पैरेलल सिनेमा के दिग्गज फिल्म मेकर श्याम बेनेगल का निधन हो गया है. उनकी उम्र 90 साल थी. श्याम बेनेगल की बेटी पिया बेनेगल ने उनकी मृत्यु की पुष्टि करते हुए बताया कि वह लंबे समय से बीमार थे. रिपोर्ट्स के अनुसार वह किडनी की समस्या से भी जूझ रहे थे. उन्होंने शाम 6:30 बजे मुंबई में आखिरी सांस ली.
बेनेगल को यथार्थवादी सिनेमा का पितामह माना जाता है. सिनेमा जगत में बेनेगल की उपलब्धियों को चंद वाक्यों में तो नहीं समेटा जा सकता. लेकिन उनके आठ दशक के सफर को याद जरूर किया जा सकता है.
12 साल की उम्र में बना दी थी पहली फिल्म
श्याम बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 को ब्रिटिश इंडिया के सिंकदराबाद में हुआ था. उनके पिता कर्नाटक के रहन वाले थे. बेनेगल ने हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में एम.ए. की डिग्री हासिल की. यहीं पर उन्होंने हैदराबाद फिल्म सोसाइटी की भी स्थापना की.
खास बात यह है कि फिल्मों के साथ बेनेगल का रिश्ता बचपन में ही स्थापित हो गया था.
दरअसल बेनेगल ने अपने पिता श्रीधर बेनेगल के कैमरे से अपनी पहली फिल्म 12 साल की उम्र में ही बना दी थी. इस फिल्म के बारे में बेनेगल ने एक इंटरव्यू में बताया था, "मेरे पिता एक फोटोग्राफर थे. उनका एक फोटो स्टूडियो था जहां मैं 16-एमएम की शॉर्ट फिल्में बनाता था. घर आने वाले मेहमान डिनर के बाद इन फिल्मों का आनंद लेते."
बेनेगल ने बताया, "मैंने अपनी पहली फिल्म 12 साल की उम्र में बनाई. कैमरा घर पर था ही और गर्मियों की छुट्टियों में फिल्मिंग के लिए पर्याप्त समय होता था. मेरे सारे कज़िन घर आते थे. घर शास्त्रीय संगीत और नृत्य से भर जाता था. एक बार गुरू दत्त (जो बेनेगल के एक कज़िन थे) हमारे घर आए और हम छत पर हर शाम परफॉर्म किया करते थे."
भारतीय सिनेमा को दीं कई क्लासिक्स
बेनेगल के पिता फोटोग्राफर थे. मौसेरे भाई गुरू दत्त एक डांसर (और भविष्य के फिल्ममेकर). इसके अलावा आर्मी का गैरिसन सिनेमा भी उनके घर से कुछ दूर ही था. भारतीय और विदेशी फिल्मों से नजदीकी के कारण फिल्ममेकिंग की ओर बेनेगल का झुकाव बढ़ता चला गया. हालांकि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत फिल्ममेकिंग से नहीं की.
बेनेगल के पेशेवर जीवन की शुरुआत मुंबई की एक एडवरटाइजिंग एजेंसी से हुई जहां वह बतौर कॉपीराइटर काम करते थे. यहीं पर उन्हें एक फिल्ममेकर के पद पर प्रोमोट कर दिया गया. बतौर फिल्ममेकर उन्होंने 900 कमर्शियल और एड फिल्में बनाईं. उन्होंने 11 कॉर्पोरेट फिल्में और कई डॉक्युमेंट्री भी बनाईं.
बेनेगल की पहली फीचर फिल्म अंकुर (1974) ने सही मायने में भारत में पैरेलल सिनेमा की शुरुआत की. यह फिल्म आंध्र प्रदेश में एक दलित दंपत्ति के संघर्ष की कहानी थी. इसके बाद बेनेगल ने सामाजिक कुरीतियों से जुड़ी कई फिल्में बनाईं, जैसे कलयुग, जो महाभारत का एक आधुनिक रूप थी. मंडी, जिसमें उन्होंने हैदराबाद के एक वेश्यालय की कहानी सुनाई. और मंथन, जो भारत के श्वेत क्रांति से जुड़ी हुई थी.
'भारत एक खोज' से हो गए अमर
भारत में पैरेलल सिनेमा को स्थापित करने के बाद बेनेगल ने टीवी पर भी काफी काम किया. उन्होंने दूरदर्शन के लिए कथा सागर और यात्रा जैसे टीवी सीरियल बनाने के अलावा पंडित जवाहरलाल नेहरू की किताब 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' पर 53 एपिसोड का 'भारत एक खोज' सीरियल भी बनाया. क्रिटीक्स की ओर से इस सीरियल को खूब वाहवाही मिली.
बेनेगल अंतरनाद (1991) के साथ बड़े पर्दे पर लौट आए. इसके बाद उन्होंने सूरज का सातवां घोड़ा (1993), सरदारी बेगम (1996), वेलकम टू सज्जनपुर (2008) और वेल डन अब्बा (2009) जैसी फिल्मों का निर्देशन किया. अपने करियर के अंतिम हिस्से में बेनेगल ने टीवी मिनीसीरीज 'संविधान' (Samvidhan: The Making of the Constitution of India) का भी निर्देशन किया, जो 2014 में रिलीज हुई.
इन पुरस्कारों से किया गया सम्मानित
बेनेगल को उनके सुसज्जित करियर में कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया. उन्हें 1976 में पद्मश्री और 1991 में पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया. साल 2005 में बेनेगल को दादासाहेब फाल्के पुरस्कार दिया गया. साल 2013 में उन्हें अक्किनेकी इंटरनेशनल फाउंडेशन ने एएनआर नेशनल अवॉर्ड से पुरस्कृत किया. इसके अलावा बेनेगल को 18 नेशनल फिल्म अवॉर्ड, एक फिल्मफेयर अवॉर्ड और नंदी अवॉर्ड से भी पुरस्कृत किया गया.