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हास्य का हॉरर या हॉरर के हास्य से बौराए, ब्रेन से ब्रेकअप कर चुके खोपड़े की गुहार- ओ! स्त्री आज ही उठा ले जाना... 

फिल्म में तीन दोस्त हैं. एक फिल्म का हीरो है, जो लेडीज टेलर है. इसकी खासियत है सिर्फ आंखों से ही लड़कियों की नाप लेने का हुनर रखता है. एक घंटे में एक घाघरा सिल सकता है. एक दोस्त की प्रेमिका को सरकटा उठा ले गया है. एक चुड़ैल के चक्कर में जॉम्बी टाइप की हरकत करता घूम रहा है. इतना सहन कर आप से संभल भी नहीं पाएंगे कि फिल्म में एक भेड़िया भी प्रकट हो जाएगा.

Stree-2 Movie Stree-2 Movie
हाइलाइट्स
  • स्त्री-2 का विलेन सरकटा 

  • अपना कटा सिर लिए रहता है हाथों में 

(डिस्क्लेमरः बॉलीवुड इतिहास की सबसे कमाऊ फिल्म बन चुकी स्त्री-2 देखने के बाद एक सीनियर-सिन्सियर-सेन्सटिव फिल्मप्रेमी के दिल पर जो गुजरी है, यह उसकी दास्तान है... इसे अपने ही रिस्क पर पढ़ें. अपने ही बाल नोचें. अपना ही खून जलाएं. हमें सुनाने कतई ना आएं.) 

स्त्री-2 का विलेन सरकटा अपना कटा सिर अपने हाथों में लिए रहता है. यानी पहली बात तो ये नोट कर लीजिए कि इस फिल्म में सिर और धड़ के बीच कोई संबंध नहीं है. बस, कुलजमा इसे ही ब्रह्म वाक्य मानकर आगे बढ़िए. इस फिल्म में किसी चीज का किसी दूसरी चीज से कोई खास ताल्लुक नहीं है. यही स्त्री-2 की कह है. आपको भी इस फिल्म को देखने से पहले अपने सिर को अपने ब्रेन से अलग करना है. फिर उसे सरकटे की तरह निकालकर कुछ 10-12 बार गेंद की तरह टप्पे खिलाना है. फिर उसे अपने हाथों में ले लेना है, जैसा सरकटा फिल्म में करता है. इस कवायद को पूरी गंभीरता से करते ही आप फिल्म देखने के लिए चकाचक तैयार हैं.

वैसे इतने टप्पे खिलाने के बाद आपके ब्रेन का जो भर्ता बन चुका है. इसी ब्रेनलेस भर्ते में टाइटल शुरू होते ही जब कुछ केमिकल मिलेंगे, घुलेंगे. खदबदाएंगे... दिमागी लोचा पैदा होगा. फिर जब टुन्न हो जाएगा दिमाग. सुन्न हो जाएगा दिल. हम रहे न हम ! तुम रहे न तुम ! नॉर्मल न रहे. अबनॉर्मल हो गए... टाइप की गति आ जाएगी. जब ऐसा हो जाएगा तो इस बार कागज-पेन निकाल कर नोट कर लीजिए. अब आप किसी परम अवस्था में किसी मल्टीप्लेक्स में बैठे हैं. समाधिस्थ से हो रहे हैं. सामने पर्दा लगा है. लोग चिल्ला रहे हैं. राजकुमार राव बिक्की बना घूम रहा है. बाप के साथ अश्लील किस्म की बातें कर रहा है. बल्कि बातें तो बाप ही कर रहा है वो तो बाप को बाप बनकर हद में रहने की हिदायत दे रहा है.

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एक श्रद्धा कपूर टाइप लड़की बीच-बीच में प्रकट हो रही है. प्रेमी से बिल्ली के मू... टाइप की अजीब सी चीजों की फरमाइश कर रही है. उधर, सरकटा मॉडर्न टाइप की दिखने वाली लड़कियों को उठाने के चक्कर में भिड़ा है. बंदा मेहनती बहुत है, सो अपनी जर्जर हवेली में रोज़ गोबर के कंडे जलाकर गरमा-गरम लावा बनाता रहता है. घोर अंधकार, सर्दी-बरसात में निकलकर शिकार भी खोजता फिरता है. सिर को फालतू मानकर हथियार की तरह फेंक-फेंककर मारता रहता है.

फिल्म में तीन दोस्त हैं. एक फिल्म का हीरो है, जो लेडीज टेलर है. इसकी खासियत है सिर्फ आंखों से ही लड़कियों की नाप लेने का हुनर रखता है. एक घंटे में एक घाघरा सिल सकता है. एक दोस्त की प्रेमिका को सरकटा उठा ले गया है. एक चुड़ैल के चक्कर में जॉम्बी टाइप की हरकत करता घूम रहा है. इतना सहन कर आप ढंग से संभल भी नहीं पाएंगे कि फिल्म में एक भेड़िया भी प्रकट हो जाएगा. अभी आप इस गुत्थी को सुलझा भी नहीं पा रहे होंगे कि यही भेड़िया फिल्म में कुत्ते टाइप की हरकत करने लगेगा. इतनी बातों से आपका दिल नहीं भरेगा तो जिल्ले इलाही उर्फ खिलाड़ी भैड्या पागलों के बीच से धरती का सीना फाड़कर प्रकट हो जाएंगे. उ कैमियो में उन्होंने इतना डरावना डसा है कि चारों तरह त्राहि-त्राहि फैल जाती है. इन्हीं परम पावन कार्यकलापों को फिल्म में हॉरर कहा गया है. शास्त्रों में इसे ही अत्याचार की संज्ञा प्रदान की गई है.

जब-जब पिच्चर में ये हॉरर दिखता है, दर्शक प्रचंड तौर पर हंसते हैं. ऊपर से जब ये तीन दोस्त, पंकज त्रिपाठी और विजय राज फिल्म में हास्य पैदा करते हैं तो दर्शकों को भयंकर तौर पर हॉरर का फील आता है. ऑडियंस अंत तक तय नहीं कर पाती कि वह हास्य के हॉरर या हॉरर के हास्य, किससे ज्यादा प्रभावित हैं. पब्लिक इसी बात को समझने के लिए दो-तीन बार थियेटर के चक्कर लगा रही है. इतने चक्कर के बाद ही जनता को समझ में आ रहा है कि यार! इससे अच्छा तो स्त्री कल आने की जगह आज ही आकर उन्हें ही थियेटर से उठा ले जाती.

अभी भी आप लगातार नोट करते जा रहे हैं ना कि आपके खोपड़े का आपके ब्रेन से कोई रिश्ता नहीं हैं. वैसे भी यह फिल्म कई मायनों में ऐतिहासिक है. सरकटे से ज्यादा लोगों ने इस फिल्म के बाद खून का बदला खून से लेने का काम संपन्न किया है. हम ही क्यों इतना मज़ा लें बे! इसी आत्मज्ञान को प्राप्त कर वे अपने नजदी को भी लगातार फिल्म देखने को भेज रहे हैं. नजदीकी भी अपने नजदीकियों के साथ यही हरकत दोहरा रहे हैं. सीरियल बदला लेने का काम जारी है. माउथ पब्लिसिटी की फैलान हो रही है. भीड़ थियेटरों में घुसी जा रही है. कहानी समझ नहीं आ रही है. फिल्म करोड़ों कमा रही है!.

लोग जिस बॉल को हास्य समझकर खेल रहे हैं, वो हॉरर निकल रही है. इसी गूगली पर लोग फ़िदा हो रहे हैं. अपन समझ नहीं पा रहे हैं. दूसरे क्यों बौरा रहे हैं. फिल्म में चुड़ैल को रोकने के लिए हर घर की दीवार पर एक लाइन लिखी है-ओ! स्त्री कल मत आना... लोग रोज़ मल्टीप्लेक्स आ रहे हैं! निर्माता-निर्देशक कमा रहे हैं. यहां दिमाग का दही हो रहा है कि लोग आखिर देखने क्या जा रहे हैं? साक्षात् इतने कुछ देखने के बाद जब मेरे ब्रेन का मेरे खोपड़े से ब्रेकअप हो गया तो मैं समझ पाया... क्या समझ पाया? इसे जानने के लिए आप भी कीजिए स्त्री-3 के रिलीज होने का इंतजार. क्योंकि उसके बाद ही तो आएगा मेरी समझाने वाली दास्तान का तीसरा पार्ट. क्या समझे!