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Shamshad Begum Birth Anniversary: कभी बुर्के में गाती थीं शमशाद बेगम, और फिर बनीं अपने जमाने की सबसे महंगी गायिका

शमशाद बेगम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की पहली प्लेबैक सिंगर्स में से एक थीं. अपनी अलग आवाज और रेंज के लिए जानी जाने वाली, शमशाद ने हिंदी, बंगाली, मराठी, गुजराती, तमिल और पंजाबी भाषाओं में 5,000 से अधिक गाने गाए,

शमशाद बेगम (14 अप्रैल 1919 – 23 अप्रैल 2013) शमशाद बेगम (14 अप्रैल 1919 – 23 अप्रैल 2013)
हाइलाइट्स
  • स्कूल के प्रिंसिपल ने पहचानी प्रतिभा

  • बुर्का पहनकर गाती थीं शमशाद 

शमशाद बेगम का नाम भले ही आज की पीढ़ी के लिए जाना-पहचाना न हो, लेकिन उनके गीतों का हिंदी म्यूजिक इंडस्ट्री के में एक महत्वपूर्ण स्थान है. साल 1947 की पतंग से "मेरे पिया गए रंगून", 1949 की सीआईडी ​​से "लेके पहला पहला प्यार" और "कहीं पे निगाहें", 1951 की बहार से "सइयां दिल में आना रे", 1954 की आर पार से "कभी आर कभी पार", 1957 की नया दौर का "रेशमी सलवार", 1957 की मदर इंडिया का "होली आई रे कन्हाई", 1960 की फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म का "तेरी महफ़िल में" जैसे गानों के लिए वह आज भी जानी जाती हैं. 

शमशाद बेगम हिंदी फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर में बड़ी हिट रहीं. 1968 की फिल्म किस्मत से "कजरा मोहब्बत वाला" गाना उनके आखिरी हिट गानों में से एक था. पांच भाषाओं में 5000 से अधिक गाने गाने के बावजूद, शमशाद ने 1960 के दशक के अंत में संन्यास ले लिया क्योंकि उन्हें इंडस्ट्री की पॉलिटिक्स में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अपने एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा था कि इंडस्ट्री बदलने लगी थी और किसी के काम से ज्यादा महत्व लोग चालाकी और राजनीति को दे रहे थे. ऐसे में, उन्होंने इससे निकलना ही बेहतर समझा. 

आज हम आपको बता रहे हैं अपने जमाने की सबसे महंगी गायिका शमशाद बेगम के म्यूजिक इंडस्ट्री में सफर के बारे में. 

स्कूल के प्रिंसिपल ने पहचानी प्रतिभा
शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, 1919 को लाहौर (अब पाकिस्तान में) में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. शमशाद की प्रतिभा को पहली बार उनके प्रिंसिपल ने देखा था जब वह 1924 में प्राथमिक विद्यालय में थीं. उनकी आवाज़ से प्रभावित होकर, उन्हें कक्षा की प्रार्थना की प्रमुख गायिका बना दिया गया. 10 साल की उम्र में, उन्होंने धार्मिक समारोहों और पारिवारिक विवाहों में लोक गीत गाना शुरू कर दिया था. 

शमशाद बेगम ने कोई औपचारिक संगीत प्रशिक्षण नहीं लिया था. 1931 में, जब वह बारह वर्ष की थीं, तब उनके चाचा उन्हें लाहौर के संगीतकार गुलाम हैदर के साथ ऑडिशन के लिए जेनोफोन म्यूजिक कंपनी में ले गए. उनसे प्रभावित हैदर ने उनके साथ बारह गानों का कॉन्ट्रैक्ट किया. 

बुर्का पहनकर गाती थीं शमशाद 
बताया जाता है कि शमशाद के पिता मिया हुसैन बक्श, बहुत रूढ़िवादी थे. उन्होंने अपनी बेटी को इस शर्त पर गाने की अनुमति दी कि वह बुर्का पहनकर रिकॉर्ड करेंगी और  हालांकि पहले अप्रशिक्षित, शमशाद को अब साउनकी कोई तस्वीर नहीं खींची जाएगी. इसके बाद उन्होंने 1937 और 1939 के बीच संगीत का प्रशिक्षण लिया. हालांकि, उन्हें लोकप्रिय सफलता तब मिली जब उन्होंने 1937 में पेशावर और लाहौर में ऑल इंडिया रेडियो (AIR) पर गाना शुरू किया. 

उनकी आवाज सुनकर निर्माता दिलसुख पंचोली ने अपनी एक फिल्म में उन्हें रोल की पेशकश की, लेकिन शमशाद के पिता ने धमकी दी कि अगर वह कैमरे के सामने आती हैं, तो वह उनका गाना भी बंद कर देंगे. इस कारण, शमशाद ने उस समय कभी भी तस्वीरें नहीं खिंचाईं. 

बंटवारे में नहीं गईं पाकिस्तान 
साल 1944 में उन्हें मौका देने वाले गुलाम हैदर बॉम्बे चले गए और शमशाद भी उनके साथ उनकी टीम के सदस्य के रूप में गईं. तब वह अपने परिवार को छोड़कर अपने चाचा के साथ रहने लगीं. बंटवारे के बाद गुलाम हैदर पाकिस्तान चले गए लेकिन शमशाद मुंबई में ही रहेीं. शमशाद 1940 के दशक और 1960 के दशक की शुरुआत के बीच एक राष्ट्रीय स्टार बन गईं. 

उनकी आवाज़ नूरजहां, मुबारक बेगम, सुरैया, सुधा मल्होत्रा, गीता दत्त और अमीरबाई कर्नाटकी जैसी अपने समकालीन साथियों से अलग थी. हिंदी फिल्म उद्योग में उनका समय 1940 से 1955 तक और फिर 1957 से 1968 तक था जब वह टॉप पर रहीं. शमशाद ने 1946 से 1960 तक नौशाद, ओ.पी. नैय्यर, सी. रामचंद्र, और एस.डी. बर्मन सहित संगीतकारों के लिए बड़े पैमाने पर गाया. 

सबसे महंगी महिला गायिका 
संगीत निर्देशक एसडी बर्मन ने शमशाद द्वारा गाए गए ट्रैक के साथ देश भर में ख्याति हासिल की और इसके पहले तक बर्मन इंडस्ट्री में ज्यादा स्थापित नहीं थे. लेकिन शमशाद की आवाज ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई. ओपी नैय्यर के करियर में भी शमशाद का योगदान रहा. शमशाद 1940 से 1955 तक और फिर 1957 से 1964 तक मदर इंडिया के बाद सबसे अधिक वेतन पाने वाली महिला गायिका थीं. 

लेकिन 1955 में उनके पति की आकस्मिक मृत्यु के बाद, शमशाद मानो वैरागी हो गईं. एक साल के लिए उन्होंने रिकॉर्डिंग सहित गायन असाइनमेंट स्वीकार करना बंद कर दिया. साल 1955 में उन्होंने अपने गाने रिकॉर्ड करना बंद कर दिया था. इस मोड़ पर, महबूब खान ने 1957 में उनसे संपर्क किया और कहा कि वह मदर इंडिया में नरगिस के लिए एक दमदार आवाज चाहते हैं. अपने करियर में लौटने के बाद उन्होंने जो पहला गाना गाया, वह मदर इंडिया के लिए "पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली."

साल 1970 तक उन्होंने फिल्म संगीत से दूरी बना ली. उका कहना था कि इस समय से इंडस्ट्री में पॉलिटिक्स का दौर शुरू हो गया था. इंसान की काबिलियत को कम आंका जा रहा था इसलिए उन्होंने इससे दूर रहने में भलाई समझी. साल 2013 में शमशाद बेगम ने दुनिया को अलविदा कहा.