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इस तरह बना आयकॉनिक गाना 'जुम्मा-चुम्मा', वॉइस ऑफ अमिताभ बच्चन कहलाने वाले सुदेश भोसले ने Exclusive बातचीत में बताई इनसाइड स्टोरी 

सुदेश भोसले की गिनती हिंदी सिनेमा के बेहतरीन गायकों में होती है. जहां वो इतने एक्टर्स की आवाज बन चुके हैं वहीं उनकी खुद की आवाज के करोड़ों लोग दीवाने हैं. उन्होंने जुम्मा-चुम्मा, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों, लाल दुपट्टे वाली अपना नाम तो बता जैसे आइकोनिक गाने गाए हैं. सुदेश भोसले ने GNT डिजिटल से बात करते हुए जुम्मा चुम्मा गाना कैसे बना इसके बारे में बताया.

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हाइलाइट्स
  • ऑटिस्ट का जिम्मा है कि वो अपनी आर्ट को नीचे न जाने दे 

  • मजाक-मजाक में की थी अमिताभ बच्चन की आवाज रिकॉर्ड  

90 के दशक ने हमें कई आयकॉनिक गाने दिए हैं. इन गानों नें हमारे दिलो-दिमाग पर ऐसी छाप छोड़ी है कि आज भी अगर हम इन्हें सुन लेते हैं तो एकदम फ्रेश हो जाते हैं. इन्होंने हमारे और आने वाली कई पढियों के जेहन में छाप छोड़ने का काम किया है. यही वजह है कि ये दशक बॉलीवुड म्यूज़िक के लिए बेस्ट माना जाता है. इन बेहतरीन सिंगर्स की लिस्ट में कुंदन लाल सहगल, आर डी बर्मन, किशोर कुमार, आशा भोसले, लता मंगेशकर जैसे कई लोग शामिल हैं. हालांकि, कई ऐसे सिंगर्स भी हैं जिन्होंने हिंदी सिनेमा को एक नया आयाम देने में अपनी भूमिका निभाई. इन्हीं में से एक हैं सुदेश भोसले. जिन्हें अमिताभ बच्चन की आवाज भी कहा जाता है.  

GNT डिजिटल ने उस दौर की बेहतरीन आवाजों में से एक सुदेश भोसले जी से बात की. उन्होंने बताया कि आखिर कैसे वे अमिताभ बच्चन की आवाज कहलाने लगे. अपने सफर के बारे में वे बताते हैं कि जब वे स्कूल में थे तब वे डबिंग करते थे. उस दौर के बड़े बड़े एक्टर्स की आवाजें वे आसानी से निकाल लेते थे. 

सुदेश भोसले बताते हैं, “मैं 80 के दशक में कुछ पुराने गायकों की आवाज में अपने आप गाने लगा था. जिसमें सहगल साहब, आर डी बर्मन, सचिन दा, किशोर दा आदि. अचानक कुछ एक्टर्स की आवाजे आने लगीं, तो मैं ये करने लगा. जिसके बाद मुझे आसपास में पूजा या किसी इवेंट में लोग बुलाने लगे. मैंने मुकद्दर का सिकंदर फिल्म देखी थी और जब मैं स्कूल गया तो अचानक मैंने एक से अमिताभ बच्चन की आवाज में कहा की ऐ जरा दरवाजा खोल दे. तो किसी ने सुना और वो बोला कि ये आवाज अमिताभ बच्चन जैसी लग रही है. मैंने कहा नहीं यार.”

मजाक-मजाक में की थी अमिताभ बच्चन की आवाज रिकॉर्ड  

वे आगे कहते हैं, “एक दिन मेरा दोस्त रिकॉर्डर लेकर आया और वो देव साहब का फैन था. उसने देव साहब की आवाज में मुझसे सवाल किया कि और बच्चन साहब क्या चल रहा है आज कल. तो मैंने बच्चन साहब कि आवाज में कहा कि अरे भाईसाहब कुछ नहीं बस शूटिंग वगैरह चल रही है. तो उसने कहा कि आजकल आपके बारे में बहुत कुछ सुनते हैं. तो मैंने फिर से बच्चन साहब की आवाज में कहा कि हां यार ये मीडिया वाले कुछ भी बोलते हैं. तो हमने ये मजाक में रिकॉर्ड किया था और जब मैंने ये सुना तो मुझे भी लगा कि हां शायद थोड़ी थोड़ी ऐसी है. तब मैंने बच्चन साहब की जो फिल्में उस वक्त आई थीं उनकी कैसेट लाया और उनके डायलॉग कॉपी पर लिखकर याद किए और बाथरूम के कोने में जाकर घंटों प्रैक्टिस करता था.कभी स्टेज पर भी करता था तो लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिलता था."

किशोर दा को मानता हूं अपना गुरु

सुदेश भोसले बताते हैं कि 70 और 80 के दशक में कॉमेडियन बहुत थे जो दिलीप कुमार, अशोक कुमार, ओमप्रकाश जैसे एक्टर्स की आवाज निकालते थे लेकिन अमिताभ बच्चन को पहली बार किसी ने स्टेज पर सुना था. तो लोग काफी आश्चर्यचकित हो गए थे. लोगों ने उनसे कुछ नई आवाजें सुनीं. तो ये करते करते उन्होंने 1982 में मेलोडी मेकर्स ऑर्केस्ट्रा ज्वाइन किया. वे कहते हैं, “वो समय ऑर्केस्ट्रा के लिए गोल्डन टाइम था. क्योंकि बहुत अच्छे गाने होते थे उस वक्त और सुनने वाली ऑडियंस भी बहत अच्छी थी. उस वक्त हम 35 से 40 शो करते थे हर महीने. कभी कभी ऐसा भी होता था कि हम दिन में तो से चार शो भी करते थे.”

दरअसल, सुदेश भोसले हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सिंगर्स में से एक किशोर दा को अपना गुरु मानते हैं. वे कहते हैं, “उस वक़्त मुझे पता चला था कि किशोर कुमार जिन्हें मैं अपना गुरु मानता हूं, वो जब भी लाइव शो करते हैं तो वो मेलोडी मेकर्स ऑर्केस्ट्रा के साथ ही करते हैं. तो वहां किशोर दा के साथ एक एंकर के दौर पर मेरा नंबर लग गया. मैं स्टेज पर रफ़ी साहब के एक दो गाने गाकर किशोर दा को स्टेज पर बुलाता था. किशोर दा मुझे इशारा करके बता देते थे कि उन्हें कब बुलाना है. मैं विंग्स में कुर्सी डालकर घंटों उन्हें सुनता रहता था. मैंने 1982 से 1987 तक किशोर दा को इतने पास से और जितना समय हो सका उनके साथ बिताया है, उन्हें सुना है.” 

इतना ही नहीं सुदेश आगे बताते हैं कि हिंदी सिनेमा में उनका ये सफर बहुत खास रहा है. वे कहते हैं, “1986 में मुझे आशा भोसले जी ने सुना और उनको मेरा एस डी बर्मन की आवाज में गाना इतना अच्छा लगा कि जब मैंने गया अमर प्रेम का गाना सुनाया तो वो रो पड़ी और कहने लगीं कि मुझे लगा मेरे सामने सचिन दा गा रहे हैं. और वो मुझे उसके बाद पंचम दा के यहां लेकर चली गयीं. पंचम दा ने जब मेरा सुन बंधु सुना तो वो भी रो पड़े कर बोले कि मेरी बाप की आवाज में गाते हो. उन्होंने जिसके बाद मुझे पहला ब्रेक दिया जलजला फिल्म में. और फिर किशोर दा के गुजरने के बाद बप्पी दा ने मुझसे बहुत गाने गवाए, उनमें से एक जो गाना बहुत हिट हुआ था वो था लाल दुपट्टे वाली तेरा नाम तो बता.”

कैसे बना जुम्मा-चुम्मा गाना?

सुदेश भोसले जुम्मा चुम्मा की मेकिंग के बारे में बताते हैं कि ये गाना डरते डरते बच्चन साहब के सामने रिकॉर्ड किया गया था. वे बताते हैं, “दरअसल, मुझे जब भी शो से फुरसत हुआ करती थी तो मैं सभी म्यूजिक प्रोडूसर्स से मिलने चला जाया करता था. मन में इच्छा थी कि प्लेबैक सिंगर बनना है.  1990 में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी ने अजूबा फिल्म के लिए एक गाना गवाया अमित जी की आवाज में. तो वो काफी शॉकेड हो गए. फिल्म के डायरेक्टर मुझे अमित जी से मिलाने ले गए थे. जब उन्होंने मेरी आवाज एक्सेप्ट कर ली उसके बाद लक्ष्मीकांत जी और प्यारेलाल जी ने सोचा कि कुछ ऐसा एक्सपेरिमेंट करते हैं जो पहले कभी नहीं हुआ. और तब बना जुम्मा चुम्मा. एकदिन लक्ष्मीकांत जी ने मुझे बुलाया और कहा कि मैंने कुछ लिखा है ये मुझे उनकी (अमित जी) आवाज में सुना. वो बोले अरे ओ जुम्मा, तो मैंने अमित जी की आवाज में बोला अरे ओ जुम्मा, फिर वो बोले-मेरी जानेमन, मैंने भी उनके पीछे बोला मेरी जानेमन, फिर उन्होंने गाने के बोल कहे- बाहर निकला तो आजा आजा, मैंने ही उनके पीछे पीछे यही बोला कि तो आजा तो आजा. इसके बाद लक्ष्मीकांत जी बोले की तू कल आजा क्योंकि मैंने अभी ये गाना इतना ही लिखा है. उसके दूसरे दिन उन्होंने मुखड़ा लिखा, जुम्मा चुम्मा दे दे. इसी तरह हमने 8-10 दिन तक रोज मिलकर इस गाने को बनाया और जब ये तैयार हो गया तो हमने ये गाना बिना माइक्रोफोन के अमित जी को सुनाया. इसे सुनकर उन्होंने कहा कि बहुत अच्छा है रिकॉर्ड कर लो.”

वे आगे कहते हैं, “मैं पहली बार अमित जी से मिला था और डर के कारण मैंने कुछ खाया नहीं था. सुबह 9 गाने की रिकॉर्डिंग शुरू हुई थी और रात के 2 बजे तक चली. कहीं खराश न हो जाये या कोई दिक्कत आ जाए मैंने उस दिन बस 25 ग्लास चाय पी. और कहते हैं न कि रेस्ट इज हिस्ट्री. वो गाने रिकॉर्ड होते होते हिट हो गया. उसके बाद अमित जी जहां भी गए जिस भी वर्ल्ड टूर पर उन्होंने इस गाने को मुझसे ही गवाया. बस उसके बाद ही लोगों ने मुझे वॉइस ऑफ अमिताभ बच्चन बना दिया.”

घर में शुरू में बैन थे हिंदी गाने

सुदेश जी बताते हैं कि उनके घर में क्लासिकल माहौल था. और घर में शुरू में हिंदी गाने बिलकुल पसंद नहीं किये जाते थे. वे बताते हैं, “मेरे पिताजी जब बॉलीवुड सॉन्ग सुनते थे तो कहते थे कि ये भी कोई गाने हैं. हम लोग गोवा से ताल्लुक रखते हैं तो प्योर क्लासिकल म्यूजिक गाते और सुनते थे. लेकिन जब लोगों ने उनसे कहा कि आपका बीटा क्या करता है ज़रा जाकर तो देखो. तो एकदिन मुझे जहां परफॉर्म करना था वो उस ऑडिटोरियम में आए और जब उन्होंने देखा कि जब मैं आया तो लोग तालियां बजा रहे बजा रहे हैं और सीटियां बजा रहे हैं तो उन्हें अच्छा लगा.  फिर धीरे धीरे उनका मन परिवर्तन हो गया. उनको किशोर दा भी अच्छे लगने लगे, रफ़ी साहब भी अच्छे लगने लगे और इसी तरह उन्हें मिमिक्री भी अच्छी लगने लगी. फिर वो मेरे हर शो में आकर बैठते थे. क्लासिकल मेरी मम्मी और दादी जाती थीं. शुरू में हिंदी गाने घर में बैन थे लेकिन फिर सब कुछ सुना जाने लगा.”

14 से 22 साला तक की पेंटिंग 

आपको बता दें कि सुदेश भोसले सिंगर से पहले एक पेंटर रह चुके हैं. वे बताते हैं, “पापा पेंटर थे और मुझे शुरू से लगता था कि मैं पेंटर ही बनूंगा. 14 से 22 साल तक मैंने पेंटिंग की है. और मैं बहुत अच्छा था इसमें. मेरी मां ने भी मुझे क्लासिकल सॉन्ग इसीलिए नहीं सिखाए कि उन्हें भी लगता  था कि मैं पेंटर बनूंगा. लेकिन कहते हैं कि रेडियो सुनते सुनते 14-15 साल की उम्र में मुझे 150 से 200 गाने बाय हार्ट याद थे. वही जाकर आगे काम आया. मैंने जो भी किया कभी सोच समझकर नहीं किया. जब पिताजी ने स्टूडियो में बुलाया तो मैं 100 प्रतिशत पेंटिंग करता था. जब लोग बुलाने लगे तो मैं  मिमिक्री करने लगा. अच्छा रिस्पांस मिला. मेलोडी मेकर्स ज्वाइन किया तो पैसे भी मिलने लगे तो और इंटरेस्ट से करने लगा. और फिर जुम्मा चुम्मा के बाद तो मेरे खुद के शो होने लगे, नाम, इज्जत, शोहरत सबकुछ मिला.”

वे आगे कहते हैं कि मुझे किशोर दा, लता जी, आशा दीदी, लक्ष्मीकांत जी सब लोग मिले, मैंने इतने दिग्गज लोगों के साथ काम किया और बस इतना ही समझ आया कि ये लोग बस ऐसे ही वहां तक नहीं पहुंचे हैं. बल्कि अपनी मेहनत, लगन से पहुंचे हैं. इन सबसे यही सीखा है कि जो भी करो लगन से करो. और उसमें अपना 100 प्रतिशत दो, तब जाकर आपको उस चीज में यश मिलता है.

ऑटिस्ट का जिम्मा है कि वो अपनी आर्ट को नीचे न जाने दे 

सुदेश भोसले के मुताबिक 90 के दौर के गानों में और अब वाले गानों में बहुत फर्क है. और प्लेबैक सिंगिंग में भी बहुत बदलाव आया है. वे कहते हैं, “मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि मैंने उस दौर में गाना गया है जब म्यूजिशियन और सिंगर साथ में गाना रिकॉर्ड करते थे. कई दिन उसकी रिहर्सल चलती थी. एक्टर, डायरेक्टर, म्यूजिशियन, सिंगर मिलकर रिहर्सल करते थे. अपने अपने इनपुट देते थे तो वो जो गाना रिकॉर्ड होता था वो बहुत परफेक्ट होता था. उसकी वजह से वो गाने आज भी फ्रेश लगते हैं कि बार बार सुनों तब भी बोर नहीं होते हैं. लेकिन अब जिस तरह से गाने बनते हैं एक एक हिस्सा जोड़ जोड़कर, मुझे लगता है कि आजकल गाने गाए नहीं जाते छप जाते हैं. इसमें नई पीढ़ी की भी कोई गलती नहीं है. टेक्नोलॉजी ही इतनी आ गई है कि आप किसी भी तरह से रिकॉर्ड या बदलाव कर सकते हैं. हमें नई जनरेशन को बढ़ावा देना चाहिए. हां, ये जरूर है कि लिरिकली गाने बहुत नीचे जा चुके हैं. आर्टिस्ट-आर्टिस्ट होता है और ये हर आर्टिस्ट का जिम्मा होता है कि वो अपनी आर्ट को नीचे न जाने दे. वो हमारे ही हाथों में है.”

वे आगे आने वाली पीढ़ी को संदेश देते हुए कहते हैं कि हर इंसान को भगवान ने अलग बनाया है और आपको जो भी टैलेंट मिला है उसके लिए भगवान और अपने मां-बाप का शुक्रियादा करो. उस टैलेंट की इज्जत करो और अगर आप किसी कॉम्पीटीशन में जीत जाओ तो रियाज बंद मत करो और मेरी तरह अलग अलग आवाज में मत गाओ. अपनी ही आवाज में गाओ क्योंकि वही आवाज आपको आगे ले जाने का काम करेगी.

पूरा इंटरव्यू यहां देखें-