हाल के दिनों में बॉलीवुड की कई फिल्मों को अलग-अलग कारणों से बॉयकॉट ट्रेंड का सामना करना पड़ा है. कुछ फिल्मों ने कथित तौर पर दर्शकों की धार्मिक या सामुदायिक भावनाएं आहत कीं. कुछ फिल्मों ने खास पेशों कथित तौर पर अनुचित चित्रण किया. तो कुछ फिल्मों पर फूहड़ भाषा के इस्तेमाल के आरोप लगे.
इन सब कारणों के बावजूद ये फिल्में सेंसर बोर्ड की कैंची से बचते निकलते हुए बड़े पर्दे तक पहुंचने में सफल हुई हैं. अब सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) के चेयरपर्सन प्रसून जोशी ने बताया है कि वह इस पद पर रहते हुए फिल्मों पर किस तरह विचार करते हैं.
फिल्मों को सेंसर करने पर क्या बोले प्रसून जोशी?
प्रसून जोशी ने साहित्य आजतक 2024 के मंच से कहा, "मैं एक क्रिएटिव इंसान हूं. मुझे बनाना पसंद है. क्रिएटिव लोग अपना पॉइंट ऑफ व्यू शेयर करते हैं. जब मुझे सीबीएफसी की जिम्मेदारी मिली तो (मैं जानता था कि फिल्मों में) पॉइंट ऑफ व्यूज होते हैं. समाज और लोग अलग-अलग सोच रखते हैं."
जोशी ने लोगों के अलग-अलग दृष्टिकोण पर कहा, "एक चीज पर दो फिल्म मेकर्स के विचार भी अलग-अलग हो सकते हैं. नदी में बहने वाले इंसान को नदी आक्रामक लगती है, लेकिन उसे बाहर से देखने वाले को वह शांत मालूम होती है. सीबीएफसी के प्रमुख के तौर पर मैंने कोशिश की है कि मैं अपने विवेक का इस्तेमाल करूं. और विवाद की जगह संवाद को आगे रखूं."
उन्होंने कहा, "मैं और आप अगर आंखों में आंखें डालकर बात कर लें तो बहुत सी चीजों के हल निकल आते हैं. कई ऐसी फिल्में थीं जिनपर विवाद हुआ, मुझे लगता था कि वे फिल्में बाहर नहीं आ सकेंगी लेकिन वे बाहर आईं."
ओटीटी की फूहड़ भाषा पर क्या बोले जोशी?
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के तीव्र उदय के बीच ये सवाल भी उठे हैं कि इसपर रिलीज होने वाली फिल्मों और सीरीज को सर्टिफिकेट कैसे मिलता है. चेयरपर्सन जोशी ने सफाई दी कि इस मंच पर रिलीज होने वाले कंटेंट की जिम्मेदारी सीबीएफसी के हाथ में नहीं होती है.
जोशी ने कहा, "लोग ओटीटी को लेकर शिकायत करते हैं कि ओटीटी पर अपशब्दों का प्रयोग हो रहा है. पहले तो मैं साफ कर दूं कि ओटीटी सीबीएफसी के अंडर नहीं आता. ओटीटी पर रिलीज होने वाली चीजों को अलग से सर्टिफिकेट मिलता है. दूसरा, मैं मानता हूं कि गालियों का इस्तेमाल आलसी लोग करते हैं."
उन्होंने कहा, "हर भावना के लिए हिन्दी में एक शानदार शब्द है. अगर आपका शब्दकोश छोटा है तो आप बड़ी आसानी से गालियों पर उतर आएंगे. लेकिन जो लोग भाषा से प्यार करते हैं वे जरूरत के लिए शब्द निकालते हैं."