मुकेश - 'द मैन ऑफ गोल्डन वॉइस' आज भी अपने जादुई गानों से हमारे दिलों पर राज करते हैं. महान गायक ने 40 से 70 के दशक तक बॉलीवुड फिल्मों में कई गानों में अपनी सुनहरी आवाज दी. पीढ़ी दर पीढ़ी, मुकेश की आवाज ने संगीतकारों और गायकों को प्रेरित किया और उनके गीतों की एक अंतहीन सूची ने हमारे दिलों में अपना स्थायी निवास बना लिया. 'जाने कहां गए वो दिन.., 'कभी कभी मेरे दिल में..,' सावन का महीना आदि उनके कुछ बेहतरीन गाने आज भी कानों को सुकून देते हैं. मुकेश चंद माथुर, जिन्हें मुकेश के नाम से बेहतर जाना जाता है, एक बेहतरीन प्ले बैक सिंगर थे. मुकेश को हिंदी फिल्म उद्योग के सबसे लोकप्रिय और प्रशंसित पार्श्व गायकों में से एक माना जाता है. उनके द्वारा जीते गए कई नामांकन और पुरस्कारों के बीच, फिल्म रजनीगंधा (1973) के उनके गीत "कई बार यहीं देखा है" ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ मेल प्लेबैक सिंगर का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिलाया.
1300 से अधिक गाने गा चुके लीजेंड्री सिंगर मुकेश कभी राजकपूर की आवाज माने जाते थे. 40 के दशक से अपनी गायकी का सफर शुरू करने वाले मुकेश को गायकी का ट्रैजडी किंग भी कहा जाता था. सिंगर मुकेश का जन्म दिल्ली के एक माथुर कायस्थ परिवार में 22 जुलाई 1923 को हुआ था. उनके दस भाई-बहन थे. बचपन से ही उनका रुझान संगीत में था. वो कुंदन लाल सहगल के गीत उनकी स्टाइल में ही गाते थे.
एक्टर-प्रोड्यूसर मोतीलाल ने दिया पहला मौका
संगीत से अत्यधिक प्रेम होने के कारण मुकेश ने दसवीं के बाद स्कूल छोड़ दिया. उन्होंनेदिल्ली लोक निर्माण विभाग में सहायक सर्वेयर की नौकरी कर ली जहां उन्होंने सात महीने तक काम किया. एक बार एक शादी में भाई-बहनों के कहने पर मुकेश ने सहगल साहब का गाना सुनाया. उस फंक्शन में एक्टर-प्रोड्यूसर मोतीलाल भी आए थे. मोतीलाल को मुकेश का गाना बहुत अच्छा लगा और उन्होंने उन्हें मुंबई आने का ऑफर दिया. मोतीलाल की कोई संतान नहीं थी. इस वजह से वो मुकेश को अपने सगे बेटे जैसा मानते थे. उन्होंने ताउम्र मुकेश की परवरिश एक बेटे की तरह की. जब मुकेश पहली बार मुंबई आए मोतीलाल ने तब ही उन्हें बोल दिया था कि तुम्हें हर एक सुख-सुविधा मिलेगी. खाना मिलेगा, कपड़े मिलेंगे मगर खबरदार एक रुपया भी मुझसे मांगा तो. तुम्हें इंडस्ट्री में अपनी पहचान खुद के दम पर बनानी पड़ेगी. पैसे भी खुद ही कमाने होंगे. उन्होंने मुकेश को पंडित जगन्नाथ प्रसाद से संगीत की शिक्षा दिलवाई. मुकेश ने बड़ी मेहनत संगीत के गुर सीखे.
रिकॉर्डिंग के दिन रखते थे उपवास
मुकेश अपनी गायिकी को लेकर इस कदर समर्पित थे कि जिस दिन किसी गाने की रिकॉर्डिंग होती थी वो उस दिन खाना नहीं खाते थे. उस दिन उनका उपवास रहता था. इसके पीछे उनका मकसद अपने सुरों को परफेक्ट करना था. इसी दिन वो मात्र गरम दूध और गरम पानी का सेवन करते थे. वैसे मुकेश खाने-पीने के काफी ज्यादा शौकीन थे.
अभिनेता बनने का सपना रह गया अधूरा
1948 में नौशाद के संगीत निर्देशन में फिल्म अंदाज के बाद मुकेश ने गायकी का अपना अलग अंदाज बनाया. मुकेश हमेशा से ही एक बेहतरीन सिंगर के साथ अच्छे एक्टर भी बनना चाहते थे. बतौर अभिनेता 1953 में रिलीज हुई 'माशूका' और 1956 में रिलीज फिल्म 'अनुराग' की विफलता के बाद उन्होंने पुन: गाने की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया. मुकेश ने अपने तीन दशक के सिने कैरियर में 200 से भी ज्यादा फिल्मों के लिए गीत गाए. गीतों के लिए मुकेश को चार बार फिल्म फेयर के बेस्ट प्लेबैक सिंगर के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
हार्ट अटैक से हुई मौत
मुकेश यूएसए टूर पर थे जब उनका निधन हुआ. 53 साल के मुकेश की हार्ट अटैक से मौत हुई थी. तब वो अपने करियर में पीक पर थे लेकिन चंद मिनटों में सबकुछ खत्म हो गया. उनके करीबी मित्र राजकपूर को जब उनकी मौत की खबर मिली तो उनके मुंह से यही निकला, मुकेश के जाने से मेरी आवाज और आत्मा दोनों चली गई.