकर के लिए एक गाना लिखा गया. आज जब भी लता का नाम आता है उस गाने का जिक्र जरुर होता है- 'मेरी आवाज ही पहचान है'. 'नाम गुम जाएगा' टाइटल का ये गाना लता के लिए गुलजार ने लिखा. गुलजार उनकी गायिकी की तारीफ में कहते हैं, ''लता की आवाज हमारे देश का एक सांस्कृतिक तथ्य है, जो हम पर हर दिन उजागर होता है. उनकी मधुर आवाज सुने बगैर शाम नहीं ढलती- सिवा की आप बाधिर ना हों.''
जहर देकर मारने की हुई थी कोशिश
1962 में जब लता 32 साल की थी तब उन्हें स्लो प्वॉइजन दिया गया था. लता की बेहद करीबी पदमा सचदेव ने इसका जिक्र अपनी किताब ‘ऐसा कहां से लाऊं’में किया है. जिसके बाद राइटर मजरूह सुल्तानपुरी कई दिनों तक उनके घर आकर पहले खुद खाना चखते, फिर लता को खाने देते थे. हालांकि उन्हें मारने की कोशिश किसने की, इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया.
भारत रत्न सहित इन अवॉर्ड्स से किया गया सम्मानित
संगीत की दुनिया की शान लता मंगेशकर को तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. ये सम्मान उन्हें 1972, 1975 और 1990 में दिया गया था. इसके बाद 1958, 1962, 1965, 1969, 1993 और 1994 में उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला. गायिकी के दम पर लता जी 1969 में पद्म भूषण पुरस्कार लेने में भी सफल रहीं. उन्हें 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
1993 में लता की झोली में फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार आया. इसके साथ ही 1999 में उन्हें पद्म विभूषण भी मिला. लता जी यहां भी नहीं रुकीं और 2001 में उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से नवाजा गया. इन सारे अवॉर्ड्स के अलावा लता को राजीव गांधी पुरस्कार, एन. टी. आर. पुरस्कार, महाराष्ट्र भूषण, स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट, जी सिने का लाइफटाइम अचीवमेंट जैसे अवॉर्ड्स से भी सम्मानित किया गया था.
6 फरवरी 2022 में दुनिया को कहा था अलविदा
6 फरवरी 2022 की तारीख संगीत प्रेमियों के लिए एक काला दिन था. इस दिन सुर कोकिला लता मंगेशकर ने दुनिया को अलविदा कहा था. उन्होंने 6 फरवरी को मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली थीं.
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