संगीत की देवी और स्वर कोकिला शारदा सिन्हा का आज ही के दिन 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले में हुआ था. उनके पिता सुखदेव ठाकुर शिक्षा विभाग में अधिकारी थे. शारदा को बचपन से ही संगीत के प्रति काफी रुचि रही. संगीत के प्रति उनकी लगन देखकर पिता ने भारतीय नृत्य कला केंद्र में प्रवेश दिला दिया था. हिंदी, मैथिली, भोजपुरी, बज्जिका भाषाओं में कई सदाबहार गीत गाने वालीं इस लोकगायिका को भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया है. आइए आज इस स्वर कोकिला के बारे में जानते हैं.
शुरू में सास थीं गायिकी के खिलाफ
संगीत के प्रति उनकी लगन देखकर पिता ने भारतीय नृत्य कला केंद्र में प्रवेश दिला दिया था. संगीत सीखने के साथ उन्होंने स्नातक भी कर ली. इसके बाद राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक डॉ. बृजकिशोर सिन्हा के साथ उनकी शादी हो गई. उन्होंने कई इंटरव्यू में बताया कि उनकी सासू मां उनकी गायिकी के खिलाफ थीं. वह नहीं चाहती थीं कि उनकी बहु कहीं पर गाने जाएं. गांव की ठाकुरबाड़ी में भी वह उन्हें नहीं गाने देती थीं. हालांकि कुछ वक्त बाद उनकी सास मान गई थीं और वर्ष 1971 में उनके संगीतमय जीवन में बड़ा बदलाव आया.
1971 में एचएमवी ने रिकार्ड किए गाने
शारदा सिन्हा के संगीतमय जीवन में बड़ा बदलाव 1971 में आया. उन्होंने बताया है कि एचएमवी ने प्रतिभा खोज प्रतियोगिता आयोजित की. पति के साथ आडिशन देने लखनऊ गईं लेकिन वहां भी बाधा खड़ी थी. ट्रेन पहुंचने में देर तो हुई ही, आडिशन वाले जगह पर धक्का-मुक्की भी काफी थी.
आडिशन दिया लेकिन एचएमवी के रिकार्डिंग मैनेजर जहीर अहमद ने किसी को सेलेक्ट नहीं किया लेकिन पति ने पूरे विश्वास से जहीर अहमद से दोबारा टेस्ट लेने का आग्रह किया. उन्होंने गाया, यौ दुलरुआ भैया... यह संयोग था कि इसी क्रम में एचएमवी के एक बड़े अधिकारी वहां पहुंचे. आवाज सुनते ही उन्होंने कहा कि, इनके गाने रिकार्ड करिए. गाने रिकार्ड हुए तो फिर पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. उनके गाने गांव-गांव, घर-घर में गूंजने लगे.
भोजपुरी को दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान
भोजपुरी गाने को वैश्विक पटल पर पहचान दिलाने वाली पद्मश्री शारदा सिन्हा ही एक ऐसी शख्स़ियत हैं, जिन्हें लोकगीतों से अलग नहीं किया जा सकता. शारदा कहती हैं कि उन्होंने कभी हिसाब नहीं लगाया था कि वे कितने सालों से गा रहीं है. उन्हें सिर्फ इतना पता है कि उन्होंने संगीत के साथ-साथ जीना सीखा है. शारदा सिन्हा के मुताबिक संगीत को सीखने और सिखाने में उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा गुज़ारा है, लेकिन आज भी वो खुद को संगीत का छात्र ही मानती हैं. चाहे बात शादी की हो या महापर्व छठ की. इनके गीतों के बिना आयोजन अधूरा माना जाता है. इनकी आवाज ही माहौल बना देती है.
शारदा सिन्हा के चर्चित गाने
1. रामजी से पूछे जनकपुर के नारी
2. केलवा के पात पर उगेलन सुरज देव
3. कांचहि बांस के बहंगिया
4. आन दिन उगइ छ हो दीनानाथ
5. कहे तोसे सजना तोहरी सजनिया
6. बाबुल जो तूने सिखाया जो तुमसे पाया
7. तार बिजली से पतले हमारे पिया
8. निरमोहिया
सलमान खान की सुपरहिट फिल्म में गाने के लिए मिले थे महज 76 रुपए
शारदा सिन्हा ने हिंदी में काफी कम गाने गाए हैं. बॉलीवुड में उनके गाए सभी गानों को दर्शकों का खूब प्यार मिला है. हिंदी में गाए उनके सभी गाने सदाबहार हैं. बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान और भाग्यश्री की चर्चित फिल्म 'मैंने प्यार किया' में 'कहे तोसे सजना तोहरी सजनिया' आज भी दर्शकों का पसंदीदा गाना है.
बताया जाता है कि शारदा सिन्हा को इस गाने के लिए महज 76 रुपए फीस मिली थी. सलमान खान की दूसरी सुपरहिट फिल्म 'हम आपके हैं कौन' का 'बाबुल जो तूने सिखाया' गाना भी उन्होंने गाया था. यह गाना काफी लोकप्रिय है. 2012 में रिलीज हुई फिल्म 'गैंग्स आफ वासेपुर' में 'तार बिजली से पतले हमारे पिया' को भी उन्होंने अपनी खूबसूरत आवाज दी है. उनका यह गाना भी दर्शकों की जुबां पर चढ़ गया. वेबसीरीज 'महारानी' में उनके 'निरमोहिया' गाने को खूब पसंद किया गया.
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