साहित्य आजतक 2024 के मंच पर दूसरे दिन पॉपुलर एक्टर अखिलेंद्र मिश्रा ने शिरकत की. अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा को दूरदर्शन के टीवी शो चंद्रकांता में क्रूर सिंह, फिल्म सरफरोश में मिर्ची सेठ और 2013 में आई महाभारत में कंस जैसे किरदार निभाने के लिए जाना जाता है. उन्होंने बहुत से टीवी शोज और फिल्मों में अहम किरदार निभाए हैं.
अखिलेंद्र मिश्रा साहित्य आजतक के मंच पर अपनी किताब, अभिनय, अभिनेता और अध्यात्म के साथ पहुंचे. इस किताब में अखिलेंद्र मिश्रा ने अभिनय के सुत्र बताए हैं. जब उनसे किताब के बारे में पूछा गया तो अखिलेंद्र ने कहा कि उन्होंने संकल्प किया था कि अगर अभिनय में उनके प्रयोग सफल हुए तो वह अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए हिंदी में अभिनय पर किताब लाएंगे. क्योंकि हिंदी में अभिनय पर ज्यादा किताबें नहीं हैं.
अभिनय का अध्यात्म से कनेक्शन
अखिलेंद्र मिश्रा ने साहित्य आजतक में बात करते हुए कहा कि इस ब्राह्मांड की उत्पत्ति अध्यात्म से हुई है. मनुष्य का मूल अध्यात्म है. सांस लेना-छोड़ना यानी श्वास और प्रश्वास की प्रक्रिया अध्यात्म है. अपने स्व: को जानना अध्यात्म है. अपने अंदर की यांत्रिकी (मशीनरी) को जानना अध्यात्म है. वह कहते हैं, "हम खाना खाते है जो कुछ घंटो में 'मैं' हो जाता है. यह कैसे होता है. विज्ञान कहता है कि यह साइंटिफिक प्रोसेस है. लेकिन कैसे. अन्न से रस कैसे बना. रस से रक्त कैसे बना. रक्त से मांस, मज्जा, वीर्य, अस्थि कैसे बना. हमारी शारीरिक अवस्था ही अध्यात्म है."
मिश्रा ने बताया कि उनकी किताब का आधार तीन बातों पर है-
मशहूर आर्टिस्ट्स का दिया उदाहरण
अखिलेद्र मिश्रा ने मशहूर रूसी थिएटर आर्टिस्ट कोन्सटेंसिन स्टैनिस्लावस्की का उदाहरण देते हुए कहा कि स्टैनिस्लावस्की को दुनिया के हर एक फिल्म इंस्टिट्यूट और स्कूल में पढ़ाया जाता है. उन्होंने बताया, "स्टैनिस्लावस्की ने अपनी एक किताब में चर्चा की है कि जब उन्होंने एक्टिंग की ट्रेनिंग के बाद मंच पर रोल करना शुरू किया था तो वह सिर्फ रोल करने के लिए करते थे. लेकिन कई सालों के अनुभव के बाद उन्हें लगा कि वह जो करते हैं उनसे कोई रूहानी शक्तियां कराती हैं और वह कर जाते हैं." इसी तरह अखिलेंद्र ने भारत के मशहूर एक्टर दिलीप साहब का जिक्र किया.
उन्होंने कहा, "दिलीप साहब हमेशा कहते थे कि शुरू-शुरू में वह करने के लिए रोल करते थे. पर बाद में उन्होंने महसूस किया कि वह जो कर रहे हैं उनसे कोई शक्ति करा रही है. वह कहते हैं कि लोग उनसे कहते कि आपने सीन को क्या फिनिश किया है? जबकि उन्होंने कभी अपने सीन प्लान नहीं किए होते थे बस वह करते चले जाते थे."
धर्म या मजहब की तरफ जाना अध्यात्म नहीं
अखिलेंद्र ने आगे कहा कि अध्यात्म का मतलब किसी धर्म या मजहब की तरफ जाना नहीं है बल्कि स्व: को जानना, अपने आंतरिक सिस्टम को जानना कि कैसे हम सुनते हैं. कैसे हम बोलते हैं. यह सब जानना ही अध्यात्म है. और जब एक एक्टर किसी किरदार को निभाता है तो यही प्रोसेस अध्यात्म है. उनका कहना है कि अभिनय के सारे आयाम अध्यात्मिक है. नाट्य शास्त्र अध्यात्मिक है और अभिनय करने वालों को इसे बार-बार पढ़ना चाहिए.
उन्होंने कहा कि नाट्य शास्त्र रंगमंच पर लिखी गई दुनिया की पहली किताब है. इसे पंचम वेद कहा जाता है. नाट्य शास्त्र ने ऋग्वेद से संवाद, यजुर्वेद से अभिनय, सामवेद से संगीत और अर्थवेद से रस लिया है.
आवाज से पहचान लेते थे लोग
अखिलेद्र मिश्रा ने बताया कि उन्होंने चंद्रकांता में क्रुर सिंह के किरदार के लिए पहली बार ध्वनि को तकियाकलाम बनाया था. अक्सर लोग शब्द या वाक्य का तकियाकलाम बनाते हैं लेकिन उन्होंने ध्वनि के साथ प्रयोग किया. उन्होंने अपने फेमस डायलॉग- 'यक्कु' को नौ रस- करुण, रौद्र, हास्य आदि में प्रयोग किया. जब उनसे पूछा गया कि क्रुर सिंह के किरदार से जुड़ी कोई याद बताएं तो उन्होंने बताया कि जब वह बाजार में निकलते थे तो लोग उन्हें चेहरे से नहीं पहचानते थे क्योंकि सीरियल में गेट-अप अलग होता था. लेकिन उनकी आवाज सुनते थे तो लोग झट से पलटकर पूछते थे.