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Ustad Rashid Khan: नाना उस्ताद निसार खान से सीखे मौसिकी के गुर... 11 साल की उम्र में पहला कॉन्सर्ट...जानिए म्यूजिक इंडस्ट्री के उस्ताद राशिद खान के बारे में

अपने नाना उस्ताद निसार हुसैन खान (1909-1993) से गायकी के गुर सीखने वाले उस्ताद राशिद खान 'जब वी मेट', 'राज 3', 'कादम्बरी', 'शादी में जरूर आना', 'मंटो', 'मीटिन मास' जैसी फिल्मों में गा चुके हैं. महज 11 साल की उम्र में उन्हें पहली बार किसी कॉन्सर्ट में गाने का मौका मिला था.

Ustad Rashid Khan Ustad Rashid Khan
हाइलाइट्स
  • नाना उस्ताद निसार खान से सीखे मौसिकी के गुर

  • 11 साल की उम्र में मिला पहला कॉन्सर्ट

कहा जाता है जब तानसेन गाते थे तो बारिश होने लगती थी. उनका संगीत इतना गंभीर था कि खुद बादल गरजने लगते थे. ठीक ऐसे ही जब उस्ताद राशिद खान (Ustad Rashid Khan) के सुर छिड़ते थे तो हर कोई दीवाना हो जाता था. तानसेन की तरह ही संगीत की साधना करने वाले राशिद खान जब गाते थे तो सुध-बुध खो देते थे. हिंदुस्तानी संगीत में खयाली गायिकी के लिए जाने जाने वाले उस्ताद राशिद खान का ठुमरी, भजन और तराना में आज तक भी कोई टक्कर नहीं ले सका है. उस्ताद राशिद खान मशहूर संगीतकार तानसेन की संगीत विरासत के 31वीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी के रूप में जाने जाते हैं. संगीत सम्राट राशिद खान का कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद मंगलवार को कोलकाता के एक अस्पताल में निधन हो गया. 

उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मे, राशिद खान का गाना 'आओगे जब तुम ओ साजना..' आज भी हर किसी की जुबान पर है. अपने नाना उस्ताद निसार हुसैन खान (1909-1993) से गायकी के गुर सीखने वाले राशिद खान 'जब वी मेट', 'राज 3', 'कादम्बरी', 'शादी में जरूर आना', 'मंटो', 'मीटिन मास' जैसी फिल्मों में गा चुके हैं. 

उस्ताद राशिद खान
उस्ताद राशिद खान

राशिद खान के संगीत के इस सफर में मोड़ 1980 में आया. 10 साल की उम्र में राशिद खान अपने नाना के साथ कोलकाता आ गए थे. वहीं राशिद खान के जीवन के संगीत सुरों को पहली बार महज 11 साल की उम्र में पहचान मिली, जब उन्हें पहली बार किसी कॉन्सर्ट में गाने का मौका मिला था. उनकी संगीत प्रतिभा को सबसे पहले उनके चाचा गुलाम मुस्तफा खान ने पहचाना, जिन्होंने मुंबई में उन्हें शुरुआती ट्रेनिंग दी. 1978 में, उन्होंने दिल्ली में आईटीसी संगीत कार्यक्रम में मंच की शोभा बढ़ाई. इसके बाद, अप्रैल 1980 में, जब निसार हुसैन खान कलकत्ता में आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी (एसआरए) में चले गए, तो 14 साल की उम्र में राशिद खान भी अकादमी का हिस्सा बन गए. अपने नाना के साथ, उन्होंने खुद को उस सांस्कृतिक विरासत में डुबो दिया जो उनके आगे की जिंदगी में संगीत के लिए कैनवास बन गई. 1994 तक संगीत की दुनिया में राशिद खान की अपनी औपचारिक पहचान हो गई.

रामपुर-सहसवान गायकी से ताल्लुक रखने वाले राशिद खान धीमी गति, गूंजती आवाज और सुर-ताल से लोगों का मन मोह लेते थे. उनका संगीत लोगों को उनके नाना-चाचा की शैली की याद दिलाता है. वहीं, उस्ताद राशिद खान की सूफी फ्यूजन रिकॉर्डिंग "नैना पिया से" जैसी खूबसूरत रचनाएं आज भी याद की जाती हैं. 

पंडित भीमसेन जोशी के साथ उस्ताद राशिद खान
पंडित भीमसेन जोशी के साथ उस्ताद राशिद खान

राशिद खान को कई पुरस्कार भी मिले. 2006 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. उसी साल उस्ताद राशिद खान को संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, फिर 2010 में उन्हें ग्लोबल इंडियन म्यूजिक अकेडमी अवार्ड से भी नवाजा गया. वहीं 2012 में महा संगीत सम्मान अवार्ड और फिर 2013 में मिर्ची अवार्ड से भी उन्हें सम्मानित किया गया. 

संगीत के दिग्गज ने भले ही आज दुनिया को अलविदा कह दिया हो, लेकिन उनकी विरासत कालजयी है… उस्ताद राशिद खान…. भारत की समृद्ध संगीत विरासत का एक अमिट हिस्सा, जो युगों-युगों तक कायम रहेगा.