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The Elephant Whisperers Guneet Monga: पड़ोसी से पैसे मांग कर शुरू किया था करियर, आंखें नम कर देगी एलिफेंट व्हिस्परर्स की प्रोड्यूसर गुनीत मोंगा की कहानी

95वें ऑस्कर अवॉर्ड में भारत ने कामयाबी के झंडे गाड़ दिए. ऐसा पहली बार हुआ जब किसी भारतीय प्रोडक्शन को ऑस्कर अवॉर्ड से नवाजा गया है. शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म कैटगरी में द एलिफैंट व्हिसपर्स ने बाजी मारी है. इस फिल्म के लिए अवार्ड का एनसाउंसमेंट करते हुए दीपिका पादुकोण भावुक हो गईं. गुनीत मोंगा की इस शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म में इंसान और जानवरों के भावनात्मक रिश्ते को स्क्रीन पर बेहतरीन ढंग से उतारा गया है. प्रोड्यूसर गुनीत मोंगा की कहानी काफी दिल छू लेने वाली है, जिसे सुनकर आपकी आंखों में आसू आ जाएंगे.

गुनीत मोंगा गुनीत मोंगा
हाइलाइट्स
  • 4 घंटे सोकर दिन-रात किया काम

  • जब एक ट्रिप के लिए पिता ने बेच दिया था कंगन

क्या आप जानते हैं कि हीरा कैसे बनता है. दरअसल हीरे को कई डिग्री सेल्सियस पर तपा कर हीरा बनाया जाता है. तब जाकर उसकी कीमत करोड़ों की होती है, उससे पहले वो कोयले का एक टुकड़ा होता है. दोस्तों इंसान का जीवन भी ऐसा ही होता है. आज जो कहानी हम आपको सुनाने वाले हैं, वो भी कुछ ऐसी ही है. आज हम बात कर रहे ऑस्कर विनिंग डॉक्यूमेंट्री द एलिफेंट व्हिस्परर्स की प्रोड्यूसर गुनीत मोंगा की, जिन्होंने काफी तप ये अपनी जिंदगी में ये मुकाम हासिल किया है. 

बंद दरवाजों के पीछे कुछ और थी गुनीत की कहानी
तो गुनीत की कहानी शुरू होती है, एक पंजाबी मिडिल क्लास फैमिली से, जो साउथ दिल्ली के एक बड़े से घर में रहता था. गुनीत का घर बेशक काफी बड़ा था, लेकिन उस बड़े से घर में उनके परिवार को जो कमरा मिला था, वो काफी छोटा था. 

दुनिया के लिए गुनीत की फैमिली एक परफेक्ट फैमिली थी, लेकिन बंद दरवाजों के पीछे की कहानी कुछ और ही थी. परिवार के मतभेद के बीच में उनकी मां सबसे ज्यादा पिस रही थी. मानसिक और शारीरिक दोनों तौर पर गुनीत के मां को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा था. हद तो तब हो गई जब एक बार उनके पिता के भाइयों और उनके परिवार ने उनकी मां को जिंदा जलाने की कोशिश की. इस हादसे से गुनीत के पिता इतना डर गए, की उन्होंने गुनीत को लेकर फौरन वो घर छोड़ दिया, और पुलिस कंप्लेंट भी की. 

वहां के निकलकर गुनीत के मां-बाप ने एक बार फिर से अपनी नई दुनिया बनाई. उस नई दुनिया में नए सपने थे, एक आशा की किरण थी, वापस से सपने देखने का हौसला था. वहां पर रहकर एक बार फिर से गुनीत की मां ने सपने देखने की हिम्मत जुटाई. गुनीत की मां हमेशा से एक घर बनाना चाहती थीं, जिसमें तीन कमरें हों, और उस घर की चौखट तीन सीढ़ियां चढ़कर आती हो. उसके बाद गुनीत ने ठान लिया था, कि उन्हें अपनी मां के लिए ऐसा ही घर बनाना है. 

मां का सपना पूरा करने के लिए 16 साल की उम्र से किया काम
तो गुनीत ने 16 साल की उम्र से ही काम करना शुरू कर दिया. स्कूल के साथ-साथ उन्हें सब कुछ मैनेज किया. सड़कों पर समान बेचने के साथ-साथ, पीवीआर में अनाउंसर, एक डीजे, छोटे-मोटे फंक्शन में एंकरिंग, ये सब करके गुनीत ने पैसे इकट्ठा किए. कॉलेज के दिनों में गुनीत ने मुंबई जाना शुरू किया. एक को-ऑर्डिनेटर की तरह काम शुरू करके गुनीत जल्द ही प्रोडक्शन मैनेजर बन गईं. गुनीत जो भी पैसे कमाती, उसे अपने परिवार के सपनों को पूरा करने के लिए दे देती थीं. सारे पैसे इकट्ठा करके गुनीत के परिवार ने एक घर बुक किया. उस वक्त उनके परिवार को अपनी कहानी की हैप्पी एंडिंग लग रही थी. 

जब सब कुछ बिखर गया...
लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था. जब तक वो घर बनकर तैयार हुआ, तब तक 6 महीने के अंतराल में गुनीत ने अपने मां-बाप दोनों को खो दिया. गुनीत की मां को थ्रोट कैंसर हो गया, और उनके पिता किडनी फेल्योर के कारण दुनिया को अलविदा  कह गए. उस वक्त गुनीत के मां के सपनों का घर तो तैयार था, पर वहां रहने वाला कोई नहीं था. लेकिन उनकी जिंदगी के इस हादसे के बाद भी वो कभी रुकी नहीं.

4 घंटे सोकर दिन-रात किया काम
गुनीत ने अपने बैग पैक किए, घर बेच दिया, और दोबारा दोगुनी एनर्जी  के साथ एक बार फिर से काम करने मुंबई आ गईं. गुनीत ने अपनी सारी एनर्जी फिल्मों में लगानी शुरू कर दी. धीरे-धीरे उनका सपना उनके डायरेक्टर का सपना बन गया. एक वक्त ऐसा आया जब गुनीत पूरे दिन काम करती थीं, और केवल 4 घंटे सोती थी. क्राउडफंडिंग करना, इंटरनेशनल सेल्स देखना, हर चीज काफी मुश्किल थीं, लेकिन उन्हें इन सब में मजा आने लगा. क्योंकि वो हमेशा अपने मां-बाप के मुंह से तारीफ सुनना चाहती थीं.  

जब एक ट्रिप के लिए पिता ने बेच दिया था कंगन
ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे को एक वाक्या बताते हुए गुनीत याद करती हैं, कि एक बार उनके पिता ने उनके पहले अमेरिका के स्कूल ट्रिप के लिए अपना सोने का कड़ा बेच दिया था. गुनीत बताती हैं कि उनके पिता चाहते थे कि वो पूरी दुनिया देखें. उनके लिए  चाहें जितना भी मुश्किल हो, उनके पिता उनकी हर ख्वाहिश का ख्याल रखते थे. गुनीत कहती हैं, इसलिए मेरे सबसे खुशी के पलों में- चाहे वह ऑस्कर के लिए रेड कार्पेट पर चलना हो या जब हमने गैंग्स ऑफ वासेपुर और द लंचबॉक्स का निर्माण किया हो.. या जब मैंने अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस लॉन्च किया हो... मैं चाहती थी कि मेरे माता-पिता मेरे साथ हों.

लेकिन मुझे पता है कि वे जहां हैं वहां शांति से हैं. किसी दिन मैं उन्हें फिर से देखूंगी और वो मेरी पीठ थपथपाएंगे और 'शाबाश' करेंगे. लेकिन अभी के लिए, मैं जीवन से गुजर रही हूं, उन सभी पलों को इकट्ठा कर रही हूं जो उन्हें बेहद खुश करेंगे, और मुझे उम्मीद है कि वे इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि आखिरकार मैंने सपने उधार लेना बंद कर दिया है. अब मैं जो हूँ वो मेरे लिए एक सपने के सच होने जैसा है.