महाराष्ट्र में हुए मानव नरसंहार पर आधारित सीरीज 'मानवत मर्डर्स' सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही है. इस सीरीज को दर्शकों की काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है. इस सीरीज में आशुतोष गोवारिकर, मकरंद अनासपुरे, साई ताम्हणकर, सोनाली कुलकर्णी, किशोर कदम जैसे दिग्गज कलाकार हैं. सीरीज को आशीष बेंडे ने निर्देशित किया है.
महाराष्ट्र का पहला 'सीरियल किलिंग' मामला
मराठवाड़ा के एक गांव से एक के बाद एक छोटी लड़कियां और महिलाएं गायब होने लगीं. उनके क्षत-विक्षत शव खेतों में, कुओं पर, खेतों में मिलने लगे. पहली छह हत्याओं तक इसके पीछे कौन था, इसका कोई सुराग नहीं था. यह नवंबर 1972 से जनवरी 1974 के बीच चल रहा था. महाराष्ट्र का पहला 'सीरियल किलिंग' मामला कैसे हुआ? कैसे पुलिस ने ये गुत्थी सुलझाई? क्या अपराधियों को सज़ा मिली? आइए जानते हैं.
मानवत मर्डर्स के पीछे की वजह, मानव बलि, लोक देवता को रक्त चढ़ाना और पुराने खजाने की खोज शामिल थी. इस हत्याकांड में विक्टिम के चेहरे ऐसे बिगाड़ दिए गए कि उनकी डेड बॉडी को पहचानने में काफी समय लग गया. मृतकों में 10 साल की एक बच्ची भी थी, जिसका सिर काट दिया गया था. किसी की उंगलियां काट दी गईं थी तो किसी की छाती. ये सब किया गया था एक तांत्रिक की सलाह पर.
जब ये मामला अदालत में पहुंचा तो मुख्य आरोपी रुख्मिनी नाम की आदिवासी महिला और उसका विवाहित उच्च जाति का प्रेमी उत्तम राव बरहाटे थे. रुख्मिनी की उम्र उस समय 30 के आसपास थी. उसे मासिक धर्म नहीं आता था और वो मां बनने में भी असमर्थ थी. वहीं, उसके प्रेमी उत्तमराव को पीपल के पेड़ के नीचे दबे सोने की खजाने का लालच आ गया था. वहां के स्थानीय लोगों का मानना था कि पेड़ से मुंज्या नाम के एक दुष्ट लड़के की आत्मा बंधी हुई थी.
पुलिस के अनुसार, गणपत साल्वे नाम के एक ओझा ने रुख्मिणी और उत्तमराव को यह बताया था कि मुंज्या को केवल मानव बलि से ही खुश किया जा सकता है. मानव के खून की बलि से न केवल रुक्मिणी को संतान की प्राप्ति हो सकती है बल्कि उत्तमराव को खजाना भी मिल जाएगा. इसके लिए रुख्मिणी और उत्तमराव ने मानव बलि के लिए लोगों को काम पर रखा, जो पुलिस जांच शुरू होने के बाद भी जारी रहा.
हत्याओं पर आधारित मराठी सीरीज महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक रमाकांत कुलकर्णी की पुस्तक फुटप्रिंट्स ऑन द सैंड्स ऑफ क्राइम के एक चैप्टर से लिया गया है. हालांकि कुलकर्णी की किताब आने से 24 साल पहले मुंबई के वकील राजगुरु देशमुख की किताब में भी इस अपराध को लेकर काफी कुछ छप चुका था.
जो हत्याएं हुई थीं. उसका पहला शिकार 10 साल की बच्ची बनी थीं, अन्य महिलाओं की तरह उसके भी गुप्तांगों से खून निकाला गया और स्टील के कटोरे में मुंज्या को चढ़ाया गया. जब नाबालिग लड़कियों की बलि से कोई फायदा नहीं हुआ तो गणपत साल्वे ने मासिक धर्म वाली महिलाओं से रक्त की मांग की, लेकिन इसका भी कोई लाभ न मिला. इसके बावजूद, हत्याओं का सिलसिला जारी रहा.
साल 1973 में जब पुलिस ने उत्तमराव, रुख्मिनी और रुख्मिनी की बहन समिंद्री को गिरफ्तार किया, तब तक सात लड़कियों और महिलाओं की हत्या हो चुकी थी. रुख्मिणी और उत्तमराव को सत्र न्यायालय ने दोषी ठहराया था, लेकिन 1976 में उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया क्योंकि उनके खिलाफ साजिश का आरोप साबित नहीं हो सका.
उच्च न्यायालय ने रुख्मिणी की बहन समिंद्री को भी बरी कर दिया, जिसने साजिश में भाग लेने के अपने बयान को वापस ले लिया था. 1977 में सुप्रीम कोर्ट ने बरी किए गए फैसले को बरकरार रखा. लेकिन हत्या करने वाले को दोषी ठहराया. जिन लोगों को हत्या के लिए दोषी ठहराया गया, उनमें से 4 को 1979 में फांसी दे दी गई.