पूरी सिनेमा इंडस्ट्री में हर तरफ ओपेनहाइमर (Oppenheimer) की चर्चा है. लेकिन फिल्म के सीन पर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने नाराजगी जताई है. केंद्रीय मंत्री ने हॉलीवुड फिल्म ओपेनहाइमर को मंजूरी देने पर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) पर नाराजगी जताई है. उन्होंने फिल्म से उस सीन को हटाने की मांग की है, जिसमें एक इंटिमेट सीन के दौरान एक केरैक्टर प्राचीन संस्कृत ग्रंथ, भगवद्गीता के श्लोक पढ़ रहा है. इस सीन ने सोशल मीडिया पर विवाद खड़ा कर दिया है. अब इसी को हटाने को लेकर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) ने नाराजगी जताई है. इसके बाद से ही CBFC के काम करने के तरीके को लेकर बात चल रही है.
क्या है CBFC और ये कैसे काम करता है?
दरअसल, CBFC या जिसे हम सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन कहते हैं सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत आता है. ये विभाग सिनेमेटोग्राफ एक्ट, 1952 (Cinematograph Act) के तहत भारत में फिल्मों के एग्जीबिशन और रेगुलेशन के लिए जिम्मेदार है. यानी देश में जब भी कोई फिल्म आती है या दिखाई जाती है तो उससे पहले उसे सीबीएफसी से सर्टिफिकेट लेना होता है. जिसके बाद ही उसे पब्लिक में रिलीज किया जाता है. इस बोर्ड में केंद्र सरकार के नियुक्त किए हुए सदस्य और एक अध्यक्ष शामिल होता है. इसका मेन ऑफिस मुंबई में स्थित है. फिलहाल देश में इसके नौ लोकल ऑफिस हैं.
कैसे मिलता है किसी भी फिल्म को सर्टिफिकेट?
सर्टिफिकेट लेने के लिए सबसे पहले फिल्म की जांच एक समिति करती है और उसकी समीक्षा करती है. इसमें सीबीएफसी अधिकारी और सलाहकार पैनल के सदस्य शामिल होते हैं. समिति फिल्म के लिए जो भी संशोधन और जो बदलाव होने हैं उनकी सिफारिश करती है. सर्टिफिकेशन प्रोसेस पूरी तरह से केंद्र सरकार ने जो दिशानिर्देश दिए हैं उनके हिसाब से होता है. इसमें देश के हितों या सार्वजनिक व्यवस्था के खिलाफ जाने वाली फिल्मों को प्रमाणित न करने के दिशानिर्देश भी शामिल हैं.
कितनी कैटेगरी में मिलता है सर्टिफिकेट?
सीबीएफसी फिल्म के कंटेंट के हिसाब से ये सर्टिफिकेट देती है. इसमें फिल्म को अनरजिस्टर्ड पब्लिक एग्जीबिशन (U), 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए माता-पिता के मार्गदर्शन में देखी जाने वाली फिल्म (U/A), वयस्कों (A), या विशेष समूहों (S) केटेगरी शामिल है. उसी के हिसाब से फिल्मों को सिनेमाघरों में रिलीज किया जाता है.
इतना ही नहीं बल्कि अगर कोई आवेदक सर्टिफिकेशन से असंतुष्ट है, तो वे बोर्ड और सलाहकार पैनल दोनों के अध्यक्ष और सदस्यों की अध्यक्षता वाली समिति में दोबारा जांच की अपील कर सकते हैं. अगर आगे कोई विवाद उठता है, तो उन्हें अपील कोर्ट में भी ले जाई जा सकती है.