Happy Birthday MS Subbulakshmi: एमएस सुब्बुलक्ष्मी की आवाज के कायल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर चाचा नेहरू तक रह चुके हैं. एमएस सुब्बुलक्ष्मी का नाम संगीत की दुनिया में आज भी बहुत ही अदब के साथ लिया जाता है. सुब्बुलक्ष्मी का जन्म 16 सितंबर 1916 को तमिलनाडु के मदुरै शहर में हुआ था. आइए आज इस सुर साम्राज्ञी के बारे में जानते हैं.
हर कोई हो जाता था फैन
एमएस सुब्बुलक्ष्मी ने 5 साल की उम्र में संगीत की शिक्षा ग्रहण करनी शुरू कर दी थी. सेम्मनगुड़ी श्रीनिवास अय्यर से कर्नाटक संगीत और पंडित नारायण राव व्यास से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा हासिल की थी. बहुत छोटी सी उम्र में संगीत की शिक्षा पूरी कर ली थी. उनकी आवाज में ऐसा जादू था कि जो सुनता वह उनका फैन हो जाता था. उनका पहला गाना महज 10 साल की उम्र में ही रिलीज हो गया था.
इसके बाद उन्होंने मद्रास संगीत अकादमी से म्यूजिक की ट्रेनिंग ली और कन्नड़ के साथ कई भाषाओं में गाने गाए. यह उनकी कला साधना का ही प्रभाव था कि लता मंगेशकर ने उन्हें 'तपस्विनी' कहा, उस्ताद बडे गुलाम अली खां ने उन्हें 'सुस्वरलक्ष्मी' का नाम दिया, किशोरी आमोनकर उन्हें 'आठवां सुर' कहती थीं, जो संगीत के सात सुरों से ऊंचा है.
फिल्मों में यादगार रोल अदा किए
सुब्बुलक्ष्मी एक सफल संगीतकार होने के साथ ही साथ सफल अभिनेत्री भी थीं. उन्होंने कई फिल्मों में यादगार रोल अदा किए. लेकिन कुछ फिल्मों के बाद वह गायकी में पूर्ण रूप से समर्पित हो गईं. संगीत के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान देने के लिए सुब्बुलक्ष्मी को भारत रत्न और मैगसेसे पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है
कागज का माइक बनाकर गानों की करती थीं प्रैक्टिस
सुब्बुलक्ष्मी को संगीत में रुचि बचपन से ही थी. छोटी उम्र में ही वह ग्रामोफोन से काफी ज्यादा प्रभावित थीं. बचपन में वह कागज का माइक बनाकर गानों की प्रैक्टिस किया करती थीं. महज आठ साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला स्टेज परफॉर्मेंस दिया था. उन्होंने कुंभकोणम में महामहम उत्सव में यह प्रस्तुति दी थी. कहा जाता है कि उसी समय संगीत के जानकरों ने उनकी प्रतिभा को पहचान लिया था.
संगीत की ट्रेनिंग लेने के बाद से ही सुब्बुलक्ष्मी ने कार्यक्रमों में प्रस्तुति देनी शुरू कर दी थी. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो साल 1936 में तमिल साप्ताहिक पत्र में पत्रकार टी सदाशिवम आनंद ने सिंगर पर एक लेख लिखा, जिसके बाद से ही उनेक कार्यक्रम में लोगों की भीड़ उमड़ने लगी.
बापू ने की थी तारीफ
एमएस सुब्बुलक्ष्मी की आवाज के कायल महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू भी थे. सुब्बुलक्ष्मी और उनके पति सदाशिवम आजादी की लड़ाई में भी अपने स्तर पर योगदान दिया करते थे. सुब्बुलक्ष्मी अपनी गायकी से होने वाली कमाई कस्तूरबा फाउंडेशन को सौंप देती थीं. इसी सिलसिले में उन्हें महात्मा गांधी के संपर्क में आने का मौका मिला था.
महात्मा गांधी उन्हें आधुनिक भारत की मीरा कहते थे. एक बार उन्होंने कहा था, 'हरि, तुम हरो जन की भीर' इस मीरा भजन को सुब्बुलक्ष्मी बोल भी दें तो वह भजन किसी और के गाने से ज्यादा सुरीली होगी. सुब्बुलक्ष्मी ऐसी पहली भारतीय थी जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया था.
...जब बोले थे चाचा नेहरू
1953 में दिल्ली में आयोजित कर्नाटक संगीत के एक समारोह में सुब्बुलक्ष्मी का गीत सुनकर पंडित जवाहरलाल नेहरू (चाचा नेहरू) जी ने कहा था, सुब्बुलक्ष्मी के संगीत में दिल के तारों को हिला देने की शक्ति है. वे संगीत की रानी हैं. उनके सामने मैं क्या हूं, केवल भारत का प्रधानमंत्री ही तो.
सार्वजनिक गायन बंद कर दिया
साल 1996 में सुब्बुलक्ष्मी के पति की मृत्यु हो गई. उसी वक्त उन्होंने सार्वजनिक गायन बंद करने की भी घोषणा की. पति की मृत्यु के 8 साल बाद साल 2004 में सुब्बुलक्ष्मी की मृत्यु हो गई.