कहते हैं प्यार किसी भाषा, मज़हब और जाति का मोहताज नहीं होता... दो प्यार करने वाले के दिल सरहदों के पार रह कर भी मिल सकते हैं. सरहदों के पार का प्यार वाला कल्चर आजकल बढ़ा है... और सोशल मीडिया ने तो इसे खूब परवान चढ़ाया है. कुछ ऐसी ही कहानी है फिल्म वादा की. फिल्म वादा की कहानी लिखी है इंडिपेंडेंट फिल्म मेकर रजनीश बाबा मेहता. वही रजनीश बाबा मेहता जिनकी फिल्म पुण्यतिथि को ताशकंद फिल्म फेस्टिवल में FOR THE IDEA OF THE HUMAN SOLIDALITY का अवॉर्ड मिल चुका है. आप जब पुण्यतिथि देखेंगे तो पाएंगे कि ये कहानी हमारे समाज के उस कोने को छूती है जिसकी बानगी हर आने वाले समाज में दी जाती रही है और आगे भी दी जाएगी.
ये कहानी राम-रहीम की दोस्ती की हो तो बात ही क्या है. 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी टूट रही थी तब भी ऐसा ही एक वाक्या अयोध्या की गलियों में देखने को मिला था, और ये किस्सा था एक पंडित और एक मुल्ला की दोस्ती का. लेकिन आगे चल कर धर्म की राह पर दोनों की ये दोस्ती कुर्बान हो जाती है. 30 साल पहले हुए इसी बाबरी विध्वंस की कहानी को दिखाया गया है फिल्म 'पुण्यतिथि' में. जीएनटी Digital ने रजनीश बाबा मेहता से खास बातचीत की. पेश है रजनीश से बातचीत के कुछ खास अंश...
सबसे पहले बात पुण्यतिथि की
फिल्म की कहानी एक मदरसे से शुरू होती है जहां पर 60 साल का सरफराज खान बच्चों को पढ़ा रहा है. मौलाना पढ़ाई की शुरुआत एक डायलॉग से करता है. जब आप इस फिल्म को देखेंगे तो दो लाइन का ये डायलॉग आपके दिमाग में कई सारे सवाल पैदा कर देगा. और यही डायलॉग आपको पूरी फिल्म देखने पर मजबूर कर देगा.
वो डॉयलॉग है ....
हम मिलेंगे कयामत के दिन, साथ मिल कर पत्थर मारेंगे शैतान को, और पूछेंगे खुदा से कि काबे में ही क्यों मिलते हो.
कहानी शुरू होती है और आगे भी बढ़ती है. फिल्म की कहानी अयोध्या के एक मुस्लिम परिवार की है जो बाबरी के टूटने के 26 साल बाद भी एक दर्द और बोझ के तले जी रहे हैं. आज भी वो हर साल 6 दिसंबर को अयोध्या की गलियों से गुजरते हुए अपने पुराने घर की तरफ देखते हैं. जिस घर में जिंदगी का सबसे प्यारा हिस्सा आज भी दफ्न है. यहीं पर उनकी 6 साल की बेटी अलिफिया की मज़ार है. इस कहानी में दर्द है एक बाप के हाथों अपनी ही बेटी का गला काटने और दोस्ती में दरार पड़ने का. सबसे बड़ी बात जो रजनीश ने अपनी फिल्म के जरिए दिखाने की कोशिश की है वो है एक पिता का दर्द, जो अपनी बेटी को मार कर आज हर दिन अपनी मौत की दुआ मांग रहा है. फिल्म को देख कर आप खुद को इस फिल्म से कहीं ना कहीं जुड़ा हुआ पाएंगे.
पत्रकार से फिल्ममेकर बनने का सफर
बिहार में जन्मे रजनीश बाबा मेहता एक इंडिपेन्डेंट फिल्ममेकर हैं. रजनीश को अलग तरह की फिल्में बनाने और समाज में हो रही घटनाओं को अलग तरह से पेश करने के लिए जाना जाता है. रजनीश ने बातचीत के दौरान बताया कि फिल्म मेकिंग में आने से पहले उन्होंने अपने करियर के 6 साल समाचार चैनलों को दिया है. रजनीश ने बताया कि आए दिन खबरों के बीच से वो एक कहानी तलाश किया करते थे, और इसी तलाश ने रजनीश को जर्नलिस्ट से फिल्ममेकर बना दिया. रजनीश ने कॉलेज टाइम में रेटिना इंडिया, गांधी और गोली, जरीना वहाब स्टारर शिवानी जैसी शॉर्ट फिल्में बनाई.
ऐसे आया था 'पुण्यतिथि' बनाने का आईडिया
जैसा ऊपर बताया गया है रजनीश हर जगह कहानी और किरदार तलाश करते हैं तो रजनीश के लिए पुण्यतिथि भी एक ऐसी ही तलाश थी. रजनीश को पुण्यतिथि का आईडिया जर्नलिज्म के दौरान ही आया था. पूरे 2 साल हर महीने रजनीश अयोध्या जाते रहे और अयोध्या के गली मोहल्ले की खाक छानते रहे. रजनीश ने बताया कि इस सब के पीछे मेरी कल्पना थी कि कोई तो ऐसी गली होगी जहां पर एक मुस्लिम परिवार रहता होगा और जिसने धर्म की जंग में बहुत कुछ खो दिया होगा.
अयोध्या के लोगों ने बताई पुण्यतिथि की कहानी
रजनीश बताते हैं कि इस फिल्म को ज्यादा लिखने की जरूरत नहीं क्योंकि अयोध्या के लोगों ने ही फिल्म की कहानी रजनीश को दे दी थी. कहानी एक ऐसे मुस्लिम परिवार के बारे में है जो दंगों के दौरान अयोध्या में फंस गया था. रजनीश बताते हैं कि फ्लैशबैक में सुनाई गई ये कहानी अस्तित्व की कहानी है.
अयोध्या नहीं भोपाल में हुई पुण्यतिथि की शूटिंग
आप जब फिल्म पुण्यतिथि देखेंगे तो आप खुद को अयोध्या की गलियों में ही पाएंगे. आप को अयोध्या जैसी ही मंदिरों के आस-पास घाट और छोटी-छोटी मस्जिद नज़र आएंगी. रजनीश ने ये बताया कि फिल्म का सेटअप भले ही अयोध्या जैसा था, लेकिन असल में ये फिल्म भोपाल में शूट की गई थी.
उज्बेकिस्तान के खिवा शहर में की फिल्म 'वादा'
रजनीश का मानना है कि अगर हम क्रिएटिव माइंड के साथ काम करें तो रिजल्ट हमेशा बेहतर होता है. बात रजनीश की दूसरी फिल्म 'वादा' की हो रही है. रजनीश ने बताया कि फिल्म वादा एक लॉन्ग डिस्टेंस लव स्टोरी है. इस फिल्म की शूटिंग उज्बेकिस्तान के खिवा में हुई है .
इस फिल्म की कहानी खिवा की रहने वाली एक जवान लड़की मदीना की है. जो बाहर देश के एक नौजवान से प्यार करने लगती है. दोनों के प्यार को सोशल मीडिया हवा देता है. मदीना का प्रेमी मदीना से मिलने उसके देश भी आता है, लेकिन आखिर में मदीना अपने देश और अपने पिता को छोड़ कर नहीं जा पाती है.
कम लेकिन अच्छी फिल्में बनाने की है कोशिश
रजनीश कहते हैं कि आगे वो ऐसी ही फिल्में बनाने की कोशिश करेंगे जिससे लोग खुद को जुड़ा हुआ महसूस करें. वो खुद कहते हैं कि ये टाइम टेकिंग प्रोसेस है लेकिन कहानी का दमदार होना जरूरी है, क्योंकि एक बार अच्छी कहानी लिख ली जाती है तो सामने से मौके मिलने लगते हैं.