भैनी साहिब में संगीत केवल एक कला नहीं है, यह जीवन जीने का एक तरीका है. यह अनोखा गांव, जहां सुबह-सुबह पक्षियों के गायन और बच्चों की जादुई आवाज़ों से जगमगाता है. पंजाब के लुधियाना जिले में बसा है पंजाब का "Musical गांव"...जहां हर घर से शास्त्रीय संगीत की धुनें सुनाई देना एक साधारण सी बात है. जी हां, इस अनोखे गांव में पिछले 100 सालों से गांव में पले-बढ़े हर बच्चे को भारतीय शास्त्रीय संगीत की बुनियादी शिक्षा दी जाती रही है.
पढ़ाई खत्म करने के बाद रियाज़ में लग जाते बच्चे
तस्वीरों में दिख रहे ये बच्चे 5 साल से लगभग 16 साल के हैं, लेकिन संगीत और राग सीखने के लिए ऐसा ललक और प्यार है कि जब भी समय लगता है तो चाहे पढ़ाई खत्म करने के बाद या खेल-खूद करने के बाद यहां बच्चे अपने वाद्य यंत्रों के साथ सभी संगीत और राग की धुनों पर रियाज़ करना शुरू कर देते है. जहां उनका नामधारी डॉ हरविंदर सिंह हाथ में दिलरुबा और पंडित राजेश कुमार मालवीय तबले पर तकटकी लेकर इंतज़ार कर रहे होते हैं. 9वीं कक्षा में पढ़ रहे मेहताब सिंह, जो तबला बजा रहे हैं..कहते हैं कि संगीत की सुगंध हर बच्चे को छू जाए ये शिक्षा दी गई है.
संगीत जगत के ये निपुण गायक उन्हें न केवल गाना या वाद्ययंत्र बजाना सिखाते हैं, बल्कि वह उन्हें यह भी सिखाते हैं कि संगीत ब्रह्मांड के चक्रों से कैसे मेल खाता है, क्यों कुछ राग केवल शाम या भोर में ही गाए जाते हैं और कैसे बारिश में नाचते मोर ने पीढ़ियों के लिए संगीत को प्रेरित किया है.
गांव में कैसे शुरू हुई शास्त्रीय संगीत की परंपरा ?
डॉ हरविंदर सिंह आज तक और India Today से खास बातचीत में बताते हैं कि भैनी साहिब में पढ़ाया जाने वाला शास्त्रीय संगीत अपनी विशिष्ट भक्ति प्रकृति के अलावा एक शैली के रूप में खड़ा है. भारतीय शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को मूर्त रूप देते हुए, यह संगीत और इसके वाद्ययंत्र (सरिंडा, तौज, दिलरुबा, जोड़ी पखवाज और रबाब) हमेशा नामधारी, एक सिख संप्रदाय की विशेषता रहे हैं. करीब एक सदी पहले नामधारी आध्यात्मिक गुरु सतगुरु प्रताप सिंह ने गांव के बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखाने की परंपरा शुरू की थी. जो आज तक चली आ रही है.
पंडित राजेश कुमार मालवीय आज तक को बताते हैं कि संगीत आपको एक बेहतर इंसान बनाता है, नामधारी ने 19वीं शताब्दी में भैनी साहिब में अपना आध्यात्मिक आधार स्थापित किया. छोटे से गांव को इसके ऐतिहासिक महत्व के लिए चुना गया था. स्वतंत्रता के लिए भारतीय संघर्ष के दौरान भैनी साहिब में कई सिख शहीद हुए थे. बता दें कि पंडित राजेश मालवीय पिछले 30 सालों से भैनी साहिब में बच्चो को तबला और संगीत सिखा रहे हैं.
सतगुरु जगजीत सिंह ली जिम्मेदारी
करीब एक सदी पहले नामधारी आध्यात्मिक गुरु सतगुरु प्रताप सिंह ने गांव के बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखाने की परंपरा शुरू की थी. 1959 में जब उनकी मृत्यु हुई, तो उनके पुत्र सतगुरु जगजीत सिंह ने यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ली कि यह सुंदर परंपरा जारी रहे. स्वयं एक कुशल गायक और दिलरुबा वादक, सतगुरु जगजीत सिंह को संगीत के प्रति अपने पिता का जुनून विरासत में मिला था. उनके कुशल मार्गदर्शन में, भैनी साहब धीरे-धीरे एक ऐसे गांव के रूप में विकसित हुआ, जिसने शास्त्रीय संगीत और सदियों पुराने पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों को संजोया और पोषित किया.
जब बिस्मिल्लाह खान से मिलने गए
पंडित राजेश कुमार मालवीय ने बताया कि सतगुरु जगजीत सिंह ने भारत के महान संगीत उस्तादों के साथ भी संबंध बनाए ताकि वे भैनी साहिब के बच्चों को पढ़ा सकें. जब वह महान शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान से मिलने गए तो वे गांव के एक बच्चे कृपाल सिंह को अपने साथ ले गए. संगीत के प्रति उनकी भक्ति ने शुरुआत में क्रोधी उस्ताद पर जीत हासिल की, जो कृपाल सिंह को तार-शहनाई बजाने की कला सिखाने के लिए सहमत हो गए. तार शहनाई एक अनोखा तार वाला वाद्य यंत्र है, जिसका शंक्वाकार मुखपत्र शहनाई की तरह ही ध्वनि उत्पन्न करता है.
संगीत भैनी साहिब में हमेशा से ग्रामीणों के जीवन का एक अभिन्न अंग रहा है. भले ही वे किसान हो टीचर हो या दुकानदार या गृहिणी..यहां बिना पलक झपकाए रागों के साथ-साथ शास्त्रीय संगीत के उस्तादों के नाम भी सुना देते हैं.